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Ukraine Russia War की ये है असली जड़! समझिए पूरा मामला आसान भाषा में

Ukraine Russia War: साल 2020 में जहां एक मेगावॉट प्राकृतिक गैस की कीमत सिर्फ 4 यूरो थी, वो आज कई गुना बढ़कर 80 यूरो प्रति मेगावॉट हो चुकी है.

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Ukraine Russia War की ये है असली जड़! समझिए पूरा मामला आसान भाषा में
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Mohit Sinha|Updated: Apr 16, 2022, 02:35 PM IST

नई दिल्लीः आज की दुनिया में जिस तरह से एक देश के दूसरे देश के साथ व्यापारिक हित जुड़े हुए हैं, उनमें पारंपरिक युद्ध की आशंका कम ही मानी जाती थी, लेकिन यूक्रेन रूस युद्ध (Ukraine Russia War) ने इस धारणा को गलत साबित कर दिया है. बता दें कि आज यूक्रेन पर रूस के हमले का छठा दिन है और इस युद्ध में यूक्रेन को जहां भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है, वहीं रूस (Russia) को भी इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ रही है. ऐसे में सवाल उठता है कि ऐसी क्या वजह रही कि रूस को यूक्रेन पर हमला जैसा कड़ा कदम उठाना पड़ा?

ये है विवाद की जड़
यूक्रेन के उत्तरी अटलाण्टिक सन्धि संगठन यानी दी नॉर्थ अटलांटिक ट्रिटीर्गनाइजेशन (NATO) में शामिल होने की चर्चाओं को युद्ध की अहम वजह माना जा रहा है, जिसका रूस द्वारा विरोध किया जा रहा है. ऐसे में आम धारणा है कि इसके चलते ही रूस ने यूक्रेन को पर हमला किया. लेकिन यह एक अधूरा सच है! दरअसल यूक्रेन रूस की लड़ाई में अहम मुद्दा प्राकृतिक गैस (Natural Gas) का भी है!

यूरोप में बढ़ रहा गैस संकट (Europe Gas Crisis)
बता दें कि इन दिनों यूरोप प्राकृतिक गैस के संकट से जूझ रहा है. यूरोप में भारी ठंड की वजह से लोगों को अपने घर गर्म रखने, एनर्जी, इंडस्ट्री और अन्य रोजमर्रा की चीजों में प्राकृतिक गैस की जरूरत होती है. हाल के दिनों में यूरोप को होने वाली प्राकृतिक गैस की सप्लाई में कमी हुई है, जिसके चलते वहां गैस के दाम कई गुना बढ़ गए हैं. 

एबीसी न्यूज की एक रिपोर्ट के अनुसार,साल 2020 में जहां एक मेगावॉट प्राकृतिक गैस की कीमत सिर्फ 4 यूरो थी, वो आज कई गुना बढ़कर 80 यूरो प्रति मेगावॉट हो चुकी है. यूरोप को गैस की सप्लाई रूस से होती है और पूरा यूरोप एक तरह से गैस सप्लाई के लिए रूस पर निर्भर है. रूस पर आरोप है कि उसने सरकारी कंपनी द्वारा यूरोप को होने वाली गैस की सप्लाई में कुछ कटौती की है. वहीं यूरोप में ठंड का मौसम लंबा खिंचने की वजह से भी प्राकृतिक गैस की मांग में भारी उछाल आया है. इसे लेकर यूरोप में काफी नाराजगी है. 

Nord Stream 2 गैस पाइपलाइन का मुद्दा सबसे अहम
यूरोप की प्राकृतिक गैस पर निर्भरता को देखते हुए रूस और जर्मनी के बीच समझौता हुआ था, जिसके तहत रूस से प्राकृतिक गैस (Natural Gas) की पाइपलाइन जर्मनी जानी है. इस प्रोजेक्ट को Nord Stream 2 नाम दिया गया है.इस प्रोजेक्ट की खासियत ये है कि इससे रूस का प्राकृतिक गैस का निर्यात काफी बढ़ जाएगा और यूरोप की रूस पर गैस की निर्भरता और ज्यादा बढ़ जाएगी.

अमेरिका की नाराजगी
अमेरिका, रूस और जर्मनी के Nord Stream 2 प्रोजेक्ट से खुश नहीं है. इसकी एक वजह तो ये है कि अमेरिका (USA) चाहता है कि यूरोप के देश उसकी प्राकृतिक गैस खरीदे लेकिन वह रूस की अपेक्षा महंगी है. इसके चलते यूरोप रूस से ज्यादा गैस का आयात करता है. 

दूसरा कारण है कि यूरोप (Europe) को गैस निर्यात में बढ़ावा होने से रूस सशक्त  होगा. अमेरिका को लगता है कि सशक्त रूस भविष्य में उसके लिए खतरा हो सकता है. ऐसे में अमेरिका Nord Stream 2 प्रोजेक्ट का विरोध कर रहा है. यूरोप के कई छोटे देश जैसे पोलैंड, लिथुआनिया आदि भी इस गैस पाइपलाइन का विरोध कर रहे हैं क्योंकि उन्हें डर है कि इससे रूस मजबूत होकर यूक्रेन के क्रीमिया की तरह उनके भी कुछ हिस्सों पर कब्जा कर सकता है. 

विवाद में यूक्रेन (Ukraine) की एंट्री 
यूक्रेन का क्रीमिया इलाका, जिस पर रूस ने साल 2014 में कब्जा कर लिया था, वहां प्राकृतिक गैस के भारी भंडार हैं. ऐसे में रूस को आशंका हो सकती है कि अमेरिका और यूरोप के देश यूक्रेन को प्रभाव में लेने के बाद क्रीमिया के गैस भंडार पर भी नजर गड़ा सकते हैं! यदि ऐसा होता है तो रूस के यूरोप को होने वाले गैस निर्यात को बड़ा झटका लगा सकता है. यही वजह है कि अमेरिका और यूरोप के देश जहां यूक्रेन को अपने प्रभाव में करने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं रूस यूक्रेन को अपने प्रभाव में रखने की जद्दोजहद कर रहा है. 
 
NATO का एंगल भी रूस का सिरदर्द
रूस के यूक्रेन पर हमले की वजह ऍटलाण्टिक ट्रीटी ऑर्गनाइज़ेशन यानी नाटो एंगल भी है. बता दें कि नाटो के आर्टिकल 5 में प्रावधान है कि अगर कोई देश नाटो के किसी सदस्य देश पर हमला करता है तो सारे नाटो देश उसके खिलाफ मोर्चा खोल देंगे. ऐसे में रूस को चिंता है कि यदि यूक्रेन नाटो का सदस्य बन जाता है तो रूस की सीमा तक नाटो देशों की सेना की पहुंच हो जाएगी और उसके लिए भविष्य में खतरा पैदा हो सकता है. यूक्रेन की रूस के साथ कई सौ किलोमीटर लंबी सीमा लगती है. यही वजह है कि रूस नहीं चाहता कि यूक्रेन नाटो का सदस्य बने. 1949 में नाटो का निर्माण हुआ था. अमेरिका सबसे अधिक फंडिंग करता है. वर्तमान में 30 सदस्य देश नाटो में शामिल हैं.

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