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DNA: कोटे में कोटा... मतलब क्या है? कैसे बदलेगा आरक्षण का सिस्टम

Supreme Court: हुआ यह कि कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा कि वो आरक्षण और SC/ST सब कैटेगरी, दोनों के पक्ष में है. इसके बाद पीढ़ी-दर-पीढ़ी के आरक्षण पैटर्न पर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी दी. यह भी जानना जरूरी है कि इस पर 4 जजों ने क्या है.

DNA: कोटे में कोटा... मतलब क्या है? कैसे बदलेगा आरक्षण का सिस्टम
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Zee News Desk|Updated: Aug 01, 2024, 11:26 PM IST

DNA में बात आरक्षण पर सुप्रीम फ़ैसले की करेंगे. क्या पीढ़ी-दर-पीढ़ी मिलने वाला आरक्षण अब खत्म हो जाएगा?. क्या सुप्रीम कोर्ट की तरह सरकार और सारी सियासी पार्टियां भी मानने को तैयार हैं कि आरक्षण के असली हक़दारों तक उसका फ़ायदा नहीं पहुंच रहा है?.. और आरक्षण का असल मज़ा कोई और ले रहा है?

सबसे पहले आरक्षण की पॉलिटिकल इम्पॉर्टेंस आप ऐसे समझें. बिहार में 65% OBC आरक्षण का दबाव बनाने के लिये RJD सांसद आज संसद के बाहर प्रदर्शन कर रहे थे...और आज ही सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST आरक्षण पर सवाल खड़ा कर दिया कि अभी जिस ढंग से आरक्षण दिया जा रहा है..क्या वो सही है?.

आरक्षण में कोटे पर कोर्ट का ऐतिहासिक फ़ैसला

सुप्रीम कोर्ट ने आज SC/ST आरक्षण में कोटे पर कोर्ट का ऐतिहासिक फ़ैसला दिया...7 जजों की सुप्रीम बेंच ने 2004 का अपने ही 5 जजों का पलट दिया. हम बहुत सरल ढंग से बताएंगे कि ये फ़ैसला क्या है, लेकिन उसे आसान बनाने के लिये पहले कुछ उदाहरण भी देंगे.
- अगर SC/ST में A, B, C तीन जातियां हैं तो कैसे तय होगा कि इसमें आरक्षण की ज़्यादा ज़रूरत किसे है?
- अगर इसमें B और C ज़्यादा ज़रूरतमंद हैं तो फिर A को आरक्षण का लाभ इनसे कम क्यों नहीं मिले?
- आरक्षण के लाभ से रामप्रसाद क्लास-वन अफसर बन चुके हैं तो फिर उनके बच्चों को आरक्षण क्यों मिले?
- रामप्रसाद के हिस्से का आरक्षण शंकरलाल को क्यों ना मिले, जो ज़्यादा ग़रीब, कमज़ोर और पिछड़े हैं?

ऐसे ही सवाल सुप्रीम कोर्ट के सामने 23 याचिकाओं में थे. तमिलनाडु, कर्नाटक और पंजाब..3 राज्य हैं जिन्होंने OBC की तरह SC/ST आरक्षण में भी कोटे के अंदर कोटा रखा था. ....पंजाब सरकार के फ़ैसले पर रोक के खिलाफ़ मामला सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की बेंच में गया था. उसी पर सुप्रीम कोर्ट ने आज फ़ैसले में कहा कि-

  • - OBC की तरह SC/ST में भी कोटे में कोटा ग़लत नहीं है.
  • - राज्य OBC जैसी क्रीमी लेयर SC/ST में भी बना सकते हैं.
  • - SC/ST में सिर्फ कुछ ही लोग आरक्षण का लाभ उठा रहे हैं.
  • - SC/ST के भीतर कई श्रेणियां हैं जो ज़्यादा पीड़ित-वंचित हैं.
  • - असली समानता के लिये कोटे में कोटा ही एकमात्र तरीका है.
  • - राज्य सब कैटेगरी बना सकते हैं, क़ानून भी बना सकते हैं.

4 जजों ने टिप्पणी दी

कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा कि वो आरक्षण और SC/ST सब कैटेगरी, दोनों के पक्ष में है. अब देखिये पीढ़ी-दर-पीढ़ी के आरक्षण पैटर्न पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा. इसपर 4 जजों ने टिप्पणी दी.

  • जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा- क्रीमी लेयर का जो सिद्धांत OBC पर लागू होता है, वही सिद्धांत SC और ST पर भी लागू होता है.

  • जस्टिस बी आर गवई ने कहा- - SC/ST में जिन लोगों को आरक्षण लाभ मिल चुका है, उनके बच्चों को समान दर्जा नहीं दिया जा सकता.

  • जस्टिस पंकज मिथल ने कहा- आरक्षण से पहली पीढ़ी का स्तर सुधर चुका है, तो दूसरी पीढ़ी को आरक्षण का हक़ नहीं होना चाहिये.

  • जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने कहा- SC/ST के रूप में क्रीमी लेयर की पहचान का मुद्दा राज्य के लिये संवैधानिक अनिवार्यता बन जाना चाहिये.

  • चीफ़ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस मनोज मिश्रा ने इसपर कोई राय नहीं दी. जबकि जस्टिस बेला एम त्रिवेदी 6 जजों के फ़ैसले से असहमत थीं.

आरक्षण सामाजिक न्याय के साथ राजनीति का भी टूल है. जातियों को आरक्षण से साधने और वोट बैंक बनाने के प्रयास आम हैं. कोर्ट की इसपर भी नज़र है कि SC/ST की सब कैटेगरी कहीं वोटबैंक देखकर ना बनें. आरक्षण की मोटे तौर पर 4 कैटेगरी हैं. इनमें OBC के लिये 27%, SC के लिये 15%, ST के लिये 7.5% और EWS के लिये 10% आरक्षण है. लेकिन राज्यों में जातियों के हिसाब से आरक्षण के प्रतिशत में अंतर है.

SC/ST की सब-कैटेगरी बनाने और क्रीमी लेयर को बाहर करने के लिये राज्यों को बहुत कुछ करना होगा. पहले पॉलिसी बनानी पड़ेगी, ज़मीनी सर्वे से असली लाभार्थी पहचानने होंगे..और उनका सामाजिक-आर्थिक डेटा जुटाना होगा. संभव है कि इसमें ये भी कहा जाए कि ये काम बिना जाति-जनगणना के कैसे हो पाएगा ?

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