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Bilaspur HC: लोन विवाद को लेकर बिलासपुर हाईकोर्ट का अहम फैसला! इस दावे को दी जाएगी प्राथमिकता

Important Decision of Bilaspur High Court: बिलासपुर हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है कि छत्तीसगढ़ में एक कंपनी और एक बैंक के बीच लोन राशि विवाद में पीएफ बकाया को अन्य दावों पर प्राथमिकता दी जाएगी.

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Important Decision of Bilaspur High Court
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Abhay Pandey|Updated: Jul 07, 2023, 11:15 PM IST

शैलेन्द्र सिंह ठाकुर/बिलासपुर: छत्तीसगढ़ (CG News) की बिलासपुर हाईकोर्ट ने एक कंपनी और बैंक के बीच लोन की राशि के विवाद को लेकर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. सिंगल बेंच ने अपने फैसले में कहा कि पीएफ बकाया के दावा भुगतान को अन्य दावे की तुलना में प्राथमिकता दी जाएगी. हाई कोर्ट ने अपने फैसले में शीर्ष अदालत के फैसले का उल्लेख करते कहा कि पीएफ बकाया की तुलना में संपत्ति पर पहला शुल्क उस समय लगाया जाएगा. जब नियोक्ता की ओर से पीएफ बकाया जमा नहीं होगी. इसलिए मामले के तथ्यों में याचिकाकर्ता की ओर से दिया गया तर्क पीएफ की बकाया राशि के संबंध में लागू नहीं होगा क्योंकि मामले के तथ्यों में, दो केंद्रीय अधिनियमों अर्थात् ईपीएफ अधिनियम के बीच विरोधाभास है. ऐसी स्थिति में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि यदि बाद के अधिनियम में कुछ भी प्रतिकूल नहीं है तो बाद का अधिनियम प्रभावी होना चाहिए.

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जानें पूरा मामला?
हाईकोर्ट में याचिका दायर कर बताया गया था कि रीजनल पीएफ फंड कमिश्नर ने अलकेमिस्ट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी को तीन नोटिस जारी किया. इसमें उसकी साझेदार कंपनी हाईटेक इक्विपमेंट एंड स्पेयर्स प्रा. लिमिटेड द्वारा 42 लाख 58 हजार 208 रुपए की वसूली का आदेश दिया गया है जो कि अगस्त 2007 से मार्च 2012 तक की अवधि के लिए कर्मचारियों की बकाया भविष्य निधि है. 27 जनवरी 2023 के आदेश द्वारा पीएफ कमिश्नर ने एक करोड़ छह लाख 78 हजार 755 रुपए की ब्याज की वसूली का निर्देश दिया है. इसी अवधि के लिए ईपीएफ की ओर ब्याज के साथ-साथ क्षतिपूर्ति के रूप में एक करोड़ 67 लाख आठ हजार 755 रुपए वसूली का आदेश है.

बता दें कि इसमें पार्टनरशिप फर्म राजेश इंजीनियरिंग एंड कास्टिंग्स के साझेदार प्रकाश चंद रतेरिया और महावीर सिंह रतेरिया ने यूको बैंक से ऋण लिया था. जिसे साझेदारी फर्म की फैक्ट्री लैंड और महावीर प्रसाद रतेरिया, विम रतेरिया, मनीष रतेरिया, प्रकाश चंद रतेरिया और अरुणा रतेरिया की कुछ निजी संपत्तियां गिरवी थीं. राजेश इंजीनियरिंग अपना कर्ज चुकाने में असमर्थ थी, इसलिए सरफेसी अधिनियम, 2002 के तहत कार्रवाई की गई. याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता कंपनी परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी होने के नाते वित्तीय सहायता प्रदान करके ऋण चुका चुकी है. यह भी तर्क दिया गया है कि आदेश द्वारा प्रतिवादी ने मेसर्स के भविष्य निधि बकाया की वसूली के लिए जारी किया है. याचिका में कहा गया कि पीएफ बकाया की वसूली के लिए जारी नोटिस और पूरी कार्रवाई गलत है.

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