trendingNow/india/delhi-ncr-haryana/delhiHaryana02049559
Home >>डिवोशन

Rahu Ketu: राहु और केतु के शुभ प्रभाव के लिए करें ये काम, चमक जाएगी आपकी सोती किस्मत

Rahu Ketu: कुंडली में राहु-केतु को पापी ग्रह माना जाता है.  राहु-केतु के कुंडली में अशुभ होने से व्यक्ति के जीवन में समस्याओं का पहाड़ टूट पड़ता है. वहीं अगर कुंडली में राहु-केतु की स्थिति शुभ रहती है तो वह व्यक्ति का बेड़ा पार कर देते हैं. जानें राहु-केतु के शुभ प्रभावों के लिए आप क्या कर सकते है.  

Advertisement
Rahu Ketu: राहु और केतु के शुभ प्रभाव के लिए करें ये काम, चमक जाएगी आपकी सोती किस्मत
Stop
Zee News Desk|Updated: Jan 08, 2024, 02:35 PM IST

Rahu Ketu: ज्योतिष शास्त्रों की मानें तो सभी ग्रहों का अपना अलग-अलग महत्व होता है. ज्योतिष शास्त्र में राहु-केतु को क्रूरता वाला ग्रह माना गया है. ऐसी मान्यता है कि किसी भी जातक की कुंडली में राहु-केतु के मजबूत होने पर उस व्यक्ति को किसी भी तरह की कोई भी समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता है.  वहीं ये ग्रह अगर कुंडली में नीच स्थान पर पहुंच जाए तो उस व्यक्ति को अपने जीवन में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.  वहीं सिर्फ शनिवार के दिन राहु-केतु का पूजा का विधान है.  अगर नियमित रूप से खासतौर पर शनिवार के दिन राहु-केतु ग्रह कवच पाठ किया जाए, तो ऐसा करने से शुभ फलों का प्राप्ति होती है.  इस दौरान इनके दुष्प्रभावों से भी बचा जा सकता है.

''अस्य श्रीराहुकवचस्तोत्रमंत्रस्य चंद्रमा ऋषिः ।

अनुष्टुप छन्दः । रां बीजं । नमः शक्तिः ।

स्वाहा कीलकम् । राहुप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः ॥

प्रणमामि सदा राहुं शूर्पाकारं किरीटिन् ॥

सैन्हिकेयं करालास्यं लोकानाम भयप्रदम् ॥

निलांबरः शिरः पातु ललाटं लोकवन्दितः ।

चक्षुषी पातु मे राहुः श्रोत्रे त्वर्धशरीरवान् ॥

नासिकां मे धूम्रवर्णः शूलपाणिर्मुखं मम ।

जिव्हां मे सिंहिकासूनुः कंठं मे कठिनांघ्रीकः ॥

भुजङ्गेशो भुजौ पातु निलमाल्याम्बरः करौ ।

पातु वक्षःस्थलं मंत्री पातु कुक्षिं विधुंतुदः ॥

कटिं मे विकटः पातु ऊरु मे सुरपूजितः ।

स्वर्भानुर्जानुनी पातु जंघे मे पातु जाड्यहा ॥

गुल्फ़ौ ग्रहपतिः पातु पादौ मे भीषणाकृतिः ।

सर्वाणि अंगानि मे पातु निलश्चंदनभूषण: ॥

राहोरिदं कवचमृद्धिदवस्तुदं यो ।

भक्ता पठत्यनुदिनं नियतः शुचिः सन् ।

प्राप्नोति कीर्तिमतुलां श्रियमृद्धिमायु

रारोग्यमात्मविजयं च हि तत्प्रसादात्'' ॥

॥ केतु ग्रह कवच ॥

''अस्य श्रीकेतुकवचस्तोत्रमंत्रस्य त्र्यंबक ऋषिः ।

अनुष्टप् छन्दः । केतुर्देवता । कं बीजं । नमः शक्तिः ।

केतुरिति कीलकम् I केतुप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः ॥

केतु करालवदनं चित्रवर्णं किरीटिनम् ।

प्रणमामि सदा केतुं ध्वजाकारं ग्रहेश्वरम् ॥

चित्रवर्णः शिरः पातु भालं धूम्रसमद्युतिः ।

पातु नेत्रे पिंगलाक्षः श्रुती मे रक्तलोचनः ॥

घ्राणं पातु सुवर्णाभश्चिबुकं सिंहिकासुतः ।

पातु कंठं च मे केतुः स्कंधौ पातु ग्रहाधिपः ॥

हस्तौ पातु श्रेष्ठः कुक्षिं पातु महाग्रहः ।

सिंहासनः कटिं पातु मध्यं पातु महासुरः ॥

ऊरुं पातु महाशीर्षो जानुनी मेSतिकोपनः ।

पातु पादौ च मे क्रूरः सर्वाङ्गं नरपिंगलः ॥

य इदं कवचं दिव्यं सर्वरोगविनाशनम् ।

सर्वशत्रुविनाशं च धारणाद्विजयि भवेत्'' ॥ 

Read More
{}{}