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World AIDS Day 2023: एड्स के बारे में ये गलतफहमी कर लें दूर, ऐसा कुछ नहीं होता

वर्ल्ड एड्स डे को मनाने का मेन कारण है लोगों के बीच एचआईवी को लेकर जागरूकता फैलाना. ये दिन हर साल 1 दिसंबर को मनाया जाता है. आइए जानते हैं इसके बारे में कुछ बातें.   

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World AIDS Day 2023: एड्स के बारे में ये गलतफहमी कर लें दूर, ऐसा कुछ नहीं होता
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Zee News Desk|Updated: Dec 01, 2023, 06:34 PM IST

क्यों मनाया जाता है वर्ल्ड एड्स डे?
देश में एड्स के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए हर वर्ष 1 दिसंबर को वर्ल्ड एड्स डे रूप में मनाया जाता है. हमारे समाज में एड्स को लेकर कई सारे मिथक हैं. इन मिथक का एक मुख्य कारण लोगों  में जानकारी की कमी है. वर्ल्ड एड्स डे के दिन लोगों को एड्स से बचाव के तरीके के बारे में जागरूक किया जाता है. लोगों के बीच एचआईवी पॉजिटिव को लेकर कई गलत अवधारणाएं होती हैं. वर्ल्ड एड्स डे के दिन पूरे सामाज को एड्स से लड़ने के लिए प्रेरित किया जाता है. इस खास दिन को मनाने के लिए हर साल एक थीम रखी जाती है. इस साल की थीम लेट कम्यूनिटीज लीड (Let communities lead) है. 

क्या है इसका इतिहास?
इस खास दिन को मनाने की सबसे पहली शुरुआत WHO ने 1 दिसंबर 1998 को की थी. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन  ने 2022 में एक डाटा साझा किया था, जिसके अनुसार दुनियाभर में लगभग 3.6 करोड़ लोग एचआईवी पॉजिटिव हैं. इससे बचने और रोकथाम के लिए लोगों में जागरूकता फैलाना जरूरी है. 

कैसे फैलता है एड्स
एड्स, एचआईवी वायरस के कारण होने वाले संक्रमण की वजह होने वाला रोग है. यह हमारे प्रतिरक्षा प्रणाली को नुकसान पहुंचाता है और शरीर को भी कमजोर कर देता है. एचआईवी यौन से फैलने वाले इंफेक्शन के अलावा खून चढ़ाने, किसी संक्रमित इंसान को लगे इंजेक्शन के इस्तेमाल और गर्भावस्था या स्तनपान से बच्चे में होने का खतरा बना रहता है. 

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लोगों के बीच इससे जुड़े मिथक 

1- लोगों के बीच में एचआईवी को लेकर ये एक बहुत बड़ा मिथक है कि यह खांसने, छूने और एक-दूसरे से हाथ मिलाने से फैलता है. एड्स वायरस लोगों के बीच तभी फैलता है जब त्वचा पर घाव या खरोंच हो. 

2- एचआईवी को लेकर यह भी एक मिथक है कि इससे पीड़ित लोग जल्दी मर जाते हैं. एचआईवी से पीड़ित लोग दवाओं की मदद से कई साल तक जीवित रह सकते हैं. 

3- लोगों के बीच यह भी एक मिथक है कि एचआईवी पॉजिटिव से पैदा होने वाले बच्चे हमेशा एचआईवी पॉजिटिव ही होंगे. एंटीरेट्रोवाइरल उपचार और सी-सेक्शन और दूसरे एहतियाती कदम को उठाकर पैदा हुए बच्चे में इस वायरस के जोखिम को 2 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है. 

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