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Jammu Kashmir: जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल को दिल्ली के LG जैसी शक्तियां, केंद्र के बड़े फैसले से विधानसभा चुनाव की आहट!

More Power To Jammu Kashmir LG: केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 55 के तहत संशोधित नियमों को अधिसूचित किया है. इसमें उपराज्यपाल को अधिक पावर देने वाली नई धाराएं शामिल की गई हैं. 

Jammu Kashmir: जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल को दिल्ली के LG जैसी शक्तियां, केंद्र के बड़े फैसले से विधानसभा चुनाव की आहट!
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Keshav Kumar|Updated: Jul 13, 2024, 12:37 PM IST

JK Reorganization Act Ammendment: जम्मू कश्मीर में संभावित विधानसभा चुनावों से पहले केंद्रीय गृह मंत्रालय ने उपराज्यपाल को अधिक पावर देने के लिए जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम में संशोधन किया. मंत्रालय ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 55 के तहत संशोधित नियमों को अधिसूचित किया है. इसमें एलजी को अधिक शक्ति देने वाली नई धाराएं शामिल की गई हैं. अब जम्मू कश्मीर में भी दिल्ली की तरह राज्य सरकार को अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग के लिए पहले उपराज्यपाल से मंजूरी लेनी होगी.

जम्मू-कश्मीर में सितंबर में विधानसभा चुनाव होने के आसार

जम्मू-कश्मीर में इसी साल सितंबर में विधानसभा चुनाव होने के आसार हैं. सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को 30 सितंबर 2024 से पहले जम्मू और कश्मीर विधानसभा के लिए चुनाव कराने का आदेश दिया है. इन परिस्थितियों में उपराज्यपाल की प्रशासनिक शक्तियां बढ़ाने को लेकर केंद्र सरकार का फैसला बेहद अहम माना जा रहा है. क्योंकि केंद्रशासित प्रदेश जम्मू कश्मीर में किसी भी पार्टी की सरकार बनने के बावजूद अहम फैसले लेने की शक्तियां उपराज्यपाल (LG) के पास ही रहेंगी. 

संशोधन के बाद उपराज्यपाल की बढ़ी कौन-कौन सी शक्तियां 

जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 55 में संशोधन के बाद उपराज्यपाल को अब पुलिस, कानून व्यवस्था, ऑल इंडिया सर्विस (AIS) से जुड़े मामलों में ज्यादा अधिकार होंगे. इस संशोधन से पहले यानी अभी तक ऑल इंडिया सर्विस से जुड़े मामलों और उनके तबादलों और नियुक्तियों के लिए वित्त विभाग की मंजूरी जरूरी थी. अब उपराज्यपाल को इन मामलों में भी ज्यादा अधिकार मिल गए हैं. इसके अलावा अब महाधिवक्ता, कानून अधिकारियों की नियुक्ति और मुकदमा चलाने की अनुमति देने या इनकार करने या अपील दायर करने से संबंधित प्रस्ताव भी पहले उपराज्यपाल के सामने रखे जाएंगे.

संसद में 5 अगस्त, 2019 को पास हुआ था जेके पुनर्गठन अधिनियम

केंद्र में लगातार दूसरी बार मोदी सरकार बनने के बाद 5 अगस्त, 2019 को जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम को संसद में पास किया गया था. इसके तहत जम्मू एवं कश्मीर को दो भागों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांटकर दोनों को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया. इस अधिनियम ने जम्मू और कश्मीर को विशिष्ट दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को भी निरस्त कर दिया था.

जम्मू-कश्मीर में प्रशासन के लिए गृह मंत्रालय ने बनाया विशेष नियम

जम्मू-कश्मीर का प्रशासन इससे एक वर्ष से अधिक पहले यानी जून, 2018 से ही केंद्र सरकार के शासन के अधीन है. गृह मंत्रालय ने 28 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर में प्रशासन के लिए सबसे पहले नियमों को अधिसूचित किया. इसमें उपराज्यपाल और मंत्रिपरिषद के कार्यों को परिभाषित किया गया है. अब अधिनियम के संशोधित नियमों में नीचे दिए गए दो पॉइंट को जोड़ा गया है.

42A: कोई भी प्रस्ताव जिसके लिए अधिनियम के तहत ‘पुलिस’, ‘सार्वजनिक व्यवस्था’, ‘अखिल भारतीय सेवा’ और ‘भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो’ (ACB) के संबंध में वित्त विभाग की पूर्व सहमति जरूरी है, तब तक स्वीकृत या अस्वीकार नहीं किया जाएगा जब तक कि इसे मुख्य सचिव के माध्यम से उपराज्यपाल के समक्ष नहीं रखा जाता है.

42B: अभियोजन स्वीकृति देने या अस्वीकार करने या अपील दायर करने के संबंध में कोई भी प्रस्ताव विधि विभाग द्वारा मुख्य सचिव के माध्यम से उपराज्यपाल के समक्ष रखा जाएगा.

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जम्मू-कश्मीर के लोग बिना पावर के, रबर स्टैम्प मुख्यमंत्री से बेहतर के हकदार

केंद्र सरकार के इस फैसले के बाद जम्मू कश्मीर में राजनीतिक विरोध भी शुरू हो गया है. जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रमुख उमर अब्दुल्ला ने कहा कि यह एक और इशारा है कि जम्मू-कश्मीर में चुनाव नजदीक है. जम्मू-कश्मीर के लिए पूर्ण, अविभाजित राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए समय सीमा निर्धारित करने के लिए मजबूत कमिटमेंट चुनावों की एक शर्त है. जम्मू-कश्मीर के लोग बिना पावर के, रबर स्टैम्प मुख्यमंत्री से बेहतर के हकदार हैं. नए बदलाव के बाद तो सीएम को अपने चपरासी की नियुक्ति के लिए भी से उपराज्यपाल से भीख मांगनी पड़ेगी.

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