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UP के वो CM जो चाय-नाश्ते के पैसे अपनी जेब से भरते थे लेकिन इस वजह से छोड़ना पड़ा पद

आज आजाद भारत में उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री रहे गोविंद बल्लभ पंत का जन्मदिन है. उनके राजनीतिक कद का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यूपी के बड़े नेता उस समय राजनीति में छाए हुए थे लेकिन फिर भी पहाड़ों में जन्में पंत को UP का पहला सीएम बनाया गया. 

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UP के वो CM जो चाय-नाश्ते के पैसे अपनी जेब से भरते थे लेकिन इस वजह से छोड़ना पड़ा पद
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Zee Media Bureau|Updated: Sep 10, 2022, 09:20 AM IST

Govind Ballabh Pant: गोविंद बल्लभ पंत का जन्मदिन 10 सितंबर को मनाया जाता है, उनका जन्म उत्तराखंड के अल्मोड़ा में 1887 में हुआ था लेकिन पंत मूल रूप से महाराष्ट्रियन थे. इनके पिता सरकारी नौकरी में थे. बचपन में ही पिता की मृत्यु होने के बाद पंत अपने नाना के पास पले-बढ़े. बहुत मोटे और आलसी होने के कारण बचपन में इन्हें थपुवा कहकर बुलाया जाता था. पंत बचपन से ही पढ़ने में काफी होशियार थे. 

गोविंद बल्लभ पंत से जुड़े बहुत सी किस्से और कहानियां हैं, जिसमें से एक कहानी ये भी है कि पंत चाय का बिल अपने पास से ही देते थे. वो कहते थे कि नाश्ते पर हुए खर्च को  सरकारी खजाने से चुकाने की मैं नहीं दे सकता. उस खजाने पर जनता और देश का हक है, मंत्रियों का नहीं. 

अल्मोड़ा से की वकालत की शुरुआत
1910 में उन्होंने अल्मोड़ा आकर वकालत शुरू की. वकालत के सिलसिले में वह पहले रानीखेत गये फिर 1914 में काशीपुर में जाकर प्रेमसभा नाम से एक संस्था का गठन किया. इसका उद्देश्य शिक्षा और साहित्य के प्रति जनता में जागरुकता पैदा करना था. इस संस्था का काम इतना फैला हुआ था कि अंग्रेजी स्कूलों को काशीपुर से अपना बोरिया बिस्तरा तक बांधना पड़ा. 

सच्चाई के लिए जाने जाते थे पंत
गोविंद बल्लभ पंत अपनी सच्चाई के लिए जाने जाते थे. झूठ बोलने पर वो केस छोड़ देते थे. बाद में उन्होंने कुली बेगार कानून के खिलाफ केस लड़ा. इस कानून के अनुसार अंग्रेजी अफसरों का सामान लोकल लोगों को फ्री में ढ़ोना पड़ता था. पंत इसके बिल्कुल खिलाफ थे क्योंकि उनका मानना था कि हर किसी को अपने हक का पैसा मिलना ही चाहिए, फिर चाहे वो कोई भी हो.

1921 में राजनीति में आए 
गोविंद बल्लभ पंत 1921 में चुनाव में उतरे और लेजिस्लेटिव असेंबली में चुने गये. उस समय यूनाइटेड प्रोविंसेज ऑफ आगरा और अवध होता था. 

स्वतंत्रता संग्राम का बने हिस्सा, जेल भी गए
दिसंबर 1921 में गांधी जी के कहने पर असहयोग आंदोलन के रास्ते राजनीति में आए. 1921, 1930, 1932 और 1934 के स्वतंत्रता संग्रामों में पंत लगभग 7 साल जेल में रहें. साइमन कमीशन के खिलाफ 29 नवंबर 1927 में लखनऊ में जुलूस और प्रदर्शन करने के दौरान अंग्रेजों के लाठीचार्ज में पंत को चोटें भी आईं, जिससे उनकी गर्दन झुक गई थी.

-1930 नमक आंदोलन के दौरान गिरफ्तार हुए. 
-1932 में पंत, नेहरू के साथ बरेली और देहरादून जेल में रहे.
-1933 में चौकोट के गांधी कहे जाने वाले हर्ष देव बहुगुणा के साथ गिरफ्तार हुए.
-1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में गिरफ्तार हुए. तीन साल अहमदनगर फोर्ट में नेहरू के साथ जेल में रहे तब नेहरू ने उनकी हेल्थ का हवाला देकर उन्हें जेल से छुड़वाया. उस दौरान ही नेहरू से इनकी दोस्ती की शुरुआत हुई.

 इंदिरा गांधी को कांग्रेस प्रेसिडेंट बनाने पर पंत ने किया विरोध
कहते हैं कि जब नेहरू ने इंदिरा गांधी को कांग्रेस का प्रेसिडेंट बनाया तो पंत ने इसका विरोध किया था. इसके साथ यह भी कहा जाता है कि पंत ने ही इंदिरा गांधी को लाने के लिए नेहरू को उकसाया था. 

मुख्यमंत्री बने गोविंद बल्लभ पंत 
गोविंद बल्लभ पंत 3 बार यूपी के मुख्यमंत्री रहें. 1937 में ब्रिटिश भारत के संयुक्त प्रांत और यूपी के पहले सीएम बने. फिर साल 1946 में दूसरी बार यूपी के सीएम बने. तीसरी बार जब भारत का अपना संविधान बना और संयुक्त प्रांत का नाम बदलकर उत्तर प्रदेश रखा गया तो फिर से उन्हें सीएम पद के लिए चुना गया. तब पंत 26 जनवरी 1950 से 27 जुलाई 1954 तक मुख्यमंत्री रहे. 

सीएम के बाद बने गृह मंत्री 
1955 से 1961 के बीच गोविंद बल्लभ पंत केंद्र सरकार में होम मिनिस्टर रहे. सरदार पटेल की मृत्यु के बाद उन्हें गृह मंत्रालय का दायित्व सौंपा गया. इस दौरान इनकी उपलब्धि रही भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन. उस वक्त कहा जाता था कि ये देश को तोड़ देगी. पर इतिहास देखें तो पाएंगे कि इस चीज ने भारत को सबसे ज्यादा जोड़ा.

1957 में मिला भारत रत्न
पंत का सबसे ज्यादा योगदान हिंदी को राजकीय भाषा का दर्जा दिलाने के लिए ही माना जाता है. साल 1957 में गणतंत्र दिवस के अवसर पर महान देशभक्त, कुशल प्रशासक, सफल स्पीकर, तर्क के धनी और बड़े दिल वाले पन्त को भारत की सर्वोच्च उपाधि 'भारतरत्न' से सम्मानित किया गया. 

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