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Jabalpur High Court: जनसंख्या नीति लागू न होने पर हाईकोर्ट सख्त, जवाब के लिए सरकार को दिया इतना वक्त

मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में 22 साल बीतने के बाद भी जनसंख्या नीति (Population Policy) (जनसंख्या नियंत्रण कानून Jansankhya Niyantran Kanoon) पूरी तरह से लागू नहीं होने पर जबलपुर हाईकोर्ट (Jabalpur High Court) ने सख्ती दिखाई है. एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने सरकार समेत अन्य पक्षों से जवाब मांगा है.

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Jabalpur High Court: जनसंख्या नीति लागू न होने पर हाईकोर्ट सख्त, जवाब के लिए सरकार को दिया इतना वक्त
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Zee Media Bureau|Updated: Dec 20, 2022, 10:43 AM IST

Jansankhya Niyantran Kanoon: अजय दुबे/जबलपुर(Jabalpur)। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (Madhya Pradesh High Court) ने जनवरी 2000 में प्रदेश में लाई गई जनसंख्या नीति (Population Policy) को पूरी तरह प्रदेश में लागू नहीं करने पर सख्ती दिखाई है. इस संबंध में लगाई गई एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने राज्य सरकार समेत अन्य विभागों से चार सप्ताह के अंदर जवाब मांगा है. इसमें याचिकाकर्ता की ओर से मुख्य सचिव, विधि विभाग के प्रमुख सचिव, महिला एवं बाल विकास विभाग तथा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के सचिव को अनावेदक बनाया गया है.

हाईकोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब
जबलपुर हाईकोर्ट ने 20 साल बाद भी जनसंख्या नीति लागू न किए जाने पर चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर राज्य शासन सहित अन्य को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब मांगा है. मुख्य न्यायाधीश रवि मलिमठ व न्यायमूर्ति विशाल मिश्रा की युगलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई की गई है. याचिकाकर्ता नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के प्रांताध्यक्ष पीजी नाजपांडे की ओर से अधिवक्ता सुरेंद्र वर्मा, देशपाल चौधरी व संजय सिंघई ने पक्ष रखा.

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जनता के लिए संसाधन हो रहे कम
याचिकाकर्ता ने कहा की जनसंख्या नीति ठंडे बस्ते में पड़ी है. जनसंख्या में इजाफे के चलते मध्य प्रदेश के संसाधन जनता के लिए नाकाफी साबित होते जा रहे हैं. सड़कों पर दबाव बढ़ा है. जनसंख्या के हिसाब से अन्य संसोधनों की किल्लत हो रही है. आलम यह है कि जहां एक ओर राष्ट्रीय जनसंख्या वृद्धि का प्रतिशत 17 है. वहीं मध्य प्रदेश में जनसंख्या वृद्धि का प्रतिशत 20 तक पहुंच गया है.

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22 साल में लागू नहीं हो पाई जनसंख्या नीति
प्रदेश में जनवरी 2000 में जनसंख्या नीति लाई गई थी, लेकिन उसे पूर्णत: लागू नहीं किया गया. 22 में इस नीति की न तो समीक्षा की गई और न ही विश्लेषण किया गया. याचिका के माध्यम से पीजी नाजपांडे ने इस नीति की समीक्षा और विश्लेषण करने की मांग की है, जिससे नीति की कमजोरियां सामने आ सके और लक्ष्य प्राप्त करने में आसानी हो.

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