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Exclusive: क्या है पॉल्यूशन का परमानेंट सॉल्यूशन? जानिए CSE की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर की राय

Pollution News:  दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण एक बेहद परेशान करने वाला समस्या है, जिसे लेकर आज ज़ी मीडिया ने 'विज्ञान और पर्यावरण केंद्र' यानी Centre for Science and Environment की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर अनुमिता रॉय चौधरी से बातचीत की. जानिए उन्होंने क्या कहा?

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Exclusive: क्या है पॉल्यूशन का परमानेंट सॉल्यूशन? जानिए CSE की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर की राय
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Tarun Kumar|Updated: Sep 29, 2023, 10:00 PM IST

Pollution News: जिलाधीश एवं डीसी निशान्त कुमार यादव ने बढ़ते प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए गुरुग्राम जिला में पटाखों के भंडारण, बिक्री व इस्तेमाल (ग्रीन पटाखों को छोड़कर) पर रोक लगाने के आदेश जारी किए है. जारी आदेशों में फ्लिपकार्ट, अमेज़न आदि ई- कॉमर्स कम्पनियां पटाखों के किसी भी ऑनलाइन ऑर्डर को स्वीकार नहीं करने की मनाही की गई है. दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण एक बेहद परेशान करने वाला समस्या है, जिसे लेकर आज ज़ी मीडिया ने 'विज्ञान और पर्यावरण केंद्र' यानी Centre for Science and Environment की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर अनुमिता रॉय चौधरी से बातचीत की. जानिए उन्होंने क्या कहा?

सवाल- CSE की स्टडी का क्या पूर्वानुमान है कि दिल्ली एनसीआर में इस बार सर्दियो में प्रदूषण का सितम कितना विकराल रह सकता है? ये इस दावे के मद्देनजर महत्वपूर्ण है कि पंजाब से पराली का प्रदूषण और दिल्ली सरकार का भी दावा है कि 9 सालों में पीएम 2.5, पीएम 10 लगातार कम हुआ है.

जवाब- जिस तरह का ट्रेंड हम देख रहे हैं. पिछले कुछ सालों से तो यह बात ठीक है कि पिछले 6 से 7 साल में जो एनुअल लेवल वायु प्रदूषण का जो साल भर रहता है उसकी मात्रा कम हो रही है, बढ़ नहीं रही है. हमें यह भी ध्यान देना होगा कि यह कम होने के बावजूद 60% उसमें और कमी लाने की जरूरत है, ताकि हम साफ हवा के मानक बन सके. लेकिन साल भर का प्रदूषण और सर्दियों का प्रदूषण अलग होता है. यह बहुत ज्यादा निर्भर करता है कि सर्दियों में मौसम कैसा रहता है क्योंकि सर्दियों में हवा की ऊंचाई नीचे हो जाती है, हवा की गति भी धीमी हो जाती है हवा कई बार बिल्कुल चली जाती है तो इससे प्रदूषण एक जगह ठहर जाता है. तो सर्दियों के वक्त मौसम का बदलाव कैसा रहता है, वायु प्रदूषण की मात्रा उस पर निर्भर करती है. बीते साल प्रदूषण इसलिए भी थोड़ा कम हुआ था क्योंकि बारिश हुई थी, दिवाली और पराली जलने का समय अक्टूबर के महीने में था और हवा की गति ठीक थी, जिसके कारण प्रदूषण जितना बनता है वह बन नहीं पाया था. लिहाजा जो प्रदूषण के दिन थे वह कम थे. क्या इस बार भी बारिश होगी पराली के प्रभाव को कितना हम रोक पाएंगे ये इसपर निर्भर करता है. लेकिन इस बार दिवाली अक्टूबर नहीं बल्कि नवंबर में है, लिहाजा नवंबर में जब यह दोनों एक साथ होंगे तो प्रदूषण बिगड़ जाता है. तो इसका अनुमान लगाना कई कारकों पर निर्भर करता है. लेकिन जो प्रदूषण वायुमंडल में ठहर गया है वह सिर्फ हवा से ही छांट सकता है. उसका आप कुछ नहीं कर सकते. कोशिश यह होनी चाहिए कि प्रदूषण ज्यादा ना हो. इसीलिए इमरजेंसी उपायों की जरूरत होती है और यही GRAP के मायने हैं. तो स्टेज 3 या 4 की बात करें जब कंस्ट्रक्शन को बंद किया जाता है डीजल जनरेटर पर रोक लगाई जाती है वाहनों पर रोक लगाई जाती है यह सभी टेंपरेरी मेजर्स हैं, लेकिन टेंपरेरी मेजर्स पर निर्भरता तभी कम होगी जब सालभर हम एक्शन प्लान पर कम करें. जैसे कि डीजल जनरेटर सेट अगर बंद हो रहे हैं तो हमें बिजली कंपनियों की भी जवाब दे ही सुनिश्चित करनी होगी ताकि पावर सप्लाई को ठीक किया जा सके. 

सवाल 2- क्या GRAP के नियम प्रैक्टिकल नहीं हैं, जिसके कारण लोगों में रोष देखा जाता है. एनसीआर में अस्पताल और सोसाइटी में परेशानी है. मरीजो का ध्यान भी रखना है और एकदम से आर्थिक बोझ बिल्डर्स इम्पोज कर रहे हैं. लोग कहते हैं कि सरकारों ने कुछ नहीं किया और परेशान आम आदमी होता है. 

जवाब- इमरजेंसी सर्विसेज ना रुके सरकार को इस ओर तो कदम उठाने ही चाहिए. जहां तक अस्पतालों या जरूरी सेवाओं का जिक्र है, लेकिन इंडस्ट्री और रेसिडेंशियल इलाकों में जनरेटर सेट को लेकर कदम उठाने जरूरत है. ये नियम हर बार लगाए जाते हैं तो तैयारी तो करनी पड़ेगी. हर साल यह नियम सख्ती से लागू नहीं होते हैं, लेकिन इस बार प्रशासन सख्ती के मूड में है. जहां तक पब्लिक ट्रांसपोर्ट का जिक्र है तो आंकड़े देखें तो बसें और मेट्रो में यात्रियों की संख्या घट रही है. लिहाजा हम कैपेसिटी का पूरा इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि प्राइवेट वाहनों पर रोक नहीं है. हमें पब्लिक सपोर्ट बनाना पड़ेगा. लोग शहर छोड़कर भाग रहे हैं. सेहत पर प्रदूषण का असर पड़ रहा है तो लोगों को प्रशासन का सहयोग करना पड़ेगा. बिल्डर पैसे मांग रहे हैं कि उन्हें जनरेटर सेट कन्वर्ट करना है तो हम कैसे नियम पालन में ला रहे हैं उसके बारे में सोचना चाहिए. एकदम से ऐसा बड़ा फैसला लागू होगा तो लोगों में विरोध होगा, लेकिन हमें हार्ड सॉल्यूशन लेने होंगे सॉफ्ट सॉल्यूशन का समय चला गया है. दिल्ली में सभी पावर प्लांट बंद हो गए हैं. इंडस्ट्री क्लीन फ्यूल पर शिफ्ट हो रही है. पुरानी गाड़ियों पर रोक है. ट्रक पर रोक है. डीजल गाड़ियों पर रोक है. गंदे ईंधन के इस्तेमाल पर रोक है. इससे करीब 30% प्रदूषण पर असर पड़ा है. सभी गाड़ियों को सीएनजी पर चला रहे हैं. 

सवाल 3- केंद्र कितनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी पर है क्योंकि दिल्ली बार- बार बोलती है कि पड़ोसी राज्यों के प्रयासों के बिना राजधानी का प्रदूषण कम नहीं होगा? 

जवाब- दिल्ली का अपना प्रदूषण तो समस्या है, लेकिन जो प्रदूषण बाहर से दिल्ली में आ रहा है उसे रोकने के लिए हमें कुछ रीजनल एक्शन प्लान की जरूरत है. सभी सरकारों को उसी सख्ती के साथ नियमों को लागू करवाना होगा, जैसे कि दिल्ली में हो रहे हैं. प्रदूषण कोई एडमिनिस्ट्रेटिव बाउंड्री नहीं देखता. रीजनल प्लैनिंग जो हमें चाहिए वह राज्य सरकार को करनी होगी. गुडगांव, फरीदाबाद, गाज़ियाबाद, नोएडा और एनसीआर के छोटे शहरों के लिए भी प्लान बनाए गए हैं. लिहाजा पूरे रीजनल लेवल पर अकाउंटेबिलिटी तो लानी ही होगी. 

सवाल4- हर साल बहस कृतिम वर्षा पर भी छिड़ती है क्या ये कभी दिल्ली एनसीआर में संभव हो सकेगा? 

जवाब- इसे हम क्लाउड सीडिंग भी कहते हैं. यह साइंस और टेक्नोलॉजी तो है हम सब जानते हैं, लेकिन इसे करने के लिए एक बड़ी इन्वेस्टमेंट की जरूरत है. ये बहुत महंगा है. आर्टिफिशियल रेन पर जो पैसा लगाएंगे उसे प्रदूषण खत्म करने पर लगाएंगे तो ज्यादा बेहतर होगा. पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सुधार लाएं, गरीबों के चूल्हे जहां पर सॉलिड फ्यूल जलते हैं उसे एलपीजी में कन्वर्ट किया जाए इससे ज्यादा फायदा मिलेगा. ये परमानेंट सोलुशन भी होगा. हमें इसके लिए थोड़ा इंपैक्ट एसेसमेंट भी करना पड़ेगा, जो केमिकल से आप क्लाउड सीडिंग करेंगे वह आखिरकार आपके सॉइल पर ही गिरेगा और सबसे अहम यह करने के लिए आपको आसमान में बादल की भी तो जरूर होगी अगर बदल ही नहीं होगा तो फिर आर्टिफिशियल रेन कैसे संभव है. लिहाजा एक कंपलीट असेसमेंट किए जाने की जरूरत है. तो हमें तय करना होगा कि हमें यहां इन्वेस्ट करना है या फिर प्रदूषण खत्म करने के उपाय में इन्वेस्ट करना है.

सवाल- CSE की एक एनुअल रिपोर्ट में बताया गया है की वायु प्रदूषण से शहरों में रहने वालों की उम्र 4 साल 10 महीना कम हुई है. साल 2020 के बाद क्या संकेत दे रहा है. प्रदूषण हमारे जीवनकाल पर कितना विपरीत असर डाल रहा है. 

जवाब- वायु प्रदूषण से हम कहते हैं कि लोगों की मौत हो रही है, लेकिन अगर हम वायु प्रदूषण रोकेंगे तो इससे लोगों की उम्र भी बढ़ेगी यह एक इंसेंटिव की बात है. लोगों में यह समझना बहुत जरूरी है क्योंकि अगर हम बीमार रहेंगे तो हमारे प्रोडक्टिव इयर्स घट जाएंगे. इसका जीडीपी पर भी असर पड़ता है इकोनॉमी पर असर पड़ता है. लोगों में अगर जागरूकता बनती है तो लोगों का पर्सनल प्रोटेक्शन सुनिश्चित हो सकेगा. पर्सनल प्रोटेक्शन अगर सिर्फ एयर प्यूरीफायर और मास्क तक रुक जाता है तो जो बड़े-बड़े समाधान की बात कर रहे हैं वह नहीं हो पाएगा. क्योंकि अल्टीमेटली हमें प्रदूषण को खत्म करना है. और इसके लिए जन जागरूकता बहुत जरूरी है. जैसे कि कंस्ट्रक्शन एक्टिविटी अगर हो रही है तो हमें देखना होगा कि डस्ट कंट्रोल हो रहा है या नहीं क्या कोई कूड़ा जल रहा है लोगों में कम्युनिटी सर्विलेंस की जरूरत है. यह हमारी अपनी जिम्मेदारी है. स्मॉल ट्रिप के लिए हम गाड़ी ना निकले, पब्लिक ट्रांसपोर्ट का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करें, पैदल जाएं, साइकिल का इस्तेमाल करें, कार पुलिंग करें. सरकार कई बार झुक जाती है क्योंकि लोगों का दबाव होता है, लोग विरोध करते हैं. अगर पब्लिक सपोर्ट नहीं होगा तो सरकारी यह नहीं कर सकती. तो यह सिर्फ जागरूकता से ही संभव हो सकता है.

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