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Maharashtra Politics: सुप्रीम कोर्ट में भी नहीं चली उद्धव गुट की दलील, कायम रहेगा चुनाव आयोग का फैसला

Supreme Court ने चुनाव आयोग के फैसले पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है. चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच ने ये फैसला दिया है. कोर्ट के फैसले से साफ है कि शिव सेना का पार्टी नाम और चिन्ह शिंदे गुट के पास रहेगा.

Maharashtra Politics: सुप्रीम कोर्ट में भी नहीं चली उद्धव गुट की दलील, कायम रहेगा चुनाव आयोग का फैसला
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Arvind Singh|Updated: Feb 22, 2023, 04:58 PM IST

Supreme Court Verdict: शिवसेना के नाम और चुनाव चिन्ह को लेकर शिंदे गुट को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली है. अदालत ने चुनाव आयोग के फैसले पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है. चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच ने ये फैसला दिया है. सुप्रीम कोर्ट दो हफ्ते बाद फिर मामले पर सुनवाई करेगा. कोर्ट के फैसले का मतलब है कि शिवसेना का चिन्ह और नाम शिंदे गुट के पास ही रहेगा.

बता दें कि चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले समूह को ‘शिवसेना’ नाम और उसका चुनाव चिह्न ‘तीर-कमान’ आवंटित किया था. चुनाव आयोग का ये फैसला उद्धव ठाकरे के लिए बड़ा झटका था. उद्धव गुट ने चुनाव आयोग के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसपर अदालत ने आज सुनवाई की.

मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और जे.बी. पारदीवाला की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, हम याचिका पर विचार करेंगे, हम नोटिस जारी करेंगे. शीर्ष अदालत ने शिंदे समूह से दो सप्ताह में जवाब मांगा है. मुख्य न्यायाधीश ने शिंदे का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज किशन कौल से पूछा, मिस्टर कौल, अगर हम इसे दो सप्ताह के बाद लेते हैं, तो क्या आप व्हिप जारी करने या उन्हें अयोग्य घोषित करने की प्रक्रिया में हैं? कौल ने जवाब दिया नहीं, मुख्य न्यायाधीश ने कहा: तो हम आपका बयान दर्ज करेंगे.

उद्धव ठाकरे का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि हमारे बैंक खातों, संपत्तियों आदि पर उनका कब्जा हो जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने भी शिवसेना की संपत्तियों और वित्त पर कब्जा करने से रोकने से इनकार कर दिया, यह कहते हुए कि यह चुनाव आयोग के आदेश पर रोक लगाने जैसा होगा और हम ऐसा नहीं कर सकते.

ठाकरे का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों ने तर्क दिया कि शिंदे समूह, जिसे मूल शिवसेना कहा जा रहा है, अब उन्हें अपने पक्ष में मतदान करने के लिए व्हिप जारी करेगा, जिसमें विफल रहने पर उनके खिलाफ नए सिरे से अयोग्यता की कार्यवाही शुरू की जा सकती है. शिंदे समूह ने कहा कि वह मामले को तूल नहीं देगा.

यह पहली बार है जब ठाकरे परिवार ने 1966 में बालासाहेब ठाकरे द्वारा स्थापित पार्टी का नियंत्रण खो दिया है. पार्टी ने हिंदुत्व को अपनी प्रमुख विचारधारा के रूप में अपनाया था और 2019 तक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ गठबंधन था, जब उद्धव ठाकरे ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस की मदद से सरकार बनाने के लिए गठबंधन तोड़ दिया था.

सुप्रीम कोर्ट से किसको क्या मिला

शिंदे  ग्रुप को SC से क्या मिला:-

-चुनाव आयोग के फैसले पर रोक नहीं रहेगी यानि असल शिवसेना की मान्यता और तीर धनुष का चुनाव चिन्ह उनके पास ही रहेगा.

-उद्धव ठाकरे गुट से पार्टी दफ्तर/बैंक अकाउंट को  शिंदे ग्रुप वापस ले सकेगा. इससे रोकने की मांग पर SC ने फिलहाल दखल देने से इंकार किया.

उद्धव ठाकरे गुट को क्या मिला?

-उद्धव कैंप फिलहाल (26 फरवरी को होने वाले उपचुनाव  के बाद भी ) अस्थायी नाम शिवसेना ( उद्धव बाला साहब ठाकरे) और चुनाव चिन्ह  ( टॉर्च)का इस्तेमाल जारी रख सकता है.

- शिंदे पक्ष अभी व्हिप जारी करने से जैसी कोई कार्रवाई नहीं करेगा जिससे उद्धव समर्थक सांसद/विधायक अयोग्य हो जाएं.

इससे पहले शिंदे गुट ने साफ कर दिया था कि उसे शिवसेना भवन, या उद्धव गुट से जुड़ी कोई और सम्पत्ति नहीं चाहिए. महाराष्ट्र के कैबिनेट मंत्री दीपक केसरकर ने कहा कि एकनाथ शिंदे गुट मुंबई में शिवसेना भवन या राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले प्रतिद्वंद्वी खेमे से जुड़ी किसी भी अन्य संपत्ति को लेने में दिलचस्पी नहीं रखता. केसरकर ने दावा किया कि ठाकरे का नेतृत्व वाला प्रतिद्वंद्वी गुट निर्वाचन आयोग के फैसले के बाद इस मुद्दे पर सहानुभूति हासिल करने की कोशिश कर रहा है.

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