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'हमने शून्य के अलावा भी बहुत सारे अविष्कार किए', भारतीय इतिहास की Positive Story बताने का प्लान तैयार

ICHR के मेंबर सचिव उमेश कदम का आरोप है कि पिछले 65 वर्षों में हमे अपनी पाठ्यक्रम से जो इतिहास मिला है उसमें सिर्फ ये बताया जाता है कि हम कितनी बार किससे और कैसे पिटे हैं, इससे अच्छा यह होगा कि हम PRIDE OF INDIA की बात करें और लोगों को बताए कि हमने शून्य के अलावा भी बहुत सारे अविष्कार किए है.

'हमने शून्य के अलावा भी बहुत सारे अविष्कार किए', भारतीय इतिहास की Positive Story बताने का प्लान तैयार
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Ravi Tripathi|Updated: Oct 21, 2022, 12:01 PM IST

ICHR के मेंबर सचिव उमेश कदम के मुताबिक उनका पूरा ऑफिस जल्द ही E Office होने जा रहा है. कदम के मुताबिक़ हमारा सबसे बड़ा प्रोजेक्ट इंडिया हिस्ट्री रिलेटेड टू साइंस एंड टेक्नोलॉजी है. इसके लिए हमने ISRO से बात की है जिसमे ISRO के चेयरमैन ने बहुत बड़ी रूचि दिखाई है. इसमें हम तकरीबन 6 वोल्यूम पर काम करने वाले है. 2 प्राचीन युग, 2 मध्यम युग और 2 अर्वाचीन युग पर करेंगे. इससे लोगों के सामने भारतीय इतिहास को देखने का एक नया नजरिया सामने आएगा और शायद यह NCERT की बुक्स में भी जाएगा ताकि हमारे बच्चों को भी पता चले कि हमारे देश मे विज्ञान और तंत्र विज्ञान अनूठे प्रकार का है.

'हमने शून्य के अलावा भी बहुत सारे अविष्कार किए'

कदम का आरोप है कि  पिछले 65 वर्षों में हमे अपनी पाठ्यक्रम से जो इतिहास मिला है उसमें सिर्फ ये बताया जाता है कि हम कितनी बार किससे और कैसे पिटे हैं, इससे अच्छा यह होगा कि हम PRIDE OF INDIA की बात करें और लोगों को बताए कि हमने शून्य के अलावा भी बहुत सारे अविष्कार किए है.

अबतक अर्थशास्त्र के बारे में सिर्फ 2 ही बाते बताई जाती हैं. एक तो कौटिल्य का अर्थशास्त्र और दूसरा कश्मीर का राज तरंगिनी. जबकि आप हमारे प्राचीन तथा मध्य युगीन राजाओ की कार्यशैली को देखेंगे तो पता चलता है कि भारत वर्ल्ड इकोनोमि में बड़ा भागीदार था.उस समय भी भारतीय सामान पूर्व एशिया और समुद्री मार्गो से तथा लोगो के कारवां से बाहर जाते थे. ये जानकारियां अबतक हम बहुत ही कम लोगों को दे पाए है क्योंकि इसके लिए हम जो भी संसाधन उपयोग कर रहे है वो सब आधुनिक और यूरोपीय आधार पर बने है.

इसलिए ICHR 2 चीजो में काम कर रहा है पहला तो हम इकोनोमि हिस्ट्री ऑफ इंडिया का प्रोजेक्ट नीति आयोग के साथ करने की कोशिश कर रहा है और दूसरा हम देश के सभी  Private एजुकेशन संस्थानों और लाइब्रेरी में जो भी ऐतिहासिक दस्तावेज का ज्ञान और पांडुलिपि उपलब्ध है उन्हें अपने डिजिटल माध्यम के द्वारा चिन्हित करने की कोशिश कर रहे है जिसमे हम अब तक 30 से 35 ऐसे इंस्टीट्यूट को चिन्हित कर चुके हैं, जिनके साथ हम मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग करने वाले है और वहां से वो सारे इन्फॉर्मेशन हम डिजिटाइज सोर्स में ICHR के प्लेटफॉर्म पर लोगो के लिये पूरी तरह से ओपन कर देंगे.

आज भी दक्षिणी भारतीय लोगों का झुकाव सोने की तरफ है करंसी की तरफ नहीं है. दक्षिण की 8वीं शताब्दी से लेकर 14वीं शताब्दी को जो 500 साल का युग है उसके बारे में आजतक लोगों को बताया ही नहीं गया है. जैसे कि बहुत सारे राजवंश रह गए-कडम्बते ,होशियर,काकतीय, यादव, चेर,पांडे,चोल थे. ये सारे राजवंश यूरोप की तरह लोगों का शोषण करने वाले नहीं थे बल्कि इंपॉवर मेन्ट करने वाले थे. जिन्होंने बहुत बड़े बड़े मंदिर बनवाये और उस समय मंदिर सिर्फ पूजा का माध्यम नहीं थे बल्कि बैंक और कम्युनिटी सेंस,एयर लोगों की समस्या को समाधान करने में हुआ करता था और इन्हीं 500 सालों में जो करंसी इस्तेमाल होती थी वो सभी सोने की बनी होती थी इसलिए भारत सिर्फ प्राचीन और मध्य काल मे ही नहीं बल्कि आज भी सोने की चिड़िया है. बस आपको ये देखना होगा कि भारत के जो रेपार्टीज है वो कैसे मैनेज हो रहे हैं इसका सबसे बड़ा उदाहरण कोरोना के बड़े संकट में भी भारत की अर्थ व्यवस्था टस से मस नहीं हुई क्योंकि यहां का जो कॉमन सेंस है उसकी वजह से है, इसलिए भारत की अर्थव्यवस्था सक्षम थी है और रहेगी.

हिस्ट्री को हमेशा Rewrite करना ये उचित है,पिछले 65 सालों में जो हमने खोया है उसे फिर से एकबार टीकात्मक परीक्षण करने की जरूरत है जिससे हम अपने बच्चों को बता सकेंगे कि 65 साल की हिस्ट्री में जो बड़े बड़े चेप्टर मुगल शासकों के हमने देखे है वो मुगल कालखंड केवल उत्तरी क्षेत्र में तकरीबन 180 साल रहा.

जबकि नार्थ ईस्ट में 12वीं सदी से लेकर 18वीं सदी तक अहोम शासकों ने 600 साल राज किया. 17वीं , 18वीं शताब्दी में अटक से लेकर कटक तक पूरा मराठों का शासन था. उससे पहले उत्तर और दक्षिण के बहुत सारे राजवंश थे जो मुगल सल्तनत से पहले भी थी उनका कार्यकाल भी लंबा है, लेकिन कोई नहीं जानता. ये सब हमारी किताबों,स्कूलों कालेजो और यूनिवर्सिटी में नहीं है. इसके लिए हमें अपने देश राज्य और जिले के सभी ऐसी जानकारियों को अपने बच्चों को देना पड़ेगा. तभी हम सबको बता पाएंगे कि भारतीय ज्ञान और संस्कृति की छाप दुनिया पर कब कब और कैसे पड़ी है.

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