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Fatehabad News: न फसलें बचीं न घर और न खुशियां, अब बेबस बाढ़ पीड़ितों को सता रही सुरक्षा की चिंता

Fatehabad News: बाढ़ शिविर में रह रहे लोगों ने बताया कि उनका सब कुछ पानी की भेंट चढ़ गया है. यहां आए उन्हें दो दिन हो गए, मगर प्रशासन का कोई अधिकारी उनकी सुध लेने नहीं आया है. उन्होंने बताया कि दिन के समय तो किसी तरह कट जाता है, मगर रात के समय इलाका पूरी तरह से सुनसान हो जाता है. वे अपने परिवार सहित खुले में पड़े हैं, जहां न कोई कमरा है और न कोई दरवाजा.

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Fatehabad News: न फसलें बचीं न घर और न खुशियां, अब बेबस बाढ़ पीड़ितों को सता रही सुरक्षा की चिंता
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Prince Kumar|Updated: Jul 21, 2023, 07:00 PM IST

Haryana News: फतेहाबाद जिले में आई बाढ़ में जिले के 130 से ज्यादा गांव और सैकड़ों ढाणियां डूब गईं. बाढ़ के कारण हजारों लोग प्रभावित हुए हैं. बाढ़ से प्रभावित हुए लोगों को रेस्क्यू कर राहत कैंपों में ठहराया गया है. कुछ दिन पहले तक सामान्य जिंदगी जी रहे ये लोग आज राहत कैंप में बेबसी से अपने दिन और रात काट रहे हैं. फतेहाबाद में कई धर्मशालाओं, स्कूलों व नई अनाज मंडी में ऐसे ही राहत कैंपों में लोग अपना जीवन बसर कर रहे हैं. मंडी के शेड में बने राहत कैंप में ढाणी टाहली वाली के 80 से ज्यादा परिवार ठहराए गए हैं, जहां लोग ढाणियों से निकाले गए अपने सामान के साथ वक्त काट रहे हैं. नवजात गर्मी और उमस में रहने को मजबूर हैं.

सता रही सुरक्षा की चिंता
यहां रह रहे लोगों ने बताया कि उनका सब कुछ पानी की भेंट चढ़ गया है. यहां आए उन्हें दो दिन हो गए, मगर प्रशासन का कोई अधिकारी उनकी सुध लेने नहीं आया है. उन्होंने बताया कि दिन के समय तो किसी तरह कट जाता है, मगर रात के समय इलाका पूरी तरह से सुनसान हो जाता है. वे अपने परिवार सहित खुले में पड़े हैं, जहां न कोई कमरा है और न कोई दरवाजा. उनके साथ उनके बच्चे और  महिलाएं भी हैं. 

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खेत खलिहान सब डूबे
रात में उनकी सुरक्षा का खतरा रहता है. बाढ़ पीड़ितों ने बताया कि आते वक्त वे वहां से सिर्फ बिस्तर, कपड़े, चारपाई और फ्रिज, कूलर जैसे इलेक्ट्रॉनिक सामान ही निकाल पाए. फर्नीचर आदि सारा सामान पानी में डूबा हुआ है. कच्चे मकानों में दरारें आ गई हैं, जो अब गिरने की कगार पर हैं. अपना घर होते हुए भी वे यहां शेड के नीचे बेघर जैसी जिंदगी जीने को मजबूर हैं. दो दिन पहले तक उनके खेत हरी-भरी फसलों से लहलहा रहे थे और आज हालात ऐसे बन गए कि न फसलें बचीं न घर और न ही खुशियां. सभी राहत कैंपों में प्रशासन या समाजसेवी संस्थाएं पीड़ित परिवारों के खाने का इंतजाम कर रही हैं.

INPUT- Ajay Mehta

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