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MP में ही खत्म हुए, अब यहीं से शुरू होगी चीतों की कहानी, जानिए कैसे मारे गए भारत के आखिरी तीन चीते?

Cheetah in India: मुगल बादशाह अकबर के पास 1000 चीते थे. ये चीते पालतू थे और इनका इस्तेमाल शिकार आदि में किया जाता था. अकबर के बेटे जहांगीर के पास भी करीब 400 चीते थे. हालांकि पकड़कर पालतू बनाए जाने, शिकार के चलते देश के चीतों की संख्या लगातार कम होती गई.

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MP में ही खत्म हुए, अब यहीं से शुरू होगी चीतों की कहानी, जानिए कैसे मारे गए भारत के आखिरी तीन चीते?
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Nitin Gautam|Updated: Sep 17, 2022, 07:47 AM IST

नई दिल्लीः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी 17 सितंबर को नामीबिया से लाए जा रहे 8 चीतों को जंगल में छोड़ेंगे. कई मायनों में यह ऐतिहासिक पल होगा क्योंकि हमारे देश में चीते विलुप्त हो चुके थे. बताया जाता है कि जब देश आजाद हुआ था तो उसी दौरान भारत के एक राजा ने आखिरी तीन चीतों का शिकार कर लिया था, जिसके बाद भारत में कई चीतों को नहीं देखा गया. तो आज हम जानेंगे कि भारत में क्या है चीतों का इतिहास और आखिरी तीन चीतों की क्या है कहानी?

छत्तीसगढ़ के राजा ने किया था शिकार
ऐसा माना जाता है कि भारत के आखिरी तीन चीतों का साल 1947 या फिर 1948 में शिकार किया गया था. यह शिकार सरगुजा स्टेट की कोरिया रियासत के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने किया था. आज यह रियासत छत्तीसगढ़ का हिस्सा है लेकिन आजादी के वक्त यह मध्य प्रदेश का हिस्सा थी. महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव की तीन चीतों के शिकार की तस्वीर बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के पास जमा है. बताया जाता है कि कोरिया रियासत के ग्रामीणों ने महाराजा से शिकायत की थी कि कोई जंगली जानवर उनके मवेशियों को मार रहा है. साथ ही जंगली जानवर कुछ ग्रामीणों को भी मार चुके हैं. जिसके बाद ही महाराजा रामानुज प्रताप सिंह ने तीन चीतों का शिकार किया लेकिन उसके बाद कभी भी भारत में चीते नहीं देखे गए और कुछ समय बाद चीतों को देश से विलुप्त घोषित कर दिया गया. 

ये भी माना जाता है कि कोरिया रियासत के पास ही एक और रियासत है अंबिकापुर, वहां के राजा थे रामानुज शरण सिंह देव. अंबिकापुर के राजा ने बड़ी संख्या में शेरों का शिकार किया था.ऐसे में मान्यता ये भी है कि अंबिकापुर के राजा ने आखिरी तीन चीतों का शिकार किया हो लेकिन एक जैसा नाम होने के चलते कन्फ्यूजन होता है कि आखिर किस राजा ने चीतों का शिकार किया. 

भारत में चीतों का इतिहास
एक समय पूरे भारत में चीतों की भरमार थी फिर चाहे वो पहाड़ी, तटीय या फिर मैदानी इलाके हों. एक्सपर्ट्स का कहना है कि चीता शब्द संस्कृत के शब्द चितराका शब्द से बना. भोपाल और गांधीनगर में नवपाषाणकाल की गुफाओं में भी चीतों की तस्वीरें मिली हैं. 

The End of a Trail – The Cheetah in India  के लेखक दिव्यभानुसिंह के अनुसार, मुगल बादशाह अकबर के पास 1000 चीते थे. ये चीते पालतू थे और इनका इस्तेमाल शिकार आदि में किया जाता था. अकबर के बेटे जहांगीर के पास भी करीब 400 चीते थे. हालांकि पकड़कर पालतू बनाए जाने, शिकार के चलते देश के चीतों की संख्या लगातार कम होती गई. जब आजादी के बाद भारत में चीते विलुप्त हो गए तो साल 2009 में फिर से चीतों को बसाने पर विचार हुआ. इसके बाद 2010-2012 के बीच देश में करीब 10 स्थानों का सर्वे किया गया, जहां चीतों को ठहराया जाएगा. आखिरकार कूनो नेशनल पार्क के नाम पर सहमति बन गई. नामीबिया से भारत आने वाले चीतों में 5 मादा हैं. 16 सितंबर को चीतों को लेकर विशेष विमान जयपुर एयरपोर्ट पहुंचेगा. वहां से 17 सितंबर को इन चीतों को इनके नए घर में कूनो नेशनल पार्क में लाया जाएगा. 

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