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Ujjain Mahakal Holi: महाकाल की नगरी में हुई रंगों के पर्व की शुरुआत, सर्वार्थ सिद्धि योग में लगाया गया होली का डांडा

आज यानी 05 फरवरी को माघ माह के पूर्णिमा तिथि पर पुष्य नक्षत्र, आयुष्मान योग और सर्वार्ध सिद्धि योग में महाकाल की नगरी होली का डांडा गाड़ने की खास परंपरा को निभाया गया. आज के ठीक 1माह बाद होली का पर्व मनाया जाएगा.

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Ujjain Mahakal Holi: महाकाल की नगरी में हुई रंगों के पर्व की शुरुआत, सर्वार्थ सिद्धि योग में लगाया गया होली का डांडा
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Shubham Tiwari|Updated: Feb 05, 2023, 03:41 PM IST

राहुल सिंह राठौड़/उज्जैन: धार्मिक नगरी उज्जैनी अवंतिका में हर एक पर्व का अपना अलग महत्व है. प्राचीन काल से निभाई जा रही एक खास परंपरा को आज विधि पूर्वक निभाया गया. होली पर्व के 1माह पहले होलिका डांडा श्री महाकाल मंदिर परिसर सहित जगह जगह सनातन धर्म को मानने वालो द्वारा गाड़ा गया. अब इसी जगह 1माह बाद होलीका का दहन होगा और अगले दिन लोग होली पर्व मनाएंगे. साथ ही आज के दिन शिप्रा के अलग-अलग घाटों पर पण्डित व ज्योतिष अमर डब्बेवाला के अनुसार बड़ी संख्या में लोग स्नान, दान पुण्य का लाभ लेने पहुंचे.

धार्मिक दृष्टिकोण से आज का दिन महत्वपूर्ण
पंडित व ज्योतिष अमर डब्बेवाल ने बताया कि माघ मास के शुक्ल पक्ष पर पुष्य नक्षत्र, आयुष्मान योग और कर्क राशि के चंद्रमा के साक्षी में माघी पूर्णिमा का सर्वार्थ सिद्धि योग है. आज का दिन धार्मिक दृष्टि कोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण है. आज के दिन माघ माह में स्नान की परंपरा को पूर्ण नहीं कर पाए हैं, वे माघी पूर्णिमा पर तीर्थ स्नान, दान, पितरों का तर्पण तथा गायों को घास खिलाने की धार्मिक क्रियाएं संपादित कर सकते हैं. इस धर्म कार्य से माघ मास में स्नान, दान, पितृकर्म तथा गो सेवा का पूर्ण फल प्राप्त होता है. इसके साथ ही होलिका डांडा शहर के अलग-अलग जगह गाड़ा गया है.

यहां होती है सबसे बड़ी होली
महाकाल की नगरी उज्जैन में सबसे बड़ी होली श्री महाकाल मंदिर व सिंह पूरी क्षेत्र में होती है. स्कंद पुराण के अनुसार मान्यता देखें तो अवंती खंड में अष्ट महादेव की परंपरा है. भैरो में एक श्री अकाल पाताल महा भैरव के प्रांगण में शहर की सबसे बड़ी होलिका का निर्माण होता है. यहां पर 5000 कंडा की होली बनती है. परंपरा अनुसार डांडा रोपनी पूर्णिमा पर डांडा रोपा गया. आज से 1 माह के बाद होलीका दहन कर होलि पर्व मनाया जाएगा. इस परंपरा में गड्ढा खोदा जाता है और उसमें डांडा गाड़ा जाता है. मालवा में डांडा गाड़ना और गड्ढा खोदना दोनों की परंपरा है.

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