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अब भी कई खतरों से घिरा है मिशन चंद्रयान-3, जानिए किस डर ने उड़ाई है वैज्ञानिकों की नींद

Chandrayaan-3 Landing: भारत का चंद्रयान-3 चांद की जमीन पर उतरा तो इसने कामयाबी का नया इतिहास रच दिया. चंद्रयान-3 ने दिखा दिया कि भारत और उसके अंतरिक्ष विज्ञानी पृथ्वी से 3.84 लाख किमी दूर चन्द्रमा पर किसी यान की सॉफ्ट लैंडिंग कर सकते हैं, लेकिन अभी भी चंद्रयान-3 से जुड़ा खतरा कम नहीं हुआ है.

फाइल फोटो
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Updated: Aug 25, 2023, 07:12 PM IST

Live Tracking Of Chandrayaan 3: साल 2019 में चंद्रयान-2 की लैंडिंग में मिली असफलता का दर्द हर भारतवासी की चिंता बढ़ा रहा था लेकिन चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग ने अब इस दर्द को दूर कर दिया है. हालांकि, यह मिशन उतना भी आसान नहीं था. 14 जुलाई की लॉन्चिंग से 23 अगस्त की शाम हुई लैंडिंग तक का सफर कई कठिनाइयों से भरा हुआ था. अब जरा खुद ISRO प्रमुख डॉ एस सोमनाथ की जुबानी सुनिए कि कौन सी चुनौतियों को पार कर चंद्रयान-3 चांद पर पहुंचा. लैंडिंग के फौरन बाद हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में जी न्यूज संवाददाता प्रणय उपाध्याय ने इसरो प्रमुख डॉ सोमनाथ से इस बारे में बात की.

डॉ सोमनाथ ने कहा कि चन्द्रमा की जमीन पर कामयाब लैंडिंग के बाद भी अभी मिशन चंद्रयान-3 की चुनौतियां खत्म नहीं हुई हैं. ऐसा ही एक पल उस वक्त आया जब ISRO टेलीमेट्री ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क के विशाल एंटेना की नजर से लैंडर ओझल हो गया. यह वो वक्त था जब लैंडर से सम्पर्क और संवाद बेहद अहम था, क्योंकि लैंडर से रोवर का बाहर आना भी बाकी था. ऐसे में भारत ने मदद ली एक विदेशी अंतरिक्ष नेटवर्क की. ताकि संचार और संपर्क बना रहे. इस कवायद के कारण लैंडर से रोवर के बाहर आने में भी देरी हुई.

इसरो प्रमुख डॉ सोमनाथ से सवाल किया गया कि क्या कुछ हुआ उन पलों में और कैसे चिंता के बादल छंटे? इसका जवाब देते हुए इसरो चीफ ने कहा कि भारत ही नहीं दुनिया के लिए चंद्रयान-3 मिशन अहम है. क्योंकि यह पहला इंसानी मिशन है जो चन्द्रमा के दक्षिण ध्रुव पर पहुंच पाया है. इससे मिलने वाला डेटा हर किसी के लिए अहम होगा. लिहाजा इसकी कामयाबी पर ISRO ही नहीं नासा, यूरोपीय स्पेस एजेंसी और जापानी स्पेस एजेंसी जाक्सा समेत कई अंतरिक्ष एजेंसियों की नजरें लगी हैं.

चंद्रयान-3 के लैंडर से रोवर अब बाहर आ चुका है. सभी मशीनें काम करना शुरू कर चुकी हैं. ISRO अपने सोशल मीडिया हैंडल के जरिए इसकी जानकारी समय-समय पर साझा भी कर रहा है. क्योंकि, लैंडर और रोवर के कैमरे से आती यह तस्वीरें बताती हैं कि चंद्रयान-3 मिशन में लगे सेंसर और उपकरण ठीक तरीके से काम कर रहे हैं लेकिन मिशन के लिए अभी चुनौतियां अभी पूरी तरह से खत्म नहीं हुई हैं और ना ही खतरा टला है, क्योंकि जो अब भी मिशन चंद्रयान-3 के माथे पर मंडरा रहे हैं. इनमें से किसी भी समीकरण का अगले 14 दिनों के भीतर गड़बड़ाना सारी मेहनत पर पानी फेर सकता है.

1. संचार प्रणाली का दुरुस्त रहना- चंद्रयान का लैंडर अभी ISRO के डीप स्पेस नेटवर्क ISDN के साथ सम्पर्क में है। साथ ही चंद्रयान2 के ऑर्बिटर के जरिए भी पृथ्वी पर मौजूद ISRO स्टेशन्स के साथ संपर्क में है. ऐसे में बहुत जरूरीहै कि पृथ्वी से लाखों किमी की दूरी पर यह संचार लिंक बना रहे. लैंडर में लगे एक्स बैंड एंटेना ठीक से काम करते रहें.

2. लैंडर और रोवर के बीच सम्पर्क बना रहे। चंद्रयान 3 के रोवर का सम्पर्क केवल लैंडर से है. उसके साथ ISRO स्टेशंस का कोई सीधा संपर्क नहीं है. ऐसे में रोवर से जुड़े परीक्षणों और मूवमेंट के लिए इस संचार लिंक का बना रहना जरूरी है.

3. लैंडर-रोवर की स्थिरता और सेहत- चन्द्रमा की सतह पर भी भूकम्प आते रहते हैं. ऐसे में लैंडर का अपनी स्थिति में ठीक से खड़े रहना और रोवर का निर्धारित दायरे में रहना जरूरी है. रोवर आगे बढ़ते वक्त अगर किसी चट्टान में फंस या गढ्ढे में अटका तो भी मिशन खतरे में पड़ सकता है.

4. पावर सप्लाई का बना रहना- मिशन चंद्रयान की पूरी प्लानिंग में पावर सप्लाई बहुत महत्वपूर्ण कड़ी है. लॉन्च से लेकर लैंडिंग की तारीख का चुनाव चंद्रमा की जमीन पर सूर्य की रौशनी की उपलब्धता के अधार पर किया गया है. लैंडर के पास 738 वॉट और रोवर के पास 50 वॉट ऊर्जा उत्पादन की क्षमता है. साथ ही इसमें बैटरी भी लगाई गई है, लेकिन इस ऊर्जा सप्लाई में अगले 14 दिनों के भीतर अगर कोई गड़बड़ी आती है तो मिशन बेकार हो सकता है.

ऐसे में मिशन चंद्रयान-3 की टीम के लिए अगले 14 दिन तपस्या के हैं, जहां हर दिन इस मिशन से जुड़े हर-एक कल-पुर्जे का ठीक तरह से काम करते रहना जरूरी है. जरा से गड़बड़ी इस शानदार उपलब्धि का मजा खराब कर सकती है. यही वजह है कि चंद्रयान 3 की लैंडिंग के बाद देश ने भले ही जश्न मनाया हो लेकिन खुशी की इन तालियों के बीच भी एक टीम लगातार मिशन से जुड़े पैमानों पर नजर गड़ाए काम करती रही है, ISRO प्रमुख ने भी कहा कि हमारे पास पार्टी मनाने का वक्त नहीं है, क्योंकि अभी बहुत काम बाकी है.

हालांकि, ISRO के वैज्ञानिकों की तैयारी का पता इस बात से ही लग जाता है कि मिशन चंद्रयान-3 के लिए मिशन आयु भले ही 14 दिन या (चन्द्रमा पर सूर्योदय से सूर्यास्त तक) रखी गई हो, लेकिन तैयारी इस बात की भी है कि लैंडर और रोवर की मशीनें चन्द्रमा पर -230℃ तापमान वाली सर्द रात के बाद अगला सूर्योदय होने पर फिर से काम कर सकें. यदि ऐसा होता है तो और भी अधिक जानकारियां ISRO वैज्ञानिकों के हाथ में होंगी. ISRO के ISTRAC प्रमुख डॉ रामकृष्ण ने कहा कि ऐसे में भारत के 140 करोड़ देशवासियों की उम्मीदें और शुभकामनाएं यही हैं कि नई सुबह के साथ भी चंद्रयान-3 का यह मिशन अंतरिक्ष में नए भारत की कामयाबी का डंका बजाए.

(इनपुट एजेंसी: प्रणय उपाध्याय)

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