Electoral Bonds News: सुप्रीम कोर्ट द्वारा चुनावी बांड योजना को रद्द करने के फैसले के बाद चुनाव आयोग कई सवालों से जूझ रहा है. टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक आयोग को डर है कि चुनावी साल में -बेहिसाब नकदी या 'शेल संस्थाओं' के रूप में काम करने वाले पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों (आरयूपीपी)- की पॉलिटिकल फंडिंग के प्रमुख तरीके के रूप में वापसी हो सकती है.
रिपोर्ट के मुताबिक आयोग के सूत्रों ने कहा कि बांड की समाप्ति बड़ी और छोटी पार्टियों को अपने चुनाव अभियानों के लिए अस्पष्ट कैश डोनेशन स्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है. हालांकि ट्रांसपेरेंसी की कमी को लेकर बांड शुरू से ही विवादों में रहे, लेकिन एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया कि बांड राजनीतिक फंडिंग में बेहिसाब नकदी को लगभग 80% तक कम करने में मदद की है.
चौंकाने वाले आंकड़े
2018 में चुनावी बांड की पहली किश्त की बिक्री के बाद से 18 राजनीतिक दलों ने चुनावी बांड के जरिए 11,975 करोड़ रुपये की कुल फंडिंग की घोषणा की थी. इनमें से 54% (6,566 करोड़ रुपये) बीजेपी को, 9.3% कांग्रेस को (1,123 करोड़ रुपये) और 9.1% मिले. (1,093 करोड़ रुपये) तृणमूल कांग्रेस को मिला था.
राष्ट्रीय पार्टियों (बीजेपी, कांग्रेस, सीपीएम और आप) को जहां 2017-18 और 2022-23 के बीच बांड के माध्यम से कुल 7,847 करोड़ रुपये का योगदान मिला, वहीं क्षेत्रीय पार्टियों का हिस्सा 4,128 करोड़ रुपये था.
बीजेपी समेत इन पार्टियों की फंडिंग का मेन सोर्स थे बांड
आंकड़ो से एक बात और उभर कर आई कि चुनावी बांड सिर्फ बीजेपी की इनकम का मेन सोर्स नहीं थे. बल्कि तृणमूल कांग्रेस, डीएमके, बीजेडी और वाईएसआरसीपी जैसे क्षेत्रीय दलों की भी आय का प्राथमिक स्रोत भी यही चुनावी बांड थे.
2017-18 और 2022-23 के बीच बीजेपी को मिले पैसों का 34% बांड के माध्यम से था. उसी अवधि के दौरान बांड से तृणमूल की आमद उसकी कुल प्राप्तियों का 84% थी.
2022-23 में बीजेपी को मिले पैसों में से चुनावी बांड का योगदान 54% था, लेकिन यही हिस्सेदारी तृणमूल के लिए 97%, डीएमके के लिए 87%, बीजेडी के लिए 84%, वाईएसआर कांग्रेस के लिए 70% और बीआरएस के लिए 71% से थी.