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भिवानी में इस तरह पड़ी थी देवसर वाला माता मंदिर की नींव, ये कहानी आपको नहीं होगी पता

आज चैत्र नवरात्रों का पहला दिन है. वहीं इस मौके पर भिवानी के देवसर गांव की पहाड़ी पर माता देवसर वाली विराजमान है. यह मंदिर 733 साल पुराना है. इसके पीछे एक अद्भुत कहानी है.  

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भिवानी में इस तरह पड़ी थी देवसर वाला माता मंदिर की नींव, ये कहानी आपको नहीं होगी पता
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Abhinav Tomer|Updated: Mar 22, 2023, 12:22 PM IST

नवीन शर्मा/भिवानी: भिवानी जिसे छोटी काशी भी कहा जाता है. आज नवरात्रों का पहला दिन है. लोगों की मां के प्रति आस्था देखते ही बनती है. भिवानी से मात्र 8 किलोमीटर दूर देवसर गांव पड़ता है, जहां पहाड़ी पर माता देवसर वाली विराजमान है. वहां प्रतिदिन माता की पूजा अर्चना होती है. नवरात्रि के दिनों में तो माता के मंदिर में लाखों श्रद्धालु आते हैं. यहां न केवल हरियाणा बल्कि दूसरे प्रदेशों व देशों से भी लोग यहां आते हैं. देवसर वाली माता का मंदिर 733 वर्ष पुराना है. यह मंदिर पहाड़ पर विद्यमान है. इस पहाड़ पर चढ़ना हर किसी के बस की बात नहीं थी, लेकिन मंदिर कमेटी के लोगों से शुरुआत में तो सीढ़ियां बनवाई ताकि लोग आसानी से यहां आ सके, फिर भी कुछ लोग ऐसे हैं, जो सीढ़ियां नहीं चढ़ सकते और उन्हें माता के दर्शन करने हैं. उनके लिए लिफ्ट भी लगाई है. ये लिफ्ट आसपास के लोगों ने दान पुण्य से बनवाई है.

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नवरात्र के पहले दिन भक्तों ने मां की आराधना की. इस दौरान मंदिर में मां के जयकारे गूंजते रहें. आने वाले नौ दिनों में मां के नौ रूपों की आराधना की जाएंगी. मां के जयकारे लगाते भक्त मां के दर्शन करने को उत्सुक नवरात्रों में मां के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है. माना जाता है कि जब चारों तरफ अंधेरा था, तब मां कूष्मांडा देवी ने ब्रमाण्ड की सरंचना की थी. इसलिए आदि स्वरूप व आदिशक्ति भी कहते हैं. इसलिए इन्हें सृष्टि की आदि स्वरूपा और आदिशक्ति भी कहते हैं. 

देवसर धाम में यहां पर आने वाले सभी यात्रियों की फ्री सेवा की जाती है. यहां आने वाले हर श्रृद्धालु यहां को ठहरने के लिए धर्मशालों में फ्री रहने के लिए कमरे दिए जाते हैं. इस मंदिर में 24 कर्मचारी नियुक्त है, जो दिन रात से इस की सेवा में जुटे रहते हैं. यह मंदिर 30 एकड़ भूमि में फैला हुआ है. इस अवसर पर श्रद्धालुओं द्वारा लाल रंग की चुन्नी सहित नारियल व लड्डू का प्रसाद चढ़ाया जाता है.

प्रसिद्ध कहानी
भिवानी के देवसर वाली माता के मंदिर पर कहानी भी है कि एक चरवाहा भंवर सिंह गाय चराता था. गाय चराते समय अचानक उसकी सभी गाय गुम हो गईं. उसे काफी चिंता हुई. अचानक थक हार के वह वहीं सो गया. पहाड़ पर सोते समय अचानक उसे माता ने दर्शन दिए और बताया कि पहाड़ी पर उसकी सोने की प्रतिमा है. उसे निकाले और वहीं उसका मंदिर भी स्थापित करवाएं. माता ने बताया कि उसकी सभी गायें भी मिल जाएंगी. ऐसा ही हुआ भी माता के कहे अनुसार उसकी सभी गायें भी मिल गई. भंवर सिंह फटाफट उठा और मंदिर के बारे में ग्रामीणों को सारी बात बताई. ग्रामीणों ने माता की मूर्ति पहाड़ से निकली. वहीं माता का मंदिर स्थापित भी करवाया.

नवमी के दिन लगता है मेला
पुजारी मांगेराम व विक्रम माता की पूजा अर्चना करते हैं. सुबह 5 बजे व शाम को सवा 6 बजे माता की आरती होती है. माता रानी लोग कुछ सीढ़ियों द्वारा तो कुछ लिफ्ट से आते है ताकि माता के दर्शन कर सके. यहां पर आज भी पहाड़ी है, जहां माता की मूर्ति स्थापित है जहां पूजा अर्चना होती है. नवरात्रों मे प्रतिदिन लोग माता से मुरादे मांगने के लिए आते हैं. कहा जाता है कि माता से जो भी मुरादे मांगो पूरी होती हैं. नौवें नवरात्रि के दिन में तो यहां पर मेला भी लगता है. भीड़ इतनी होती है कि पुलिस बल भी तैनात करवाया जाता है. साथ ही कमेटी के सदस्य भी सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस के साथ लगे रहते हैं.

माता के मंदिर में हर नवमी वाले दिन इतना बड़ा मेला लगता है कि यहां पर दूर दराज से लोग आते हैं. माता पर नारियल का प्रशाद व हलवे का प्रसाद चढ़ाया जाता है. माता के नवमी वाले दिन तो इच्छुक रक्तदाता रक्तदान करतें है ताकि रक्त की कमी दूर हो जाए. पूजा अर्चना करने के लिए आने वाले अपने निवास से पैदल भी आते हैं तो कई जमीन पर लेट-लेट कर भी आते हैं. नजदीक में ही धर्मशाला भी हैं, जहां माता के दर्शन के लिए आने वाले लोग रह सकें. खाने के लिए श्रद्धालुओं को भटकना न पड़े इसके लिए भी सारी व्यवस्था वहीं आसपास हो जाती है. लोगों का भी यही कहना है कि माता से जो मांगो मिलता है. माता सबके भण्डारे भर के रखती है.

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