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जमीनी विवाद में खूब चली गोलियां, जानिए अब तक चंबल की गोलीबारी में कितनों ने गंवाई जान

  गोली और बोली के लिए बदनाम चंबल एक बार फिर गोलियों की गूंज से दहल गया है. मुरैना जिले के सिहोनियां थाना अंतर्गत आने वाली लेपा गांव में पुराने जमीनी विवाद के चलते एक ही परिवार की एक साथ 6 लोगों की गोलियों से भूनकर हत्या करने का मामला सामने आया है.

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जमीनी विवाद में खूब चली गोलियां, जानिए अब तक चंबल की गोलीबारी में कितनों ने गंवाई जान
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Shikhar Negi|Updated: May 06, 2023, 06:24 AM IST

प्रदीप शर्मा/भिंड:  गोली और बोली के लिए बदनाम चंबल एक बार फिर गोलियों की गूंज से दहल गया है. मुरैना जिले के सिहोनियां थाना अंतर्गत आने वाली लेपा गांव में पुराने जमीनी विवाद के चलते एक ही परिवार की एक साथ 6 लोगों की गोलियों से भूनकर हत्या करने का मामला सामने आया है. लोगों को किस कदर गोलियों से भूना जा रहा है. इसका वीडियो भी सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है. इसी कड़ी में जानिए कि चंबल के भिंड जिले में हुई जमीनी विवाद में अब तक कितनों की हत्या की जा चुकी हैं.

चंबल अंचल में जर, जोरू और ज़मीनी विवादों ने अनगिनत डकैत पैदा कर दिए, लेकिन समय के साथ साथ डकैत ख़त्म हो गए. लेकिन हथियारों की होड़ का मोह आज तक ग्वालियर चम्बल अंचल के लोगों से दूर नहीं हो सका है. आज भी छोटी सी बात पर लोगों का खून खौल जाता है और अगर हाथ में बंदूक़ हो तो चलाने में कोई संकोच नहीं करता है, परिणाम चाहे जो भी हो. आज अंचल के मुरैना में हुई हत्याकांड की यह कोई पहली घटना नहीं है. जिसमें एक साथ इतने लोगों को गोलियों से भून कर मौत के घाट उतार दिया गया हो. इससे पहले भी भिंड जिले में इस प्रकार की कई घटनाएं सामने आ चुकी है. जिन में जमीनी विवाद को लेकर हुए संघर्ष में दर्जनों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था. कई लोग तो बंदूक उठा कर चंबल में कूद गए थे वह डकैत बन गए थे.

1987 में मेहगांव के गितौर गांव में हुआ हत्याकांड
दरअसल मेहगांव थाना क्षेत्र के गितौर गांव 1987 में पांच लोगों की गोलियों से भूनकर हत्या कर दी गई थी. ये विवाद दो पक्षों में हुआ था. जिसकी शुरुआत 1986 में हुई थी. जमीनी विवाद में गांव के रामनारायण सिंह के खेत पर खड़े ट्रेक्टर में विरोधी सरनाम सिंह और उनके परिवार के लोगों ने आग लगा दी. विवाद हुआ दोनों और से फ़ायरिंग शुरू हुई. जिसमें रामनारायण सिंह के पक्ष की गोली से सरनाम सिंह की मौत हो गई. यहीं से मौत का खेल शुरू हुआ. रामनारायण सिंह के परिवार के सदस्य गितौर के पूर्व सरपंच जय सिंह गुर्जर ने बताया कि सरनाम सिंह की मौत का बदला लेने के लिए 28 जुलाई 1987 को जब परिवार के लोग ट्रेक्टर पर बैठ कर भिण्ड से घर आ रहे थे तो धनौली के पेढ़ा (तिराहा) के पास पहले से घात लगाए बैठे विरोधियों ने ट्रैक्टर में बैठे पांचों सदस्यों की गोली मारकर हत्या कर दी थी. जिसमें रामनारायण सिंह, उनका बेटा सुरेश सिंह, परिवार के सदस्य प्रहलाद सिंह, वीरेंद्र सिंह और पुरंदर सिंह मारे गए थे. 

लेकिन अब ये बदले की आग यहां पर भी नही रुकी. पांच हत्याएं करने के बाद भी हत्यारे शांत नहीं हुए एक बार फिर 1996 में दोनों पक्षों ने एक दूसरे पर गोलियां बरसायीं. जिसमें एक बार फिर जमीन जोतते समय ट्रेक्टर पर पूर्व में मारे गए प्रह्लाद का भाई उदयभान सिंह और साथी शिवराती मारा गया. साथ ही शहज़ाद भी गोली लगने से घायल हुआ. 1998 और 2003 में भी दोनों पक्षों में गांव में फ़ायरिंग हुई. 2004 में विरोधियों ने गांव के बाबू सिंह नाम के एक शख़्स की हत्या कर पूर्व सरपंच जय सिंह गुर्जर को हत्या के आरोप में फंसाने की कोशिश की . क़रीब एक दशक पहले पुलिस की पहल से दोनों पक्षों के बीच अनौपचारिक राजीनामा हुआ. लेकिन तब तक इस रंजिश में 8 लोगों की हत्या हो चुकी थी.

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1990 का भिण्ड के मेहगांव इलाके का पचेरा हत्याकांड
ज़िले में दूसरी बड़ी घटना मेहगांव के ही ग्राम पचेरा की है. यहां 1990 में गांव में रहने वाले नरेंद्र त्यागी और लक्ष्मीनारायण बोहरे के बीच ज़मीन की ख़रीद फ़रोख़्त को लेकर ठन गई थी. इसी टशन में लक्ष्मी नारायण बोहरे की और से उनके साथी रामजी बोहरे ने नरेंद्र त्यागी के भाई विद्यासागर की गोली मार कर हत्या कर दी थी. घटना के दौरान ही नरेंद्र त्यागी और उनके परिवार के लोगों ने उसे पकड़कर मौत के घाट उतार दिया और लाश को सेंवडा में सिंध के पुल से नदी में फेंक दिया था. कुछ दिन बाद उसका शव पुलिस ने बरामद किया. लेकिन बदले की आग शांत नहीं हुई. लगभग दो साल बाद 20 अक्टूबर 1992 को नरेंद्र, शिवनारायण, प्रेम सागर और साथियो ने मेहगांव के बाजार में स्थित अस्पताल के सामने लक्ष्मीनारायण बोहरे के घर के बाहर पहुंचे और ताबड़तोड़ फ़ायरिंग शुरू कर दी. 

इस फ़ायरिंग में लक्ष्मीनारायण बोहरे का भाई मूर्तराम, भतीजी स्नेहलता और ड्राइवर इकबाल ख़ान मारे गये. वहीं राम अवतार बोहरे गोली लगने से घायल हुए. मामले में पुलिस ने नरेंद्र एंड कंपनी की गिरफ़्तारी की. परिवार के ज़्यादातर सदस्यों को जेल जाना पड़ा. लेकिन एक जनवरी 2023 को जेल से बाहर आने के 15 दिनों बाद ही नरेंद्र और उनके परिवार ने जिसमें उनसे परिवार से पूर्व सरपंच निशांत त्यागी ने चुनावी रंजिश में 15 जनवरी को गांव के हाकिम, गोलू और पिंकु त्यागी को गोलियों से भून कर मौत के घाट उतार दिया.

2021 पावई हत्याकांड
साल 2021 में पावई क्षेत्र के ग्राम डिडौना में भी ज़मीन विवाद ने कमलेश सैंथिया और उनके बेटे प्रदीप की हत्या करा दी थी, लेकिन सनसनी इस बात पर फैली थी कि उन्हें मारने वाला भी कोई और नहीं बल्कि उनका अपना भतीजा भजनलाल शर्मा था. जिसने गोली मारकर हत्या की. यह डबल मर्डर ज़मीन के बंटवारे को लेकर हुआ था. हालांकि इस दोहरे हत्याकांड के आरोपी को कोर्ट ने आजीवन कारावास के लिए भेज दिया है.

ज़मीनी विवादों ने चम्बल में पैदा किये बागी
1960 से लेकर 2005 तक कहा जाता था कि चंबल की भूमि अन्न नहीं बल्कि डकैत पैदा करती है. चम्बल वह क्षेत्र हैं, जहां ज़मीनी विवादों की वजह से कई डकैत और बाग़ी अस्तित्व में आये. इनमें डकैत मोहर सिंह और डाकू मलखान सिंह वे नाम थे जिन्होंने पूरे देश में अपने नाम का ख़ौफ़ बरपाया. बताया जाता है कि डकैत मोहर सिंह गोहद क्षेत्र के ग्राम जटपुरा के रहने वाले थे. उनके परिवार में ही ज़मीन को लेकर आपसी विवाद था. साल 1955 में पारिवारिक विवाद पुलिस तक पहुंचा. जब पुलिस ने भी साथ नहीं दिया तो मजबूरन मोहर सिंह को बंदूक उठानी पड़ी और दुश्मनों से बदला लेने के लिए उन्होंने फ़ायरिंग भी की. इसके बाद वो बीहड़ों में चले गए. फिर साल 1972 में उन्होंने सरेंडर किया. उस दौरान उनके ऊपर हत्या के 400 केस थे और सिर पर ढाई लाख का इनाम था. लेकिन वे सरेंडर कर आख़िर में जेल चले गये. वहीं भिंड के बिलाव के रहने वाले डाकू मलखान सिंह भी जमीनी विवाद के चलते गांव के ही एक व्यक्ति की हत्या कर बंदूक उठाकर चंबल का रुक कर गए थे. 

ग्वालियर चंबल-अंचल में हथियारों की स्थिति
सरकार आत्मरक्षा के लिए बन्दूकों के लाइसेंस कड़ी प्रक्रिया के बाद जारी करती है. फिर भी ग्वालियर चम्बल अंचल में हथियारों के लाइसेंस की संख्या कम नहीं है. जिनमें ग्वालियर जिला सबसे ऊपर, दूसरे पर मुरैना तो भिंड तीसरे स्थान पर आता है. आंकड़ों की बात करें तो वर्तमान में ग्वालियर जिले में अबतक कुल जारी लाइसेंस की संख्या 34,934 है. दूसरे नंबर पर मुरैना जिला है, जहां आर्म्स डिपार्टमेंट द्वारा जारी लाइसेंस की संख्या क़रीब 30 हजार से अधिक है. जो दिन पर दिन बढ़ रही है. वहीं तीसरे नंबर पर भिंड जिला है. जहां आज तक क़रीब 24 हजार आर्म लाइसेंस जारी हो चुके हैं. हालांकि वैध हथियार नहीं मिलने पर लोग अवैध हथियार भी रखते हैं. अंचल में लाइसेंसी हथियारों के मुक़ाबले चार गुना अवैध हथियार है. अंचल में शायद ही ऐसा कोई गांव हो जहां इन हथियारों की गूंज सुनाई ना देती हो. सरकार भले ही ये लाइसेंस हथियारों से आत्मरक्षा के लिए देती हो लेकिन मुरैना में जिस तरह रायफल से प्री प्लान तरीके से आधा दर्जन लोगों को लोगों को मौत के घाट उतर दिया गया. ऐसे में इनका उपयोग अब आत्मरक्षा के लिए तो कहीं से नज़र नही आ रहा है.

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