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Jagat Seth: मुगल से लेकर अंग्रेज तक इस शख्स के थे कर्जदार, 'जगत सेठ' की मिली थी पदवी

International Banker Jagat Seth: भारत को यूं ही नहीं सोने की चिड़िया कहा जाता था. 18वीं सदी में फतेह चंद नाम का एक शख्स आज के अंबानी की तरह था. उसके पास इतनी संपत्ति थी कि मुगल और अंग्रेज कर्ज लिया करते थे. मुगल बादशाह मुहम्मद शाह ने तो जगत सेठ की पदवी तक दी थी.

Jagat Seth: मुगल से लेकर अंग्रेज तक इस शख्स के थे कर्जदार, 'जगत सेठ' की मिली थी पदवी
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Lalit Rai|Updated: Aug 29, 2023, 09:55 AM IST

Jagat Seth News: घर परिवार और उन्हें जानने वाले फतेह चंद के नाम से जानते थे लेकिन दुनिया में जगत सेठ के नाम से जाने गए. आखिर फतेह चंद का कहां से नाता था और उन्हें यह पदवी क्यों मिली. 18वीं सदी में भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी धीरे धीरे अपना प्रभाव बढ़ा रही थी. ईस्ट इंडिया कंपनी को अपने व्यापार को आगे बढ़ाने के लिए मदद की जरूरत पड़ती थी. मदद की आस में वो इधर उधर भटका करते थे. इन सबके बीच उन्हें पता चला कि बंगाल में फतेह चंद नाम का एक शख्स रहता है जो जगत सेठ के नाम से जाना जाता है. जगत सेठ का मतलब दुनिया का बैंकर.

मुगल बादशाह ने दी थी पदवी

फतेह चंद यानी जगत सेठ की अमीरी का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि उन्होंने ना सिर्फ सामान्य लोगों को कर्ज बांटे बल्कि मुगल, अंग्रेज तक कर्जदार बन गए. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का आधिकारिक इतिहास लिखने वाले रोबेन होर्म ने 1750 में उनकी संपत्ति 14 करोड़ रुपए के करीब आंकी थी. अगर इसे आज के हिसाब से देखें तो उनकी नेटवर्थ 2 लाख करोड़ के करीब थी. इस संपत्ति से ही आप खुद ब खुद अंदाजा लगा सकते हैं. सवाल यह है कि फतेह चंद को जगत सेठ की पदवी किसने दी थी. 18वीं सदी के शुरुआत से मुगल सत्ता में दरारें दिखने लगी थी. 1723 में मुगल बादशाह मुहम्मद शाह ने जगत सेठ की उपाधि दी थी.

जगत सेठ से बेईमानी कर गए अंग्रेज

18वीं सदी में फतेह चंद यानी जगत सेठ का कारोबार ना सिर्फ कलकत्ता बल्कि ढाका, पटना, लखनऊ और दिल्ली तक फैला हुआ था, वो ब्याज पर पैसे देने का काम करते थे. देश के कई इलाकों में आधुनिक बैंक की तरह उनके दफ्तर थे जहां से कर्ज पर पैसे देने का काम होता था. अंग्रेज अपने आपको सभ्य मानते थे लेकिन व्यापार में बेइमानी उनके खास लक्षणों में से एक था, सियार उल मुत्खैरीन के मुताबिक ईस्ट इंडिया कंपनी के कारिंदों ने बड़ी मात्रा में कर्ज लिया था. लेकिन जब कर्ज की रकम लौटाने की बारी आई तो वो मुकर गए और उसका असर यह हुआ कि जगत सेठ और उनके वंशज बर्बाद हो गए.

जगत सेठ की चर्चा अब किताबों तक सीमित

18वीं सदी में जिस शख्स की चर्चा ना सिर्फ हिंदुस्तान बल्कि बाहर के मुल्कों में हुआ करती थी उसका अवसान हो चुका था. 20 वीं सदी के आते आते वो स्मृतियों में ही सिर्फ रह गए, साल 1980 में पश्चिम बंगाल स्थिति जगत सेठ के घर को म्यूजियम में बदल दिया गया. तत्कालीन इतिहासकारों के मुताबिक अगर अंग्रजों ने कर्ज को समय पर लौटाया होता तो उनके परिवार की हालत बहुत अच्छी रही होती. जिस तरह से हम आज टाटा, बिड़ला, अंबानी, डालमिया की बात करते हैं शायद उसी श्रेणी में फतेह चंद का परिवार रहा होता.

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