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Child Safety: अपनी 17 माह की बेटी को गोद में लेने को तरस रहा इंडियन कपल, जर्मन सरकार ने इस वजह से किया 'कैद'

Parenthood: जर्मन सरकार के कानून के मुताबिक, माता पिता से 'फिट टू बी पेरेंट्स' (Fit to be a parent) के सर्टिफिकेट की मांग की गई जिसके तहत उन्हें ये साबित करना होगा कि वे बच्ची को पालने के काबिल हैं. भावेश-धारा इस सर्टिफिकेट को पाने के लिए लीगल अथॉरिटी के दो सेशन अटैंड कर चुके हैं, लेकिन 'फिट टू बी पेरेंट्स' की लीगल प्रोसेस अब तक खत्म नहीं हुई है. 

Child Safety: अपनी 17 माह की बेटी को गोद में लेने को तरस रहा इंडियन कपल,  जर्मन सरकार ने इस वजह से किया 'कैद'
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Rakesh Trivedi|Updated: Aug 05, 2022, 04:37 PM IST

Parents battle for daughter custody: हर एक माता-पिता अपने बच्चे से बेपनाह प्यार करते हैं लेकिन हम आज आपको एक परिजन की बेहद दर्दनाक कहानी बताते हैं. पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर भावेश शाह और उनकी पत्नी धारा शाह जर्मनी के बर्लिन में रहते हैं जहां वे पिछले 10 महीनों से अपनी महज 17 महीने की बेटी (Daughter custody) को गोद में लेने के लिए तरस रहे हैं. ये इनकी बदकिस्मती ही है कि एक 17 महीनों की मासूम बेटी कानूनी अड़चनों के चलते अपनी मां से दूर है और उसे मां का दूध तक नसीब नहीं हो पा रहा. कपल के बच्ची अरिहा शाह पिछले 10 महीनों से जर्मन प्रोटेक्शन अथॉरिटी की कस्टडी में है.

बच्ची के साथ हुआ एक हादसा

दरअसल भावेश शाह साल 2018 से जर्मनी की राजधानी बर्लिन में नौकरी कर रहे हैं. भावेश और धारा को पिछले साल ही यानी 2021 में बेटी नजीब हुई थी. एक दिन बच्ची के डाइपर में ब्लड दिखने से परेशान माता-पिता उसे डॉक्टर को दिखाकर वापस घर ले आये. अगले दिन भी दोबारा ऐसा होने पर जब वे बच्ची को अस्पताल ले गए तब उन्हें इस बात का अंदाजा तक नहीं था कि इसके बाद वे अपनी लाड़ली की एक झलक देखने के लिए भी तरस जाएंगे. अस्पताल प्रशासन ने इस घटना को सेक्सुअल असॉल्ट (यौन उत्पीड़न) का मामला मानते हुए घटना की जानकारी चाइल्ड प्रोटेक्शन टीम (Child Protection Rights) को दी, जिसके बाद अथॉरिटी ने तुरंत एक्शन लेते हुए बच्ची को अपनी कस्टडी में ले लिया.

यहां सबसे बड़ी परेशानी भाषा को लेकर भी थी, आनन-फानन में पाकिस्तानी मूल का एक ट्रांसलेटर तो मिला लेकिन वो भी माता पिता के पक्ष को अधिकारीयों के सामने ठीक से रख ना सका और माता-पिता अधिकारियों की जर्मन कार्यवाही को समझ ना सके. इसके बाद अधिकारियों ने माता पिता के खिलाफ ही क्रिमिनल केस चलाया. चौंकाने वाली बात ये है कि उनकी जांच में यौन उत्पीड़न की बात साबित नहीं हुई. बेटी से 5 महीने दूर रहने के बाद माता पिता को यौन उत्पीड़न के आरोप से क्लीन चिट तो मिल गई लेकिन उन्हें उनकी अपनी बेटी वापस नहीं मिली. इसके बाद बेटी की कस्टडी लेने की जद्दोजहद शुरू हुई जो अब 10 महीने बीत जाने के बावजूद जारी है.

जर्मन सरकार के कानून की बाधा

जर्मन सरकार के कानून के मुताबिक, माता पिता से 'फिट टू बी पेरेंट्स' के सर्टिफिकेट की मांग की गई जिसके तहत उन्हें ये साबित करना होगा कि वे बच्ची को पालने के काबिल हैं. भावेश-धारा इस सर्टिफिकेट को पाने के लिए लीगल अथॉरिटी के दो सेशन अटैंड कर चुके हैं, लेकिन 'फिट टू बी पेरेंट्स' की लीगल प्रोसेस अब तक खत्म नहीं हुई है. परिवार जर्मनी में भारतीय दूतावास से भी गुहार लगा चुका है लेकिन दूतावास से भी अब तक कोई ख़ास मदद नहीं मिल पाई है.

इस जैन परिवार को इस बात की भी चिंता है कि उनकी बेटी उनकी भाषा, धर्म, संस्कृति और खान-पीन के तौर तरीकों से भी वंचित रह जायेगी. इतना ही नहीं, ये मसला अगर जल्द हल नहीं हुआ तो जर्मन कानून के मुताबिक उनके बेटी के भारत लौटने की उम्मीद भी कम हो सकती है. परिवार ये भी गुजारिश कर चुका है कि फैसला आने तक बच्ची की कस्टीडी कम से कम किसी भारतीय परिवार को दी जाए ताकि उसकी परवरिश बेहतर हो सके लेकिन इस मामले में भी उनकी सुनवाई नहीं हुई. 

बच्ची को वापस पाने की आस

बच्ची फिलहाल जर्मनी में बच्चों के अधिकारों और सुरक्षा के लिए काम करने वाली अथॉरिटी यूथ वेलफेयर सर्विस की कस्टडी में है. यहा इस परिवार को महीने में सिर्फ एक बार हच्ची से मिलने की ही इजाजत है. लेकिन इस मुलाकात के दौरान वो अपनी बेटी को ना गोद में ले सकते हैं और ना ही उसे दुलार कर सकते हैं. परिवार की आर्थिक हालत भी अब कमजोर होने लगी है. बेटी के परवरिश के लिए जर्मन प्रशासन को हर महीने तकरीबन 45 हजार रुपये चुकाने के अलावा वकीलों की फीस 25 हजार रुपये प्रति घंटा है. इससे आप परिवार पर आने वाले आर्थिक बोझ का भी अंदाजा लगा सकते हैं.

भावेश और धारा पर दुखों के पहाड़ टूट पड़ा है. बेबस मां को हर पल बस अपनी बेटी का ख्याल आता है कि वो कहां किस हाल में होगी, अपनी मां के दूध के लिए तड़प रही होगी, लाड़ली अपने मां-बाप के प्यार से दूर किसी अनजान की गोद में होगी, एक अनाथ की ज़िन्दगी  जी रही होगी. इन सारे ख्याल के चलते परिजन हर पल बेचैन रहते हैं. एक तरफ जहां हज़ारों भारतीय हर साल देश छोड़कर विदेश जा रहे हैं वहीं विदेश में ये परिवार ऐसा है जो वहां जाकर पछता रहा है. इन्हें  इस बात का मलाल है कि अगर वे अपने सपनों के लिए जर्मनी नहीं जाते, या अपने देश में ही रहते तो उन्हें आज ये दिन देखने ना मिलता, उनका कलेजे का टुकड़ा, उनकी मासूम लाड़ली बेटी उनकी गोद में ही रहती. परिवार ये भी दुआ करता है कि ऐसी नौबत और किसी माता पिता पर कभी ना आये.

पीएम मोदी से परिजनों की अपील

ये मामला फिलहाल लोकल डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के सामने पेंडिंग है. इस परिवार को अब भारत सरकार, विदेश मंत्रालय और ख़ास तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बेहद उम्मीद है. ये कपल पीएम मोदी से गुहार लगा रहा है कि जिस तरीके से इससे पहले भारत सरकार ने दूसरे देशों में भी ऐसे मामलों में बच्चों को उनके माता पिता से मिलवाया है उसी तर्ज़ पर सरकार इन्हें भी मदद करे और आज़ादी के अमृत महोत्सव के मौके पर इनकी लाड़ली को भी जर्मन सरकार की कैद से आज़ादी दिलाकर उसे अपनी मां की गोद नसीब कराई जाए.

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