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Women Day Special: दिव्यांगता की चुनौती से पार कइयों से आगे है सूरजपुर की बिटिया शीतला; पढ़िए पूरी कहानी

Women Day Special Story: महिला दिवस पर पढ़िए छत्तीसगढ़ के सूरजपुर की बिटिया शीतला विश्वकर्मा की कहानी जिसने दिव्यांगता के अभिशाप को चुनौती मानकर उससे आगे निकल गई है और कई लोगों के लिए अबप प्रेरणा का स्रोत बनी है.

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Women Day Special: दिव्यांगता की चुनौती से पार कइयों से आगे है सूरजपुर की बिटिया शीतला; पढ़िए पूरी कहानी
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Shyamdatt Chaturvedi|Updated: Mar 08, 2024, 12:01 AM IST

Women Day Special Story: सूरजपुर। दिव्यांगता अभिशाप नहीं एक चुनौती है. इसे अपने शिक्षा और हिम्मत से पार किया जा सकता है और खुद को सामाजिक जीवन के विकास की मुख्यधारा से जोड़ा जा सकता है. इसे सही साबित किया है सूरजपुर की बिटिया शीतला विश्वकर्मा ने जो बिना हाथ के भी हाथ वालों से कई आगे निकल गई है. आइये महिला दिवस पर जानते हैं सूरजपुर के एक छोटे से गांव कल्याणपुर के शीतला विश्वकर्मा की पूरी कहानी.

मिसाल साबित हो रही है बच्ची
सूरजपुर के एक छोटे से गांव में रहने वाली 13 वर्षीय बच्ची जो दोनों हाथ और पैर से पूरी तरह से विकलांग है. यह अपनी विकलांगता को कमजोरी न मानकर उसे अपनी ताकत बना ली है और आज वह आम लोगों की तरह जिंदगी जी रही है. साथ ही अन्य लोगों के लिए यह एक मिसाल साबित हो रही है.

खुद को बेहतर बनाया
कल्याणपुर में रहने वाली 13 वर्षीय बच्ची शीतला विश्वकर्मा जन्मजात दिव्यांग है. उसके दोनों हाथ और एक पैर नहीं है. फिलहाल वह आठवीं कक्षा में पढ़ रही है और अपने स्कूल की टॉपर छात्रा है. इतना ही इसकी रुचि ड्राइंग, डांसिंग और सिंगिंग में भी है. बचपन में यह अपनी दिव्यांगता को अभिशाप मानती थी लेकिन इस चुनौती को स्वीकार किया और आज शीतला खुद को अन्य बच्चों से बेहतर बना ली है.

बेटी को बनना है IAS
शीतला अपना पूरा काम खुद करती है. हालांकि, इसमें उसके स्कूल के बच्चे भी उसका सहयोग करते हैं. स्कूल की एक लड़की प्रतिदिन उसको ट्राई साइकिल से स्कूल लाने और ले जाने का काम करती है. शीतल आगे चलकर आईएएस अधिकारी बनना चाहती है और उसे इस बात का जरा भी मलाल नहीं है कि वह दिव्यांग है.

ब्रिलियंट छात्रा है शीतला
शीतला सभी के लिए एक मिसाल बनी हुई है. लेकिन, जब उसका जन्म हुआ था तो स्थिति ऐसी नहीं थी. शीतल के मां के अनुसार जब उसका जन्म हुआ था तब उनके रिश्तेदारों ने यह सलाह दी थी की बच्ची को भोजन, पानी न दें ताकि उसकी मौत हो जाए. यह करने को एक मां का दिल नहीं माना और आज यह शीतला इस परिवार की पहचान बन गई है. स्कूल के शिक्षक भी शीतला से काफी खुश रहते हैं. उनके अनुसार वह स्कूल की सबसे ब्रिलियंट छात्रा है.

दृढ़ संकल्प से किसी भी मुकाम को हासिल किया जा सकता है. इसका बहुत बड़ा उदाहरण है शीतला. आज यह 13 वर्ष की बच्ची उन लोगों के लिए बहुत बड़ी मिसाल है जो दिव्यांगता को कमजोरी मानकर हार मान जाते हैं. शीतला के इस जज्बे को सलाम...

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