trendingNow/india/madhya-pradesh-chhattisgarh/madhyapradesh11274611
Home >>Chhattisgarh

Kargil Vijay Diwas: छत्तीसगढ़ के प्रेमचंद पांडेय की कहानी, 600 राउंड फायर कर पाकिस्तानियों को खदेड़ा

Kargil Vijay Diwas पर आज पूरा देश करगिल युद्ध में वीरता का पराक्रम दिखाने वाले शहीदों को याद कर रहा है. कुछ ऐसा ही पराक्रम दिखाया था छत्तीसगढ़ के कोरबा में रहने वाले प्रेमचंद पांडेय ने जिन्होंने इस युद्ध में अहम भूमिका निभाई थी.

Advertisement
Kargil Vijay Diwas: छत्तीसगढ़ के प्रेमचंद पांडेय की कहानी, 600 राउंड फायर कर पाकिस्तानियों को खदेड़ा
Stop
Zee Media Bureau|Updated: Jul 26, 2022, 01:54 PM IST

नीलमदास पडवार/कोरबा। पूरा देश आज करगिल विजय दिवस Kargil Vijay Diwas मना रहा है. आज पूरा देश 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच लड़े गए युद्ध में देश के लिए शहीद होने वाले अपने वीर जवानों को याद करता है. भारतीय वीर जवानों ने पाकिस्तानी सेना द्वारा घुसपैठ कर जिन जगहों पर कब्जा किया था, वहां से उन्हें खदेड़कर फिर से तिरंगा फहराया था. इस युद्ध में छत्तीसगढ़ के भी की वीर जवानों ने अदम्य साहस दिखाया था. आज हम आपको छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के ऐसे ही एक वीर सपूत की कहानी बताने जा रहे हैं. देश आज करगिल की 23वीं वर्षगाठ मना रहा है. 

कोरबा के प्रेमचंद पांडेय की कहानी
छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के तोपची प्रेमचंद पांडेय ने भी कारगिल युद्ध मे हिस्सा लिया था. प्रेमचंद पांडेय 1995 में सेना मे भर्ती हुए थे. जिन्होंने 26 मार्च 1996 में ज्वाइन कर जनरल ड्यूटी से करियर शुरू किया और एक अप्रैल 2013 में हवलदार पद पर सेवानिवृत्त हुए. इस बीच वे श्रीनगर, दुर्गमुला, बारामुला, उरी और कारगिल के बाद सियाचीन ग्लेशियर मे चार साल माइनस 40 डिग्री में चौकसी की थी. उन्होंने भी करगिल युद्ध में भाग लिया था. 

जनरल बिपिन रावत के साथ पगड़ी में प्रेमचंद पांडेय 

दुश्मन पर दागे थे 13 हजार गोले 
कारगिल विजय दिवस के 23वीं वर्षगांठ पर तोपची प्रेमचंद पांडेय ने कारगिल युद्ध के बारे में जी एमपीसीजी को बताया की इस युद्ध में वे गनर थे और 102 मीडियम (बोफोर्स) रेजिमेंट के अलावा कुछ दिन अटैच होकर 1889 लाइट रेजिमेंट भी काम किया. उन्होंने बताया कि उनकी बोफोर्स रेजिमेंट में कुल 18 बोफोर्स थे. जिसमें उनकी बोफोर्स ने ही पूरे युद्ध में 13 हजार गोले दुश्मनों पर दागे. प्रेमचंद पांडेय ने बताया की एक दोपहर हम तैयारी कर ही रहे थे कि दोनों ओर से गोला-बारी शुरू हो गई. हमने दो राउंड गोला फायर किया था, तो उधर ऊंचाई पर टाइगर हिल से पाकिस्तान की तरफ से भारी गोलाबारी होने लगी. जवाब में हमारी गन (बोफोर्स) से 13 हजार गोले चार हजार फीट ऊपर टाइगर हिल पर दागे. इस युद्ध में हमारी सेना के बोफोर्स व 120 एमएम मोर्टार ने निर्णायक भूमिका निभाई और दुश्मनों को घुटने टेकने मजबूर कर दिया. युद्ध के दौरान हमारी टीम सुमुक्ता बेस पर थी, जिसमें 195 सिपाही थे. 

600 राउंड फायर कर पाकिस्तानियों को खदेड़ा 
कारगिल योद्धा के नाम से मशहूर प्रेमचंद पांडेय (सेवानिवृत्त हवलदार) ने कारगिल में चले सबसे लंबे युद्ध की यादें ताजा करते हुए बताया कि युद्ध के दौरान दुश्मन 15 हजार फीट ऊपर थे और हम उनसे चार हजार फीट नीचे 11-12 हजार फुट पर थे. लड़ाई के दौरान उनके सामने ही अपनी बोफोर्स गन के साथी नायक मुकेश कुमार पर गोला गिरा और उनके शरीर के चीथड़े उड़ गए. उन्होंने बताया की दुश्मनों को खदेड़ने के बाद पाकिस्तानी बंकर व एम्युनेशन डेम को कब्जा किया था. भारी गोलाबारी के बाद अगले दिन सभी नीचे शिफ्ट हो गए. गुमरी सेक्टर की मस्को घाटी में 530-गन हिल पर मैं व यूनिट के धर्मगुरु सूबेदार मेजर कीमोई एलएमजी (लाइट मशीन गन) ड्यूटी पर थे.  रात के वक्त पुनः लौटकर पाकिस्तान के कमांडो उस बंकर के पास लौटे. उनकी संख्या सैकड़ों में थी और हम सिर्फ दो थे, इसलिए एक स्थान पर छुपकर वहीं चुपचाप दुबके रहे. जब सर्चिंग के बाद वे लौटकर ऊपर चढ़ने लगे, तब हमने फायरिंग शुरू की. हमने वहां 600 से ज्यादा राउंड फायर किए फिर अगली सुबह 30 किलोमीटर नीचे आकर यूनिट में रिपोर्ट की. 

वह वक्त लड़ने का था 
तोपची प्रेमचंद पांडेय ने बताया की कारगिल युद्ध के दौरान एक ऐसी घड़ी भी आई, जब अंतरमन से आवाज आई, हे भारत मां अब हमें भी अपनी गोद में सुला लो, आंचल में छुपा लो और इस मिट्टी में मिला लो. दूसरे पल दुश्मनों की गोलियों की आवाज ने जैसे फिर से उन पर टूट पड़ने का जोश भर दिया. उन्होंने कहा कि वो मंजर ऐसा था कि एक पल के लिए लगा कि अपनी भूमि में समाकर मुक्त करो. पर वह वक्त हार मानने का नहीं था. प्रेमचंद पांडेय आज भी अपनी सेना के साहस पर गर्व करते हैं. 

क्या था करगिल युद्ध 
सन 1999 में पाकिस्तान की फौज ने अपने नापाक मंसूबो के तहत कारगिल की पहाड़ियों पर स्थित भारतीय पोस्टों पर कब्जा कर लिया था. पाकिस्तान ने भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा पर कब्जा करने की कोशिश की थी. जब भारतीय सेना को पाकिस्तान के नापाक हरकतों का पता चला तो उन्हें ऑपरेशन विजय के तहत उन्हें कारगिल से खदेड़ा था. भारतीय सेना द्वारा ऑपरेशन विजय 8 मई, 1999 से शुरू होकर 26 जुलाई 1999 तक चला था. इस युद्ध में भारत के 527 वीर जवान शहीद हुए थे वहीं 1363 जवान इस अभियान में घायल हुए थे. 

इस युद्ध में छत्तीसगढ़ के वीर सपूतों ने भी वीरता का परिचय देते हुए हर मोर्चे पर दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए थे. बिलासपुर, रायपुर, मस्तूरी और कोरबा क्षेत्र के कई जाबांज सिपाहियों ने दुश्मनों का डटकर मुकाबला कर अपने साहस का परिचय दिया था और उनकी वीरता के लिए केंद्र और राज्य सरकार ने उन्हें विशेष सम्मान से पुरस्कृत किया.

Read More
{}{}