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Judiciary Vs Legislature: अदालत का फैसला आने पर विधायिका क्या कर सकती है, क्या नहीं? CJI ने दिया ये जवाब

Legislature vs Judiciary: विधायिका और न्यायपालिका के बीच टकराव बहुत पुराना विवाद है. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डी वाई चंद्रचूड समय समय पर इस विषय को अलग-अलग मंचों पर उठाते रहते हैं. हालिया आयोजन में सीजेआई ने अदालत का फैसला आने पर विधायिका क्या कर सकती है? इस विषय को उठाया है.

Judiciary Vs Legislature: अदालत का फैसला आने पर विधायिका क्या कर सकती है, क्या नहीं? CJI ने दिया ये जवाब
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Shwetank Ratnamber|Updated: Nov 04, 2023, 12:07 PM IST

CJI Judiciary and legislature: सरकार और जूडिशरी के बीच टकराव की खबरें अक्सर आती रहती है. ये विवाद नया नहीं दशकों पुराना है. फिलहाल तनातनी तब से ज्यादा बढ़ गई जब सरकार ने जजों की नियुक्ति के लिए एक अलग सिस्टम बनाने का प्रस्ताव रखा और संसद में इसे पास किया था. सीजेआई डी वाई चंद्रचूड समय समय पर अलग-अलग मंचों से इस विषय को उठाते रहते हैं. वहीं ताजा उदाहरण की बात करें तो ‘एचटी लीडरशिप समिट’ में सीजेआई ने कहा, 'इसके बीच विभाजनकारी रेखा है कि अदालत का फैसला आने पर विधायिका क्या कर सकती है, क्या नहीं कर सकती है.'

जज जब फैसला सुनाते हैं तो क्या होता है?

सीजेआई ने ये भी कहा, 'जस्टिस इस पर गौर नहीं करते हैं कि जब वे मुकदमों का फैसला करेंगे तो समाज कैसी प्रतिक्रिया देगा. जस्टिस संवैधानिक नैतिकता का अनुसरण करते हैं न कि सार्वजनिक नैतिकता का. अदालती सिस्टम में दिख रहे बदलाव दिख रहा है. हम इसी साल 2023 में करीब 72000 मुकदमों का निस्तारण कर चुके हैं और अभी डेढ़ महीना बाकी है.'

इंटरनेशनल लॉयर्स कॉन्फ्रेंस में कही थी ये बात

कुछ समय पहले इंटरनेशनल लॉयर्स कॉन्फ्रेंस के उद्घाटन सत्र में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संतुलित सहयोग की बात पर जोर देते हुए कहा था कि संविधान ने विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच मर्यादा और अधिकार क्षेत्र की स्पष्ट लक्ष्मण रेखा खींच रखी है. इसका एक आयाम यह भी है कि हम एक-दूसरे से काफी कुछ सीखते हैं. अब न्याय और शक्ति एक साथ आ गए हैं. शक्ति के बिना न्याय अक्षम है और न्याय के बिना शक्ति का कोई अर्थ नहीं रह जाता है.

'हम सौहार्द के क्षण साझा करते हैं नए आयाम खुलते जाते हैं'

CJI चंद्रचूड़ न्यायिक ढांचे में बदलाव की जरूरत पर भी जोर देते हैं. उनके इस बयान की खूब चर्चा हुई थी जब उन्होंने /यह कहा था, 'हम राष्ट्रीय न्यायालय हैं. जैसे-जैसे हम एक साथ मिल बैठकर सौहार्द के क्षण साझा करते हैं नए आयाम खुलते जाते हैं. मतभेदों से परे दोस्ती का यह विचार हल्का-फुल्का लग सकता है, लेकिन इसे बढ़ावा देने में ये भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. एक-दूसरे के नजरिए और मान्यता के प्रति परस्पर सम्मान और स्वीकार्यता जरूरी है. क्योंकि एक-दूसरे से सीखने के लिए हमेशा कुछ न कुछ नया रहता ही है.'

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