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MP Election 2023: BJP की 39 उम्मीदवारों की घोषणा के पीछे की ये है रणनीति! जानिए वरिष्ठ पत्रकार की राय

Expert Comment: मध्य प्रदेश में बीजेपी ने कई सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है. जिसका मकसद पिछले विधानसभा चुनाव में हारी हुई सीटों को जीतना है. आइए जानते हैं वरिष्ठ पत्रकार से इसके बारे में...

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MP Assembly Elections
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Zee News Desk|Updated: Aug 18, 2023, 09:15 PM IST

MP Assembly Elections: साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने मध्यप्रदेश में 39 उम्मीदवारों की घोषणा की है. बता दें कि बीजेपी ने उन विधानसभा सीटों के प्रत्याशी की घोषणा की है. जहां पिछले चुनाव में पार्टी को हार मिली थी तो चलिए वरिष्ठ पत्रकार सुभाष चंद्र से पार्टी के इस कदम के बारे में समझते हैं... 

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पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था, विधानसभा चुनाव की तारीख घोषित होने से पहले भारतीय जनता पार्टी ने कभी भी अपने प्रत्याशियों की घोषणा नहीं की थी. इस बार भाजपा की ओर से नया प्रयोग किया गया है. मकसद, केवल एक है. बीते विधानसभा चुनाव में जिन सीटों पर हार मिलीं थी, वहां भी जीत हासिल किया जाए. प्रत्याशी कम समय होने का रोना न रोएं, इसलिए भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने करीब तीन महीने पहले ही मध्य प्रदेश के 39 सीटों के लिए प्रत्याशियों की घोषणा करके अपने लिए सहूलियत तो विपक्षी दलों के पेशानी पर बल ला दिया है.

बीजेपी की 39 प्रत्याशियों की पहली सूची जारी
अभी अगस्त का महीना चल रहा है. उम्मीद है कि नवंबर महीने में मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होगा. राज्य चुनाव आयोग ने अभी प्रदेश के राजनीतिक दलों से एक्शन मोड में मिलना भी शुरू नहीं किया है. भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ने भले ही जनता के बीच जाने का सिलसिला शुरू कर लिया है. इस बीच 17 अगस्त को ही मध्य प्रदेश के लिए जब विधानसभा चुनाव के लिए 39 प्रत्याशियों की पहली सूची जारी कर दी गई, तो सियासी हलकों के साथ ही आम लोगों में भी यह चर्चा का विषय बना कि आखिर, भाजपा की ओर से इतनी जल्दबाजी क्यों दिखाई गई? असल में, जिन 39 विधानसभा क्षेत्र के लिए भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने उम्मीदवारों की सूची जारी की है, वहां पार्टी बीते विधानसभा चुनाव में कमजोर थी. अधिकतर सीटों पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था. केंद्रीय कार्यालय में कुछ पार्टी नेताओं से चर्चा के दौरान यह बात सामने आईं कि उम्मीदवारों को अपने क्षेत्र में अधिक से अधिक समय मिले, इसलिए इन 39 सीटों का चयन किया गया है. अंतिम सूची आते-आते बहुत कम दिन चुनाव के लिए शेष रह जाते हैं. कई बार उतने कम दिनों में विधानसभा के हर गांव तक प्रत्याशी व्यक्तिगत रूप से जा नहीं पाते हैं. इसलिए जहां सबसे अधिक मेहनत और जनसंपर्क करने की आवश्यकता है, उसको ध्यान में रखकर पार्टी की ओर से यह निर्णय लिया गया है.

14 चेहरों को दोबारा मौका दिया गया
पहली सूची में 2018 का चुनाव हारने वाले 14 चेहरों को दोबारा मौका दिया गया है. इनमें चार पूर्व मंत्री ललिता यादव, लाल सिंह आर्य, ओम प्रकाश धुर्वे और नाना भाऊ मोहोड़ शामिल हैं. वहीं, 12 नए चेहरों को पेश किया गया है। 6 उम्मीदवार ऐसे हैं जिन्होंने 2013 का चुनाव लड़ा था, लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में उन्हें टिकट नहीं दिया गया. मध्य प्रदेश की इन 39 सीटों का विश्लेषण करें तो पता चलता है कि इनमें मालवा-निमाड़ की 11 सीटें शामिल हैं. ज्यादातर नाम महाकौशल और मालवा-निमाड़ क्षेत्र से हैं. सबसे कम उम्मीदवार विंध्य क्षेत्र से हैं. 39 में से चार टिकट महिलाओं को दिए गए हैं. पहली सूची में 13 सीटें अनुसूचित जनजाति और आठ सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. पार्टी ने सीटों को सी और डी कैटेगरी में बांटा है. सी श्रेणी में ऐसी सीटें हैं, जहां पार्टी दो या दो से अधिक बार हार चुकी है. अगर कभी हम जीतते भी हैं तो बहुत कम अंतर से डी श्रेणी की सीटें वे हैं, जिन पर कभी जीत नहीं हो सकी. मालवा-निमाड़ में कुल 66 सीटें हैं. जिन 11 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा की गई है, उनमें इंदौर की 1, खरगोन जिले की 2, देवास की 1, झाबुआ-अलीराजपुर की 3, धार की 2, उज्जैन की 2 सीटें शामिल हैं. इंदौर भाजपा ग्रामीण जिला अध्यक्ष राजेश सोनकर को देवास जिले की सोनकच्छ सीट से हटा दिया गया है। उन्हें सांवेर सीट से दावेदार माना जा रहा था, लेकिन कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए मंत्री तुलसी सिलावट वर्तमान में विधायक हैं. उन्हें सिंधिया समर्थक माना जाता है. समायोजन फार्मूले के तहत सोनकर को सोनकच्छ भेजा गया, जिससे दोनों पक्षों में समझौता हो गया है. टिकट बंटवारे के वक्ता बता रहे हैं कि बीजेपी की पूरी तस्वीर कैसी होगी.

भिंड के गोहद से पार्टी के अनुसूचित जाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मंत्री लाल सिंह आर्य को टिकट दिया गया है. इस सीट से सिंधिया समर्थक पूर्व विधायक रणवीर जाटव का टिकट काटा गया है. भाजपा की पहली लिस्ट में सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए एक पूर्व विधायक का टिकट कट गया है. भिंड जिले की गोहद सीट से कांग्रेस के टिकट पर 2018 में विधायक बने रणवीर जाटव को भाजपा ने उम्मीदवार नहीं बनाया है.

मध्य प्रदेश के नेताओं को कई बार दिल्ली बुलाया गया. पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने राय-मशविरा किया और पहली सूची के रूप में 39 नामों की घोषणा करके यह संकेत दे दिया है कि नेताओं के परिजन अपना टिकट पक्का मानकर नहीं बैठें. भाजपा के अलग-अलग खेमों को भी यह संकेत दिया गया है कि केवल जिताउ उम्मीदवार पर पार्टी विचार करेगी. प्रत्याशियों की घोषणा में फॉर्मूला लागू होता दिखाई नहीं दे रहा है. मसलन, नेताओं के परिजनों को भी टिकट दिया गया है. बागी चुनाव लड़ चुके भी प्रत्याशी बनाए गए हैं. संगठन के पदाधिकारियों को भी टिकट दिया गया है. नौकरी छोड़ने वाले और आप पार्टी से इस्तीफा देने वाले शाम को टिकट लेने वाले भी शामिल है. बालाघाट जिले की लांजी सीट से भाजपा ने राजकुमार कर्राये को टिकट दिया है. राजकुमार ने गुरुवार की सुबह ‘आप’ पार्टी से इस्तीफा दिया और शाम को 39 उम्मीदवारों की सूची में जगह मिल गई. वहीं, सिंधिया समर्थक पूर्व विधायक का भी टिकट काट दिया गया है. पार्टी ने परिवारवाद को भी दरकिनार करते हुए महेश्वर विधानसभा सीट से राजकुमार मेव को प्रत्याशी बनाया है. जो 2018 में पार्टी का टिकट ना मिलने पर बागी हो गए थे और निर्दलीय चुनाव लड़कर भाजपा के घोषित प्रत्याशी भूपेंद्र आर्य से ज्यादा वोट लिए थे और विजयलक्ष्मी साधो से चुनाव हारने के बाद लगातार क्षेत्र में सक्रिय है.

अमित शाह की रणनीति
पिछले दिनों पार्टी नेताओं की बैठक में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने जिस तरह के संकेत दिए थे. उसी के आधार पर टिकट वितरण दिखाई दे रहा है. उन्होंने कहा था कि  किसी नेता ने यदि किसी सीट को बिगाड़ दिया है तो उसको नई सीट बिगाड़ने का मौका ना देखकर पुरानी सीट पर ही चुनाव यदि लगाना जरूरी हुआ, तो लड़ाया जाएगा. भाजपा ने हारी सीटों पर लिए फीडबैक के आधार पर रणनीति बनाई और उसी के तहत चुनावों से करीब तीन महीना पहले 39 प्रत्याशियों के नाम घोषित कर दिए. तय माना जा रहा है कि दूसरी सूची भी जल्द ही भाजपा की ओर से जारी कर दी जाएगी. असल में, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मध्य प्रदेश की चुनावी रणनीति की कमान अपने हाथों में ले रखी है. फीडबैक के आधार पर टिकट की गाइडलाइन भी बनाई हैय पार्टी परिवारवाद और वंशवाद से दूर रहना चाहती है. इस वजह से जो बुजुर्ग नेता या विधायक अपने परिवार में टिकट मांग रहे हैं, उन्हें निराशा हाथ लग सकती है. पार्टी ने तय किया है कि 70 वर्ष से अधिक उम्र के नेताओं को टिकट नहीं दिया जाएगा. इससे गोपाल भार्गव समेत कम से कम दस विधायकों के टिकट कटने की संभावना बताई जा रही है. आठ बार के विधायक गोपाल भार्गव 72 के हो चुके हैं. पहली सूची में 39 में से दो उम्मीदवारों की आयु 70 वर्ष से अधिक है. इस आधार पर कहा जा रहा है कि जिताऊ प्रत्याशी के लिए उम्र के नियम को दरकिनार किया जा सकता है.

(सुभाष चंद्र राजनीतिक विश्लेषक और  वरिष्ठ पत्रकार हैं. विचार व्यक्तिगत हैं.)

 

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