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Train Sand Box: ट्रेन के इंजन में क्यों लगा होता है 'Sand Box'? पैसेंजर सेफ्टी से है संबंध, डिब्बों को पलटने से भी बचाता है

Indian Railways Interesting Facts: क्या आप जानते हैं कि प्रत्येक ट्रेन के इंजन में सैंड बॉक्स होता है यानी वह सूखे रेत का ढेर अपने साथ लेकर चलती है. आखिर रेलवे ऐसा क्यों करता है. 

Train Sand Box: ट्रेन के इंजन में क्यों लगा होता है 'Sand Box'? पैसेंजर सेफ्टी से है संबंध, डिब्बों को पलटने से भी बचाता है
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Devinder Kumar|Updated: Jun 06, 2023, 02:35 AM IST

Why sandbox fit in the engine of the train: ओडिशा में हुए भीषण ट्रेन हादसे के बाद से ट्रेन यात्रियों की सुरक्षा का मुद्दा गरम है. एक्सपर्टों की ओर से ट्रेन सेफ्टी के लिए लगातार कई उपयोगी सुझाव दिए जा रहे हैं. आज हम आपको ट्रेन को डिरेल होने से बचाने के लिए वर्षों से इस्तेमाल किए जा रहे भारतीय रेलवे (Indian Railways) के एक शानदार उपाय के बारे में आपको बताएंगे. यह उपाय ट्रेन के इंजन में रखे गए सैंड बॉक्स से जुड़ा है. दूसरे शब्दों में कहें तो प्रत्येक ट्रेन का इंजन अपने साथ भारी मात्रा में रेत लेकर चलता है लेकिन उसका इस्तेमाल कहां और कैसे होता है. इसके बारे में अधिकतर लोगों को पता नहीं है. आइए आज आपको इसके बारे में विस्तार से बताते हैं. 

बारिश में चिकनी हो जाती हैं पटरियां

असल में बारिश, ओंस या ग्रीसिंग की वजह से कई बार पटरियां चिकनी हो जाती है, जिससे उन पर ट्रेन के पहिये फिसने की आशंका हो जाती है. यह आशंका पहाड़ी या ढ़लान वाले मार्गों पर ज्यादा होती है. इस समस्या से निपटने के लिए ट्रेन के इंजन में लगे सैंड बॉक्स (Sand Box) के जरिए पटरियों पर सूखा रेत गिराया जाता है. जिसके बाद पहिये फिर दोबारा से पटरियां पर बेहतरीन ग्रिप हासिल कर लेते हैं और बिना फिसले आगे बढ़ते चले जाते हैं. इस ट्रिक को अपनाने से ट्रेन को चढ़ाई वाले इलाके में चलाने या ब्रेक लगाकर रोकने में मदद मिलती है. 

कैसे काम करता है सैंड बॉक्स?

सैंड बॉक्स (Sand Box) से सूखे रेत को पटरियों पर कब और कहां गिराना है, यह फैसला पूरी तरह ट्रेन के लोको पायलट यानी ड्राइवर का होता है. अगर उसे महसूस होता है कि ट्रेन की पटरियां गीली हैं या हद से ज्यादा चिकनी हो रखी हैं तो वह इंजन के नीचे लगे सैंड बॉक्स को इस्तेमाल करने का फैसला ले लेता है. वह सबसे पहले इंजन में लगे नॉच को कम करके वोल्टेज की मात्रा को कम करता है. इसके बाद वह सैंड बॉक्स को ओपन करने का स्विच दबा देता है. ऐसा करते ही सैंड बॉक्स का मुंह खुल जाता है और उसमें से थोड़ी-थोड़ी सूखी रेत पटरियों पर गिरनी शुरू हो जाती है. 

पटरियों की फिसलन हो जाती है कम

पटरियों पर सूखी रेत गिरते ही उसकी फिसलन कम हो जाती है और पहियों की पकड़ बढ़ जाती है. ऐसा करने से ट्रेन आसानी से आगे की ओर बढ़ने लगती है. साथ ही उसके डिरेल होने या पलटने की आशंका भी घट जाती है. देश की आजादी के 75 साल बाद भी रेलवे (Indian Railways) का यह देसी उपाय कारगर तरीके से काम कर रहा है और लाखों यात्रियों को सुरक्षित तरीके से अपने मंजिल पर पहुंचाने का काम कर रहा है. 

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