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DNA Analysis: कट्टरपंथ और अलगाववाद का दंश कब तक सहेगा देश? भारत में कब लागू होगा एक देश, एक कानून

DNA on Uniform Civil Code: देश के कई हिस्सों में सरकारी स्कूलों में जुम्मे यानी शुक्रवार को छुट्टी देने और हिजाब पहनकर आने का चलन शुरू हो गया है. तो क्या अब देश कानून के बजाय शरीयत से चलने वाला है. 

DNA Analysis: कट्टरपंथ और अलगाववाद का दंश कब तक सहेगा देश? भारत में कब लागू होगा एक देश, एक कानून
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Zee News Desk|Updated: Jul 12, 2022, 02:05 AM IST

DNA on Uniform Civil Code: स्कूलों में फैल रहा साम्प्रदायिकता का ये संक्रमण कोरोना वायरस से भी ख़तरनाक है. कोरोना की वैक्सीन तो आ गई लेकिन इसकी वैक्सीन कब आएगी? आज बड़ा सवाल यही है. इस वायरस की वैक्सीन का नाम है, Uniform Civil Code. हम आपको बताते हैं कि देश में अगर Uniform Civil Code लागू हो गया तो हमारे देश के 15 लाख स्कूलों में पढ़ने वाले 25 करोड़ छात्र इस वायरस से बच जाएंगे.  

Uniform Civil Code एक Secular यानी पंथनिरपेक्ष कानून है, जो किसी भी धर्म या जाति के सभी निजी कानूनों से ऊपर होता है. लेकिन भारत में अभी इस तरह के क़ानून की व्यवस्था नहीं है. फिलहाल देश में हर धर्म के लोग शादी, तलाक़ और ज़मीन ज़ायदाद के मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ के मुताबिक़ करते हैं. मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदाय के अपने पर्सनल लॉ हैं, जबकि Hindu Personal Law के तहत हिन्दू, सिख, जैन और बौद्ध धर्म के सिविल मामलों का निपटारा होता है. कहने का मतलब ये है कि अभी एक देश, एक कानून की व्यवस्था भारत में नहीं है.

भारत सेक्युलर लेकिन कानूनों में समानता नहीं

ये विडम्बना ही है कि भारत का संवैधानिक Status तो Secular है यानी धर्मनिरपेक्ष है, जो सभी धर्मों में विश्वास और समानता की बात करता है. लेकिन एक धर्मनिरपेक्ष देश में क़ानूनों को लेकर Uniformity यानी समानता नहीं है. जबकि इस्लामिक देशों में इसे लेकर क़ानून है. यानी जो देश धर्मनिरपेक्ष है, वही समान कानून के रास्ते पर आज तक नहीं चल पाया है. भारत में भले एक देश, एक क़ानून की व्यवस्था ना हो, लेकिन कई देशों ने इसे अपनाया है.

फ्रांस में Common Civil Code लागू है, जो वहां के सभी धर्मों के लोगों पर समान कानून की व्यवस्था को सुनिश्चित करता है. United Kingdom के English Common Law की तरह अमेरिका में Federal Level पर Common law system लागू है . ऑस्ट्रेलिया में भी English Common Law के जैसा ही Common law system लागू है. इसके अलावा Russia, कनाडा, जर्मनी और उज्बेकिस्तान जैसे देशों में भी Civil Law system लागू हैं, जो एक देश, एक कानून को सुनिश्चित करता है.

लेकिन Kenya, पाकिस्तान, South Africa, Nigeria और Greece में समान नागरिक संहिता जैसे कानून नहीं है. Kenya, Greece और South Africa में ईसाई बहुसंख्यक हैं लेकिन यहां मुसलमानों के लिए अलग कानून है. पाकिस्तान एक इस्लामिक देश है लेकिन यहां कुछ मामलों में हिंदुओं के लिए अलग प्रावधान हैं. हालांकि पाकिस्तान में हिन्दुओं को इतनी आजादी नहीं है. इसके अलावा नाइजीरिया में चार तरह के कानून लागू हैं. English Law, Common Law, Customary Law और शरीयत. यानी यहां भी भारत की तरह सभी धर्मों के लिए समान कानून नहीं है.

फ्रांस की तरह समान नागरिक संहिता जरूरी

यहां Point ये है कि जिन देशों में Uniform Civil Code जैसे कानून हैं, उन देशों में धर्मनिरपेक्षता का विचार ज्यादा व्यावहारिक है. उदाहरण के लिए फ्रांस में लगभग 10 प्रतिशत मुसलमान रहते हैं. लेकिन वहां एक देश एक कानून होने की वजह से मुस्लिम समुदाय के लोग तीन तलाक और बाल विवाह जैसी इस्लामिक मान्यताओं का पालन नहीं कर सकते. इसके अलावा फ्रांस में Common Civil Code होने की वजह से ही वहां पर स्कूलों में बुर्के और हिजाब पर पूरी तरह बैन लगाना सम्भव हुआ है. Nutshell में कहें तो Uniform Civil Code एक ऐसी वैक्सीन है, जो धार्मिक कट्टरवाद के संक्रमण से भारत को बचा सकती है. इसे आप भारत के ही एक राज्य गोवा के उदाहरण से समझ सकते हैं.

वर्ष 1961 में जब गोवा का भारत में विलय हुआ था, तभी से वहां Uniform Civil Code लागू है. यानी वहां इस्लाम धर्म को मानने वाले पुरुष एक से ज्यादा शादी नहीं कर सकते. सभी धर्मों की लड़कियों के लिए शादी की उम्र एक जैसी है और तलाक और सम्पत्ति के बंटवारे में भी महिलाओं को एक जैसे अधिकार हासिल हैं. यानी वहां कानूनों को अलग अलग धर्मों के हिसाब से तय नहीं किया गया है.

गोवा मॉडल देश में क्यों नहीं हो सकता लागू?

गोवा में लगभग साढ़े 8 प्रतिशत मुसलमान, 25 प्रतिशत ईसाई और 66 प्रतिशत हिन्दू आबादी रहती है. लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि गोवा में किसी मुस्लिम समुदाय के व्यक्ति ने इसका विरोध किया हो? या एक समान कानून से वहां इस्लाम धर्म खतरे में आ गया हो. यहां एक और महत्वपूर्ण Point ये भी है कि भारत में Criminal Law सभी धर्मों के लिए समान है. यानी चोरी, हत्या और लूट की वारदात चाहे कोई मुसलमान करे या कोई हिन्दू धर्म का व्यक्ति करे, सब पर एक जैसी धाराएं और सजा लागू होती हैं.

हमारा सवाल है कि एक समान Criminal Law होने से किसका धर्म खतरे में पड़ा है? लेकिन Uniform Civil Code को लेकर ये धारणा पैदा कर दी गई है कि इससे एक खास धर्म खतरे में आ जाएगा. इसी वजह से भारत के लिए इस कानून को लागू करने में कई चुनौतियां नज़र आती हैं.

भारत के संविधान का आर्टिकल 44 ये निर्देश देता है कि उचित समय पर सभी धर्मों के लिए पूरे देश में 'समान नागरिक संहिता' लागू की जाए. लेकिन कभी वोट बैंक की राजनीति की वजह से, कभी साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की वजह से और कभी सरकार को बचाए रखने के लिए इस विषय को छेड़ा तक नहीं जाता और यही वजह है कि भारतीय संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है, लेकिन ये आज भी प्रासंगिक नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट भी दे चुका है UCC लागू करने का आदेश

वर्ष 1985 में शाह बानो केस के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि Uniform Civil Code देश को एक रखने में मदद करेगा. तब कोर्ट ने ये भी कहा था कि देश में अलग-अलग कानूनों से होने वाली विचारधाराओं के टकराव खत्म होंगे. वर्ष 1995 में भी सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार को ये निर्देश दिए थे कि संविधान के Article 44 को देश में लागू किया जाये.

झारखंड के स्कूलों में रविवार की जगह शुक्रवार को छुट्टी देने का ये मामला अभी सामने आया है. लेकिन एक कड़वा सच ये है कि इस समस्या के बीज आज से 74 वर्ष पहले ही इस देश की व्यवस्था में डाल दिए गए थे. और ये सबकुछ मुस्लिम वोट बैंक के लिए हुआ था.

संविधान सभा में कई सदस्यों ने किया था विरोध

23 नवम्बर 1948 को संविधान में Uniform Civil Code पर जोरदार बहस हुई थी, जिसमें ये प्रस्ताव रखा गया था कि सिविल मामलों में निपटारे के लिए देश में समान कानून होना चाहिए या नहीं. लेकिन संविधान सभा के सदस्य मोहम्मद इस्माइल साहिब, नज़ीरुद्दीन अहमद, महबूब अली बेग साहिब बहादुर, पोकर साहिब बहादुर और हुसैन इमाम ने एक मत से इसका विरोध किया. उस समय संविधान सभा के सभापति डॉ राजेन्द्र प्रसाद और तमाम बड़े कांग्रेसी नेता भी इसके खिलाफ थे.

इन सभी सदस्यों की तब दलील थी कि समान कानून होने से मुस्लिम पर्सनल लॉ खत्म हो जाएगा और इसमें मुस्लिमों के लिए जो चार शादियां, तीन तलाक और निकाह हलाला की व्यवस्था की गई है, वो भी समाप्त हो जाएगी. भारी विरोध की वजह से उस समय संविधान की मूल भावना में समान अधिकारों का तो जिक्र आया लेकिन समान कानून की बात ठंडे बस्ते में चली गई.

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