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Singur Tata Nano: जिस सिंगूर से चमकी ममता बनर्जी की सियासत, उसी ने टाटा के सामने कोर्ट में हरा दिया

Tata Nano Project Bengal: दरअसल सिंगूर जमीन विवाद मामले में टाटा को बड़ी जीत मिली है. पश्चिम बंगाल सरकार को टाटा ग्रुप को 11 प्रतिशत ब्याज के साथ 766 करोड़ रुपये देने होंगे. लेकिन आखिर सिंगूर विवाद क्या है और इससे ममता बनर्जी की सियासत कैसे चमकाई, आइए आपको समझाते हैं.

Singur Tata Nano: जिस सिंगूर से चमकी ममता बनर्जी की सियासत, उसी ने टाटा के सामने कोर्ट में हरा दिया
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Rachit Kumar|Updated: Oct 30, 2023, 09:39 PM IST

Mamata Banerjee Singur Plant: राजनीति की थोड़ी बहुत जानकारी रखने वालों में शायद ही कोई ऐसा हो जो सिंगूर विवाद से वाकिफ न हो. बंगाल की राजनीति में ममता बनर्जी को खड़ा करने में इस विवाद का बड़ा किरदार था. इसी मुद्दे ने उनको बंगाल की सत्ता का स्वाद चखने में मदद की थी. लेकिन जिस सिंगूर विवाद को सीढ़ी बनाकर वह कुर्सी तक पहुंचीं उसी में उनकी सरकार को कोर्ट से झटका लगा है.

दरअसल सिंगूर जमीन विवाद मामले में टाटा को बड़ी जीत मिली है. पश्चिम बंगाल सरकार को टाटा ग्रुप को 11 प्रतिशत ब्याज के साथ 766 करोड़ रुपये देने होंगे. लेकिन आखिर सिंगूर विवाद क्या है और इससे ममता बनर्जी की सियासत कैसे चमकाई, आइए आपको समझाते हैं.

2006 में हुआ था नैनो प्रोजेक्ट का ऐलान

18 मई 2006 को टाटा ग्रुप के तत्कालीन चेयरमैन रतन टाटा ने  सिंगूर में लखटकिया नैनो कार प्रोजेक्ट का ऐलान किया था. इसी दिन बुद्धदेब भट्टाचार्य एक बार फिर राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे थे. 

लेकिन दो महीने बाद यानी 25 मई 2006 को किसानों ने विरोध-प्रदर्शन शुरू कर दिए. उन्होंने आरोप लगाया कि टाटा के इस प्रोजेक्ट के लिए 'जबरन' भूमि अधिग्रहण किया जा रहा है. इसके बाद तो जैसे इस छोटी सी चिंगारी को हवा मिल गई और 18 जुलाई 2006 को इस प्रदर्शन में एंट्री हुई टीएमसी सुप्रीमो और फायरब्रैंड नेता ममता बनर्जी की. 

ममता ने भूमि के 'जबरन' अधिग्रहण के विरोध में टाटा फैक्ट्री स्थल के पास धान बोकर शुरुआत कर दी और 3 दिसंबर 2006 को वह सिंगूर मामले पर भूख हड़ताल पर बैठ गईं. एक मामूली विरोध प्रदर्शन को दिसंबर आते-आते ममता बनर्जी बड़ा राष्ट्रीय मुद्दा बना चुकी थीं. किसानों के प्रति सहानुभूति और कारोबारियों पर उनके लगातार हमले इस आंदोलन को और हवा दे रहे थे. कई बार सिंगूर में हिंसा भी हुई. बात यहां तक पहुंच गई कि तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को उनसे भूख हड़ताल खत्म करने की अपील करनी पड़ी. इसके बाद ममता ने भूख हड़ताल खत्म कर दी.  

मामला सुलझाने की कोशिश रही फेल

लेकिन विरोध के बावजूद 9 मार्च 2007 को टाटा और राज्य सरकार के बीच सिंगूर जमीन समझौता मामले में हस्ताक्षर हुए. राज्य सरकार ने तृणमूल कांग्रेस से बातचीत करके मामला सुलझाने की कोशिश की, लेकिन बातचीत फेल हो गई. 

14 जून 2007 को राज्य सरकार ने ऐलान कर दिया कि वह किसानों को उनकी जमीन नहीं लौटाएगी, जिसके बाद प्रदर्शन और तेज हो गया. 2008 की 15 फरवरी को टाटा ग्रुप ने ऐलान किया कि वह अक्टूबर तक लखटकिया कार नैनो लॉन्च कर देगी. 

मामले को शांत करने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेब भट्टाचार्य ने टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी को बातचीत के लिए बुलाया. 20 अगस्त 2008 को दोनों के बीच बातचीत हुई लेकिन फिर नाकाम रही. इसके दो दिन बार रतन टाटा ने ऐलान किया कि अगर सिंगूर में हिंसा जारी रही तो वह पश्चिम बंगाल से अपना प्रोजेक्ट वापस ले लेंगे.

अगले महीने यानी 3 सितंबर 2008 को टाटा ग्रुप ने सिंगूर में काम सस्पेंड कर दिया और बाकी जगह खोजी जाने लगीं. लेकिन ये वो वक्त था, जब ममता बनर्जी का कद राज्य में लगातार मजबूत होता जा रहा था. जनता उनके इस रूप को पसंद कर रही थी.  

किसानों को बेहतर मुआवजे का ऐलान

मामला काबू में ना आता देख बंगाल के तत्कालीन गवर्नर गोपाल कृष्ण गांधी मध्यस्थता करने को तैयार हो गए. राज्य सरकार और टीएमसी ने उनसे मिलने के लिए हामी भर दी. 5 सितंबर 2008 को राजभवन में बैठक हुई. 7 सितंबर 2008 को राजभवन की तरफ से एक मीडिया रिलीज जारी की जाती है, जिसमें कहा जाता है कि सरकार ने उन किसानों की मांगों का जवाब देने के लिए यह फैसला लिया है जिन्हें मुआवजा नहीं मिला है. 7 दिन बाद पश्चिम बंगाल सरकार ने सिंगूर में जमीन गंवाने वाले किसानों को बेहतर मुआवजा देने का ऐलान किया.

लेकिन तब तक बात बहुत आगे बढ़ गई थी और इतना विवाद बढ़ता देख 3 अक्टूबर 2008 को टाटा ने पश्चिम बंगाल से नैनो प्रोजेक्ट हटाकर गुजरात शिफ्ट करने का फैसला लिया. ममता बनर्जी की फायरब्रैंड राजनीति के लिए यह एक जीत की तरह था. इसके बाद राज्य में चुनाव हुए तो ममता बनर्जी की अगुआई में टीएमसी ने 30 साल से ज्यादा पुरानी वामपंथी सरकार को उखाड़ फेंका और 20 मई 2011 को ममता बनर्जी ने बंगाल की मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. नई कैबिनेट बनी तो पहला ही फैसला लिया गया कि किसानों को 400 एकड़ की जमीन लौटाई जाएगी. 

इसके बाद राज्य सरकार 9 जून 2011 को एक अध्यादेश लेकर आई, जिसमें उसने 997 एकड़ की जमीन को टेकओवर कर लिया और कारण टाटा मोटर्स की नॉन परफॉर्मेंस बताया.  5 दिन बाद पश्चिम बंगाल विधानसभा ने 400 एकड़ भूमि फिर हासिल करने के लिए सिंगूर भूमि पुनर्वास और विकास अधिनियम पारित किया.

कलकत्ता हाई कोर्ट पहुंची टाटा मोटर्स

टाटा मोटर्स ने सिंगूर भूमि पर एकपक्षीय राहत की मांग करते हुए 22 जून 2011 को कलकत्ता उच्च न्यायालय का रुख किया. कोर्ट ने राज्य सरकार को अगले नोटिस तक जमीन का बांटने से मना कर दिया. 28 सितंबर 2011 को कलकत्ता हाईकोर्ट ने सिंगूर भूमि पुनर्वास और विकास अधिनियम को बरकरार रखा. इस फैसले को टाटा मोटर्स ने डिविजन बेंच में चुनौती दी. 

22 जून 2012 को कलकत्ता हाईकोर्ट की डिविजन बेंच ने ने सिंगूर भूमि पुनर्वास और विकास अधिनियम 2011 को असंवैधानिक करार दिया. 6 अगस्त 2012 को ममता सरकार ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. 31 अगस्त 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने सिंगूर में टाटा नैनो प्रोजेक्ट के लिए भूमि अधिग्रहण को रद्द कर दिया और राज्य सरकार को 12 सप्ताह के भीतर सभी को जमीन वापस करने का आदेश दिया.

इसके बाद टाटा मोटर्स ने जमीन के लीज समझौते में एक क्लॉज का हवाला लिया और मुआवजे की मांग की. इस क्लॉज में लिखा था कि अगर किसी वजह से जमीन अधिग्रहण को अवैध करार दिया जाता है तो सरकार टाटा ग्रुप को घटनास्थल पर होने वाली पूंजीगत लागत के लिए मुआवजा देगा. टाटा ग्रुप ने मध्यस्थता की मांग उठाई और कोर्ट के सामने दावा पेश किया. अब इसी मामले में टाटा ग्रुप को कोर्ट से जीत मिली है. यानी जिस मुद्दे को लेकर ममता बनर्जी ने इतना विरोध प्रदर्शन किया, उसी में उनको आखिर में कोर्ट से झटका लगा.

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