India China trade relations: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 76वें स्वतंत्रता दिवस (Independence Day) पर अपने संबोधन में देशवासियों को अगले 25 साल में विकसित राष्ट्र (Developed country ) बनाने का संकल्प लेने की बात की. विकसित राष्ट्र बनने के लिए हमें कई मोर्चों पर आत्मनिर्भर होने की जरूरत होगी. अगर वस्तुओं के आयात को ही भारत संतुलित कर सके, तो बहूमूल्य विदेशी मुद्रा बचाने के साथ साथ देश की अर्थव्यवस्था भी बेहतर होगी. इससे रोजगार का सृजन होगा, प्रति व्याक्ति आय भी बढ़ेगी, इससे हम विकसित भारत के सपने को साकार कर सकेगें.
12 लाख करोड़ से ज्यादा का तेल आयात
देश का कच्चे तेल और पेट्रो उत्पादों के आयात 12 लाख करोड़ से ज्यादा का हो चुका है. मौजूदा वित्त वर्ष मे ये और ज्यादा हो जाएगा. देश जितना जल्दी इसके विकल्पों की ओर अग्रसर होगा, उतना ही देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी. इसके बाद कंज्यूमर इलेक्ट्रानिक, इलेक्ट्रानिक पुर्जे, टेलीकाम इंस्ट्रूमेंट, इलेक्ट्रानिक इस्ट्रूमेंट का आयात 4 लाख करोड़ से ज्यादा का होता है. इनमें से अधिकतर माल चीन और ASEAN देशों से आता है.
सोने के लिए भारत का मोह सब जानते हैं. देशवासियों के इस स्वर्णमोह के लिए देश 3.44 लाख करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा चुकाता है. खाद्य तेल के मामले में भारत अभी भी आत्मनिर्भर नहीं है, पिछले साल 2021-22 में भारत का खाद्य तेल आयात बिल 1.41 लाख करोड़ का था. देश के तिलहन का उत्पादन बढ़े तो ये सारा पैसा देश के किसानों को मिलेगा. इस रकम को समझने के लिए एक आकंड़ा काम आएगा. पिछले साल खरीफ के सीजन में देश के 77 लाख किसान परिवारों ने जब अपना धान MSP पर सरकार को बेचा तो उसकी कुल कीमत 1.18 लाख करोड़ की थी. वहीं देश की कृषि के लिए उपयोग होने वाली फर्टिलाईजर का भी देश 1.05 लाख करोड़ से ज्यादा का आयात करता है.
दुश्मन नम्बर एक चीन से सबसे ज्यादा आयात
देश के पहले CDS स्वर्गीय बिपिन रावत ने कहा था कि देश का शत्रु नम्बर एक चीन है. कारण कोई भी हो लेकिन इसी चीन से ही भारत सबसे ज्यादा आयात करता है. साल 2021-22 में भारत ने चीन से 7 लाख करोड़ से ज्यादा का आयात किया जो कि भारत के कुल आयात बिल का 15 प्रतिशत से ज्यादा है. एक मुश्किल पड़ोसी के ऊपर इतनी अधिक निर्भरता भारत के आर्थिक सुरक्षा के लिए भी खतरा है. दूसरे नम्बर पर संयुक्त अरब अमीरात (3.34 लाख करोड़ रुपये) और तीसरे नम्बर पर अमेरिका (3.23 लाख करोड रुपये) का है. भारत को निर्यात करने वाले पांच बड़े देशों में मध्य एशिया के 3 देश हैं जिनसे भारत कच्चा तेल खरीदता है.
कितना है देश का व्यापार घाटा?
देश का आयात जब देश के निर्यात से ज्यादा होता है तो इसे व्यापार घाटा कहते है. पिछले कई दशकों से भारत व्यापार घाटा बना हुआ है. वित्त वर्ष 2011-12 में देश का आयात बिल 45.72 लाख करोड़ था, जबकि निर्यात 31.47 लाख रुपये का हुआ था. भारत का व्यापार घाटा 14.25 लाख करोड़ का था. मौजूदा हालात बताते हैं कि इस साल ये और भी ज्यादा बढ़ सकता है.
व्यापार घाटा बढ़ने का नुकसान
व्यापार घाटे का मतलब है कि देश विश्व के बाजार में अपने उत्पादों को नहीं बेच पा रहा है. व्यापार करने के लिए उसे विदेशी मुद्रा चुकानी पड़ती है जिससे उसका विदेशी मुद्रा भंडार पर नकारात्मक असर पड़ता है. व्यापार घाटा बढ़ने से देश की विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव बढ़ता है.
कैसे बढ़ रहा है भारत का विदेशी मुद्रा भंडार?
ऐसे में सवाल उठता है कि भारत का व्यापार घाटा कई दशकों से है. लेकिन इसके बाद भी देश का विदेशी मुद्रा भंडार कैसे बढ़ रहा है. दरअसल भारत का विदेशी मुद्रा भंडार ‘अर्जित’ नहीं है. भारत का विदेशी मुद्रा भंडार दरअसल भारत में विदेशी कंपनियों द्वारा किया गया निवेश है. शेयर मार्किट में किए गए विदेशी निवेश को FPI कहा जाता है वहीं देश में किसी गए स्थायी निवेश को FDI (Foreign Direct Investment) कहा जाता है.
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