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150 दिन.. 12 राज्य.. 3570 किलोमीटर और चेहरा एक... राहुल गांधी

Bharat Jodo Yatra: राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने 7 सितंबर को कन्याकुमारी से भारत जोड़ो यात्रा शुरू की, जो जम्मू-कश्मीर में खत्म हो रही है. विपक्ष के आरोपों के चक्रव्यूह को तोड़ यात्रा पूरे लाव-लश्कर के साथ आगे बढ़ती रही और भरपूर जनसमर्थन पाती गई. 150 दिन, 12 राज्य और 3570 किलोमीटर के इस ऐतिहासिक सफर में राहुल गांधी के कई रूप देखने को मिल रहे हैं. डालिए एक नजर...

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150 दिन.. 12 राज्य.. 3570 किलोमीटर और चेहरा एक... राहुल गांधी
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Divya Tiwari Sharma |Updated: Jan 30, 2023, 12:01 PM IST

Rahul Gandhi Bharat Jodo Yatra: कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और सांसद राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने 7 सितंबर को कन्याकुमारी से जब भारत जोड़ो यात्रा शुरू की तो कई तरह के सवाल खड़े किए गए. सबसे बड़ा सवाल देश के युवराज कहे जाने वाले राहुल लगातार 150 दिन में 12 राज्य और 3570 किलोमीटर की ये यात्रा पूरी कर पाएंगे. क्या वो सच में पूरी यात्रा में पैदल चलेंगे. सवाल उठे कि ये नाम ही क्यों, जोड़ना किसे है. कभी राहुल के टी शर्ट पर तंज तो कभी यात्रा के साथ चल रहे कंटेनरों पर सवाल खड़े किए गए. लेकिन हर हमले, हर कटाक्ष को नजरअंदाज कर यात्रा आगे बढ़ती गई और ताल ठोकती गई. यात्रा जैसे जैसे पूरे लाव-लश्कर के साथ आगे बढ़ी, उसे बड़ी संख्या में जनसमर्थन मिलता गया. लंबे समय बाद कांग्रेस की इस यात्रा को कुछ मायनों में अलग कहा जा सकता है. एक ओर पार्टी इसे गैर-राजनीतिक पहल बता रही है. दूसरी तरफ राजनीतिक एक्सपर्ट इसमें मोदी सरकार (Modi Government) की जड़ें कमजोर करने वाली क्षमता भी देख रहे हैं.

सवालों के चक्रव्यूह से परे 'भारत जोड़ो यात्रा'
सितंबर की उमसभरी गर्मी में जब भारत छोड़ो यात्रा पटल पर आई तो सियासी पसीना दिल्ली ही नहीं हर राज्य में बहने लगा. राहुल गांधी की इस सकारात्मक अप्रोच से तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर से लेकर दिल्ली तक में हलचल मच गई. विपक्ष ने भारत जोड़ो यात्रा को गांधी जी के समय से आज तक के कई आंदोलनों से जोड़ दिया और सवालों के चक्रव्यूह में उलझाने की भरपूर कोशिश की, लेकिन उम्मीद से बिलकुल परे राहुल राजनीतिक बयानबाजियों में ना पड़ते हुए जनता के बीच पहुंचे और उन्हें आमजन ने भी भरपूर समर्थन दिया. यात्रा ने कई आरोपों का भी सामना किया और आज भी सवालों के घेरे में है. लेकिन इसके बावजूद हर वर्ग और हर तबका इस समय 'हाथ' के साथ है, इस सच को नकारा नहीं जा सकता.

सोनिया गांधी ने यात्रा को दिए नए आयाम?
कांग्रेस की आलाकमान सोनिया गांधी लंबे समय से हर तरह के सार्वजनिक कार्यक्रमों से दूर हैं. ऐसे में जब वो वही पुराना जोश लिए बेटे के साथ कदमताल करने के लिए सड़कों पर उतरी तो यात्रा को जैसे नए आयाम मिल गए. मीडिया में वो फोटो कई दिनों तक छाई रही जिसमें राहुल मां के जूते के फीते बांधते दिखे थे. बीजेपी समर्थकों ने इसे पब्लिसिटी स्टंट बताया तो कांग्रेस ने पीएम मोदी की मां के पैर छूते तस्वीर ट्वीट कर आईना दिखा दिया. बेटी प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के भारत छोड़ो यात्रा में शामिल होने पर खुशी जाहिर की. उन्होंने दावा किया कि इससे पूरा देश एक सूत्र में जुड़ेगा, मजबूती से आगे बढ़ेगा’

कई मायनों में अहम 
आज के राजनीतिक परिदृश्य पर नजर डालें तो देश में केवल दो राज्यों में कांग्रेस की सरकार है और दो राज्यों में गठबंधन के साथ सरकार चला रहे हैं. 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद 2022 तक 50 चुनाव हुए. इसमें से 39 चुनाव कांग्रेस हार गई. ऐसे में आने वाले राज्यों के विधानसभा और 2024 लोकसभा में वापसी करने के लिए राहुल गांधी के नेतृत्व में शुरू की ये यात्रा बेहद अहम है. एक तरफ कांग्रेस में नॉन गांधी अध्यक्ष चुने गए दूसरी तरफ गेम चेंजिंग साबित हो सकती इस यात्रा की कमान राहुल के कंधों पर डालना, जिम्मेदारी कई गुना बढ़ जाती है. एक तरफ 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी के सामने नेतृत्व के लिए खुद को साबित करना दूसरी तरफ पार्टी में बिखराव की खबरों का जवाब देना. सत्तापक्ष के साथ जनता की नज़रें भी राहुल पर टिकी हैं. इन सब चुनौतियों का सामना राहुल अपनी चिर परिचित मुस्कान और हाथों में पार्टी के झंडे की जगह तिरंगा लेकर कर रहे हैं.

2023 चुनाव में यूं साधेंगे वोटबैंक
यात्रा में लोहियावादी, वामपंथी, समाजवादी संगठनों, मनोरंजन जगत, कांग्रेस के आलोचक सहित समाज के हर वर्ग को जुड़ने के लिए आमंत्रण भेजा गया और लोग आगे भी आ रहे हैं. साथ ही हर राजनीतिक पार्टियों के जुड़ने का विकल्प भी कांग्रेस ने खुला रखा. 23 नवंबर को यात्रा देश के दिल यानि मध्य प्रदेश में एंट्री कर चुकी है. अगले साल प्रदेश में चुनाव है. इसे ध्यान में रखते हुए यात्रा पहले उज्जैन में महाकाल मंदिर भी जाएगी, नर्मदा पूजन कर ब्राहम्णों को साधेगी. दूसरी तरफ बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की जन्मस्थली महू से दलित और आदिवासी वोटर्स को भी प्रभावित करेगी. यात्रा का समापन जम्मू-कश्मीर में तिरंगा लहराकर होगी. 

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