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Eco-Friendly Diwali 2023: इस दिवाली घर लें आए इको फ्रेंडली मूर्तियां और दीये, गमले में डालते ही निकलेंगे पौधे

Eco-Friendly Diwali 2023: श्री राधा कृष्णा गौ शाला की सविता आर्य ने गाय के गोबर से दियो से ले कर मूर्तियां इन दिनों काफी चर्चा में है. इस दीपावली को इको फ्रेंडली बनाने के लिए सविता ने इन दियों में मिलाए गए पदार्थों की मदद से न केवल किट पतंगे मरते है बल्कि नकारात्मकता भी दूर भाग जाती है.

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Eco-Friendly Diwali 2023: इस दिवाली घर लें आए इको फ्रेंडली मूर्तियां और दीये, गमले में डालते ही निकलेंगे पौधे
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Nikita Chauhan|Updated: Nov 11, 2023, 11:03 PM IST

Eco-Friendly Diwali 2023: गुरुग्राम के बसई स्थित श्री राधा कृष्णा गौ शाला की सविता आर्य ने गाय के गोबर से दियो से ले कर मूर्तियां तक बनाकर ये बता दिया है की हमे स्वदेशी चीजों का इस्तेमाल कर इस दीपावली को इको फ्रेंडली बनाना चाहिए. इन दियों में डाले गए पदार्थों की मदद से न केवल किट पतंगे मरते है बल्कि नकारात्मकता भी दूर भाग जाती है.

सविता ने बताया कि उनके दीये अयोध्या के राम मंदिर तक भी जा चुके है. तो वही, सविता ने इस बार गाय के गोबर से ऐसी मूर्तियां बनाई है जो पौधों का रूप ले सकती हैं. अगर मूर्तियों की बात करे तो गाय के गोबर से बनाई गई मूर्तियों में मरवा और तुलसी के बीजों का इस्तेमाल किया गया है ताकि अगर आप उस मूर्ति को अपने गमले में रखेंगे और उसमे रोजाना पानी डालेंगे तो वह पौधे का रूप भी ले लेंगे.

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सविता आर्य की माने तो मिट्टी के दीये इस्तेमाल करने के बाद हम उन्हें फेंक देते है और न ही वो गलते है न सड़ते है और न ही उन्हें दोबारा इस्तेमाल कर सकते है. परंतु गाय के गोबर से बने दीये जलेंगे नहीं, क्योंकि इसमें मुल्तानी मिट्टी जैसे कई प्रदार्थ डाले गए है और थोड़ा बहुत अगर दीया जल भी जाते है तो उसे हम अपने गमले और खेतों में डाल सकते है ताकि वह खाद का काम कर सके.

सविता की माने गौ शाला में रोजाना गोबर बहुत हो जाता है और वह किसी काम का नहीं रहता और न ही उसे कोई उठाता है. गौ शाला शहर में होने के कारण न ही यहां कोई खेत है जहां गोबर को डाला जा सके. तभी उन्होंने बैठे-बैठे एक दिन सोचा की कैसे इस गोबर का इस्तेमाल किया जाए, जिसके बाद उन्होंने अपनी टीम के साथ मिल इस कदम को आगे बढ़ाया और जब इसकी शुरुआत की तो बहुत अच्छा परिणाम भी सामने आया.

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सविता ने बताया कि वह तीन साल से इको फ्रेंडली दीपावली बना रहे है और इस बार भी अच्छा परिणाम देखने को मिला है, जिसके चलते अभी तक डेढ़ लाख दिय वह बाजारों से ले कर घरों तक पहुंचा चुके है और इस बार उनका लक्ष्य दो लाख दीये बनाना है. उन्होंने बताया कि उनके प्रोडक्ट की डिमांड न केवल गुरुग्राम बल्कि हरियाणा के अलग-अलग जिलों में भी है.

सविता ने आगे बताया कि इस पूरी प्रक्रिया में काफी मेहनत लगती है, जिसके चलते उन्होंने अपने साथ 8 से 10 महिलाओं को जोड़ रखा है. बता दे की इस प्रक्रिया के लिए सबसे पहले गाय के गोबर को इक्कठा किया जाता है. फिर गोबर के उपले बनाए जाते है. फिर उपलो को पिसा जाता है, जिसका पाउडर तैयार किया जाता है. पाउडर तैयार करने के बाद कपड़े से उसे छाना जाता है और फिर बनते है दीये और मूर्तियों जैसे इको फ्रेंडली प्रोडक्ट.

(इनपुटः योगेश कुमार)

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