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सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल, हिंदू की अर्थी को मुस्लिम परिवार ने दिया कंधा

Hindu Muslim Relation Gwalior: मध्य प्रदेश के ग्वालियर इंसानियत की एक सुंदर तस्वीर सामने आई है. जहां एक हिंदू बुजूर्ग महिला के निधन के बाद उसका उसे मुस्लिम परिवार के लोगों ने कंधा दिया.

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सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल, हिंदू की अर्थी को मुस्लिम परिवार ने दिया कंधा
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Shubham Tiwari|Updated: Jan 13, 2023, 08:56 PM IST

करतार सिंह राजपूत/ग्वालियर: जिले में साप्रदायिक सौहार्द की मिसाल देखने को मिली है. जहां 90 साल की बुजूर्ग हिंदू महिला की मौत के बाद उसे अपनों ने नहीं, बल्कि एक मुस्लिम परिवार ने कंधा दिया. बुजूर्ग महिला का कोई बेटा नहीं था, इकलौती बेटी थी, जिसने मुखाग्नि दी. इतना ही नहीं बताया जा रहा है कि पिछले आठ नौ महीने से मुस्लिम परिवार ही बुजूर्ग बीमार महिला की देख-रेख कर रहे थे.

मुस्लिम युवा बनें सहारा
गुरुवार को न्यू रेलवे कॉलोनी में रहने वाली 90 वर्षीय रामदेही माहौर ने अपनी झोपड़ी में दम तोड दिया. बताया जा रहा है कि पिछले कुछ महीनों से वह बीमार चल रही थी. पति की मौत हो चुकी है. ऐसा नहीं की रामदेही का ग्वालियर में कोई रिश्तेदार ना हो. उसके भतीजे न्यू रेलवे कॉलोनी से लगभग 200 मीटर दूरी पर रहते हैं. बुजुर्ग महिला की एक बेटी शीला है, जो दिल्ली के मंगोलपुरी इलाके में ब्याही है. शीला कुछ दिनों पहले ही दिल्ली गई थी. बताया जा रहा है भतीजे बुजुर्ग महिला से मारपीट किया करते थे, इसलिए उसने उनका घर छोड़ दिया था. 

बेटी के आने पर हुआ अंतिम संस्कार
इसके बाद रामदेही का सहारा बने नगर निगम में कार्यरत शाकिर खान. शाकिर ने घर के समीप ही पड़ोसियों की मदद से बुजुर्ग महिला के लिए एक झोपडी बना दी थी. रामदेही पिछले आठ नौ महीने से बीमार थी, शाकिर का परिवार पूरी शिद्दत के साथ उनकी देखरेख कर रहा था. गुरुवार को उनकी मौत हो जाने के बाद अंतिम संस्कार कैसे हो और कौन करेगा, ये संकट खड़ा हो गया. शाकिर ने रामदेही की बेटी शीला को दिल्ली में सूचना दी. शीला की भी आर्थिक स्थिति कमजोर है. लिहाजा बुजूर्ग मां की सेवा नहीं कर पाने का उसको भी मलाल था. हालांकि कुछ दिनों पहले ही शीला दिल्ली अपने ससुराल गई थी. मां के शांत होने की सूचना मिलते ही शीला ग्वालियर पहुंची.

मुस्लिम समाज ने हिन्दु रीति रिवाज से दिया कंधा
रामदेही हिन्दू थी इसलिए शाकिर ने हिन्दू रीति रिवाज से ही उसका अंतिम संस्कार करने की व्यवस्था की. अन्तिम यात्रा के दौरान कोई कंधा देने वाला नहीं था. ऐसे में शाकिर उसके भाई मफदूत, मासूम और इरफान खान के साथ मिलकर उसने कंधा दिया. महिला बुजुर्ग थी तो बेड की व्यवस्था की गई और मातमी धुन के बीच रामदेही की अंतिम यात्रा निकाली गई. शमशान पहुंचकर बेटी शीला ने मां को मुखाग्नि दी.

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