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Mughal History: वो मुगल बादशाह, जिसकी कब्र से निकालकर जला दी गई थीं अस्थियां, हिंदू रीति-रिवाज से हुआ था श्राद्धकर्म

Mughal Harem:  हर मुगल बादशाह के दौर में कुछ ऐसे फरमान लाए गए, जिन्होंने इतिहास पर अमिट छाप छोड़ी. लेकिन आज हम आपको बताएंगे एक ऐसे मुगल बादशाह के बारे में, जिसकी अस्थियां कब्र से निकालकर जला दी गई थीं. इतना ही नहीं, उसका हिंदू रीति-रिवाज से श्राद्धकर्म भी हुआ था. 

Mughal History: वो मुगल बादशाह, जिसकी कब्र से निकालकर जला दी गई थीं अस्थियां, हिंदू रीति-रिवाज से हुआ था श्राद्धकर्म
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Rachit Kumar|Updated: Jun 02, 2023, 05:44 AM IST

Mughal Dark Secrets: मुगलों का 300 साल का इतिहास इतना बड़ा है कि उसे किताबों के पन्नों में पूरा समेट पाना काफी मुश्किल है. इसलिए छोटी-छोटी घटनाएं और किस्से सामने आते रहते हैं. बाबर से शुरू हुई मुगलिया सल्तनत ने बहादुर शाह जफर तक काफी कुछ देखा. हर मुगल बादशाह के दौर में कुछ ऐसे फरमान लाए गए, जिन्होंने इतिहास पर अमिट छाप छोड़ी. लेकिन आज हम आपको बताएंगे एक ऐसे मुगल बादशाह के बारे में, जिसकी अस्थियां कब्र से निकालकर जला दी गई थीं. इतना ही नहीं, उसका हिंदू रीति-रिवाज से श्राद्धकर्म भी हुआ था. 

...तो शुरू होती है कहानी

दिल्ली के तख्त पर औरंगजेब कब्जा जमा चुका था. उसका कट्टर स्वभाव किसी से छिपा नहीं था. यही कट्टरपंथ उसका सबसे बड़ा शत्रु था. उसे राज किए दो साल ही हुए थे कि राजस्थान, खानदेश, मालवा और बुदेलखंड में उसके खिलाफ विद्रोह शुरू हो गया. हिंदुओं की ओर से किया गया औरंगजेब के शासनकाल का यह पहला विद्रोह था. औरंगजेब इन विद्रोहों को कुचलता जरूर रहा लेकिन कभी खत्म कर नहीं पाया. 

ताकतवर जाटों ने उसकी नाक में दम कर दिया था. मुगलों की सेना के सिंसनी के राजाराम जाट ने दांत खट्टे कर दिए थे. उस वक्त पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब और उत्तरी राजस्थान में जाटों का दबदबा था. 1656 में औरंगजेब के हाथों में मुगलिया साम्राज्य की बागडोर आई. उस वक्त जाटों की कोई खास राजनीतिक अहमियत नहीं थी. लेकिन औरंगजेब की कट्टरता से वह परेशान हो गए और उन्होंने विद्रोह छेड़ दिया. साल 1669 में जाट किसानों ने विद्रोह का पहला बिगुल फूंका.

बढ़ता जा रहा था कट्टरपंथ

एस मुस्तैद खां अपनी किताब मुगल भारत का इतिहास में लिखते हैं, औरंगजेब के राज में कट्टरपंथ बढ़ता जा रहा था. इसके बाद मुगलिया फौज और जाटों के बीच तिलपत में जंग हुई, जिसमें जाटों को शिकस्त मिली. माना जाता है कि इस युद्ध में गोकुला जाट को पकड़ कर बाद में जान से मार दिया गया था. इतना ही नहीं, उसके परिवार का धर्म परिवर्तन कराया गया था. लेकिन इसके बाद भी जाटों ने विद्रोह जारी रखा.

वक्त गुजरा और 1686 में जाट सरदारों का पद सिंसनी के राजाराम जाट और सोधर के रामचेरा जाट ने संभाला. उनके और मुगलों की फौजों के बीच लड़ाइयां होती रहीं. अगले एक साल में ही मुगल सामंत मीर इब्राहिम को लूटने और मुगलों के सेनानायक मुगीर खां को हराने के कारण राजाराम का डंका बजने लगा था. मुगलों पर लगातार मिल रही जीत से उसका हौसला सातवें आसमान पर था.

मुगल बादशाह की अस्थियों को जला दिया

साल 1687 में औरंगजेब का घमंड चूर करने के लिए राजाराम जाट ने सिकंदरा स्थित अकबर के मकबरे में उसकी कब्र को खोदकर उसकी अस्थियों को जला दिया और उसका श्राद्धकर्म भी किया. निकोलाओ मनूची के हवाले से मुगल किताब भारत का इतिहास में लिखा है कि राजाराम जाट ने अकबर की कब्र खोदकर अस्थिथों को न सिर्फ जलाया बल्कि हिंदू रीति-रिवाज से उसका श्राद्धकर्म भी किया. राजाराम जाट के इस कारनामे से औरंगजेब बौखला उठा.

साल 1688 में मथुरा के फौजदार बीदरबख्त और आमेर के राजा विशन सिंह को जाटों से मुकाबला करने भेजा. खतरनाक जंग हुई, जिसमें राजाराम परास्त हो गए. इसके बाद मुगल फौज ने उसको मौत के घाट उतार दिया. इसके बाद राजाराम के भतीजे ने विद्रोह की चिंगारी को आगे बढ़ाया और 1707 तक यह जारी रहा. 

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