trendingNow/india/madhya-pradesh-chhattisgarh/madhyapradesh11383157
Home >>Madhya Pradesh - MP

देश में विलुप्ति के कगार पर पहुंचा ये खूबसूरत जानवर, MP में हजारों की संख्या में ऐसे हुआ संरक्षण

प्रदेश के जंगलों में मौजूदा बाघ और चीतों के अलावा एक वन्य प्राणी और भी है, जो दुनिया मे लगभग विलुप्ति के कगार पर है, लेकिन मध्य प्रदेश के राष्ट्रीय उद्यानों में आज भी वो मौजूद है.

Advertisement
देश में विलुप्ति के कगार पर पहुंचा ये खूबसूरत जानवर, MP में हजारों की संख्या में ऐसे हुआ संरक्षण
Stop
Zee Media Bureau|Updated: Oct 06, 2022, 10:28 PM IST

Vimlesh Mishra/Mandla: वाइल्ड लाइफ( Wildlife) और वन्य प्राणियों के लिहाज से देश का हृदय प्रदेश 'मध्य प्रदेश' उनके लिए वरदान है. कुनो नेशनल पार्क में अफ्रीकन चीतों का आगमन और प्रदेश के पन्ना, बांधवगढ़, पेंच, सतपुड़ा व कान्हा नेशनल पार्कों में बाघों की मौजूदगी. प्रदेश को टाइगर स्टेट का दर्जा इस बात का सुबूत है कि दुनिया के शानदार वन्य जीवों के लिए यह प्रदेश उनके अनुकूल है. मध्य प्रदेश के राष्ट्रीय उद्यानों में कुछ ऐसे जानवार भी हैं, जो दुनिया में विलुप्ति के कगार पर आ गए हैं.

प्रदेश के जंगलों में मौजूदा बाघ और चीतों के अलावा एक वन्य प्राणी है बारहसिंघा. जहां बारहसिंघा देश से विलुप्त होने की कगार पर है वहीं प्रदेश के राष्ट्रीय उद्यानों में आज भी मौजूद है. वह हजारों की संख्या में, इसमें से सबसे खास है कान्हा नेशनल पार्क...

इस पार्क में मौजूद हैं ये जानवर 
कान्हा नेशनल पार्क के कर्मचारियों ने न केवल दुनिया मे विलुप्त होते इस दुर्लभ प्रजाति के प्राणी को सैकड़ों से हजारों तक पहुंचाया है, बल्कि इस बारहसिंघा की कान्हा पार्क प्रबंधन ने वंशवृद्धि कर प्रदेश के दूसरे पार्कों को भी बारहसिंघा से आबाद किया है.

क्यों पंहुचा विलुप्त होने की कगार में 
लोग शौकिया तौर पर वन्य जीवों का शिकार करते थे और उसपर कोई पाबंदी भी नहीं थी, जिसकी वजह से बारहसिंघा विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गए. इन्हें विलुप्त होते देख 1969, 70 के दशक में इनके संरकक्षण का प्रयास शुरू किया गया. इन्हें सुरक्षित रखने  में न सिर्फ कान्हा पार्क प्रबंधन की अहम भूमिका थी. बल्कि पार्क क्षेत्र के करीब 35 ग्रामों के ग्रामीणों की भी अहम भूमिका रही. जिन्होंने बारहसिंघा के लिए अपने गांव, घर - बार छोड़ दिए.

प्रजाति बचाने के लिए अन्य पार्कों में भेजा गया
सिर्फ कान्हा में ही बारहसिंघा रखना किसी खतरे से कम नही था. इस डर से कि कंही यह किसी बीमारी का शिकार न हो जाए इस वजह से इन्हें प्रदेश के वन विहार, सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में शिफ्ट किया गया. ताकि उनकी प्रजाति बची रहे और प्रदेश में इनकी पोपुलेशन बढ़ती रहे.

क्षेत्रिय ग्रामीणों का है अहम योगदान 
दुर्लभ प्रजाति के बारहसिंघे को बचाने में ग्रामीणों का अहम योगदान रहा है. इसके साथ ही वनकर्मी जोधा ने जंगल के खतरनाक बाघ, पेंथर, अजगर जैसे मांसाहारी जीवों से दिन रात खतरा मोल लेकर बारहसिंघों को बचाया है. 

जोधा कहते हैं कि जब उसने इनके संरकक्षण का काम शुरू किया था. तब इनकी संख्या सिर्फ 6 थी फिर 82 हुई और अब साढ़े नो सौ से हजार के करीब है.  जोधा के मुताबिक इन्हें बचाने के लिए कई बार उनका बाघ से भी सामना हुआ है. हम यह कह सकते है कि विलुप्त हो रहे बारहसिंघों को बचाने में जोधा का बड़ा योगदान है.

Read More
{}{}