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अग्निपथ योजना के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में तीसरी याचिका दायर, केंद्र ने की ये मांग

इस मामले में याचिकाएं 3 वकीलों ने दाखिल की हैं. विशाल तिवारी, एमएल शर्मा और अब हर्ष अजय सिंह ने ये याचिकाएं दाखिल की हैं. सोमवार को एडवोकेट हर्ष अजय सिंह ने भी एक याचिका देकर सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में दखल देने की गुजारिश की. हर्ष ने अपनी रिट याचिका में कहा कि अग्निपथ योजना के तहत 4 साल के लिए युवाओं की सेना में भर्ती की जा रही है, उसके बाद 25% अग्निवीरों को ही आगे स्थायी किया जाएगा.

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अग्निपथ योजना के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में तीसरी याचिका दायर, केंद्र ने की ये मांग
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Zee Media Bureau|Updated: Jun 21, 2022, 12:36 PM IST

नई दिल्ली: अग्निपथ योजना का विरोध इतना बढ़ गया है कि ये मामला सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में पहुंच गया है. इस योजना के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में तीसरी याचिका दाखिल की गई है. इस पर केंद्र सरकार ने भी अग्निपथ पर इस तीसरी याचिका को लेकर कैवियट दायर की है. सरकार का कहना है कि अग्निपथ स्कीम को लेकर कोई आदेश पास करने से पहले केंद्र सरकार का पक्ष भी सुना जाए.

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इस मामले में याचिकाएं 3 वकीलों ने दाखिल की हैं. विशाल तिवारी, एमएल शर्मा और अब हर्ष अजय सिंह ने ये याचिकाएं दाखिल की हैं. सोमवार को एडवोकेट हर्ष अजय सिंह ने भी एक याचिका देकर सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में दखल देने की गुजारिश की. हर्ष ने अपनी रिट याचिका में कहा कि अग्निपथ योजना के तहत 4 साल के लिए युवाओं की सेना में भर्ती की जा रही है, उसके बाद 25% अग्निवीरों को ही आगे स्थायी किया जाएगा. याचिका में कहा गया कि युवावस्था में 4 साल का कार्यकाल पूरा होने पर अग्निवीर आत्म-अनुशासन बनाए रखने के लिए न तो पेशेवर रूप से और न व्यक्तिगत रूप से पर्याप्त तैयार होंगे. ऐसे में प्रशिक्षित अग्निवीरों के भटकने की बहुत संभावनाएं हैं.

वहीं एडवोकेट विशाल तिवारी ने अवकाशकालीन बेंच के सामने अपनी याचिका पर जल्द सुनवाई की मांग की. इस स्कीम के विरोध में हो रही हिंसा और सार्वजनिक सम्पति के नुकसान की SIT जांच की मांग की थी. लाइव लॉ वेबसाइट के अनुसार उन्होंने अग्निपथ योजना पर सवाल उठाते हुए इसे परखने के लिए एक एक्सपर्ट कमिटी के गठन की भी मांग की थी.

एडवोकेट मनोहर लाल शर्मा ने अग्निपथ योजना के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. इसमें उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने सेना में भर्ती की दशकों पुरानी नीति को संसद की अनुमति के बिना बदल दिया है, जो संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ है.

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