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Cyrus Mistry: ‘टावर ऑफ साइलेंस’ पर क्यों नहीं हुआ साइरस मिस्त्री का अंतिम संस्कार, हैरान करने वाला है कारण

Cyrus Mistry Funeral: गिद्धों की घटती आबादी के चलते पारसी समुदाय को शवों के अंतिम संस्कार के तरीकों में भी बदलाव करना पड़ा है.

Cyrus Mistry: ‘टावर ऑफ साइलेंस’ पर क्यों नहीं हुआ साइरस मिस्त्री का अंतिम संस्कार, हैरान करने वाला है कारण
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Zee News Desk|Updated: Sep 07, 2022, 11:54 AM IST

Cyrus Mistry Funeral News: आसमान में कम होती गिद्धों की संख्या चिंता का विषय बनता जा रहा है. गिद्धों की घटती संख्या घटने के चलते पारसी समुदाय को अंतिम संस्कार की परंपरा मजबूरन बदलनी पड़ी है. टाटा संस के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री की मौत के बाद उनके अंतिम संस्कार के साथ ही यह मुद्दा फिर सुर्खियों में आ गया है. पारसी समुदाय के लोगों के शवों को ‘टावर ऑफ साइलेंस’ पर छोड़ने की परंपरा रही है, जहां गिद्ध इन शवों को खा जाते हैं. इसे शव को 'आकाश में दफनाना' भी कहा जाता है. लेकिन साल 2015 से पारसी समुदाय के बीच अंतिम संस्कार के तरीके में बदलाव आया है और मुंबई में इलेक्ट्रिक शवदाह गृह के जरिए अंतिम संस्कार के कई मामले सामने आए हैं.

गिद्धों की आबादी में गिरावट

पारसी धर्म की तय रस्मों को पूरा करने के बाद पार्थिव शरीर को इलेक्ट्रिक मशीन के हवाले कर दिया जाता है और मिस्त्री के मामले में भी यही देखा गया. मिस्त्री के पार्थिव शरीर को एक दशक पहले पारसी समुदाय द्वारा बनाए गए होटल के सामने स्थित शवदाह गृह ले जाया गया. यहां परिवार के एक पुजारी ने रस्मों का निर्वाह करने के बाद शव को इलेक्ट्रिक मशीन के हवाले कर दिया. इस रूढ़िवादी समुदाय के कुछ लोगों ने शवों को खाने वाले गिद्धों की आबादी में गिरावट के कारण बीते एक दशक में शवदाह गृह बनाने का फैसला किया और मिस्त्री जैसे कई प्रगतिशील परिवारों ने अपने सदस्यों के अंतिम संस्कार के लिए नए तरीके को अपनाया है.

क्यों प्रभावित हुई गिद्धों की आबादी?

रिपोर्ट के अनुसार, देश में गिद्धों की आबादी 1980 के दशक में 4 करोड़ थी, जो 2017 तक घटकर मात्र 19,000 रह गई. इसके चलते पारसी समुदाय के बीच अंतिम संस्कार का तरीका बदला है. सरकार ने गिद्धों की आबादी में गिरावट को रोकने के लिए राष्ट्रीय गिद्ध संरक्षण कार्य योजना 2020-25 के माध्यम से एक पहल शुरू की है, जिसमें कुछ सफलताएं मिली हैं. गिद्धों की आबादी में गिरावट के लिए मवेशियों के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली सूजन-रोधी दवा ‘डाइक्लोफेनाक’ के उपयोग को जिम्मेदार ठहराया गया है. दरअसल जिन मवेशियों को यह दवा दी गई, उन मवेशियों को मरने के बाद गिद्धों ने खा लिया, जिससे गिद्धों की आबादी प्रभावित हुई.

2006 में इस दवा पर प्रतिबंध लगा

साल 2006 में इस दवा पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, लेकिन तब तक इसका विनाशकारी प्रभाव गिद्धों की आबादी में गिरावट का कारण बन चुका था. गिद्धों की घटती आबादी ने पारसियों के लिए एक विकट चुनौती पेश की है. एक ओर जहां गिद्ध कुछ ही घंटों के भीतर शरीर पर से मांस को साफ कर देते हैं, वहीं कौवे और चील बहुत कम मांस खा पाते हैं, जिसके चलते कई शवों को खत्म होने में महीनों लग जाते हैं और उनसे बदबू फैलती है. पारसी समुदाय के लोंगो की संख्या में भी तेजी से गिरावट आ रही है. साल 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में केवल 57,264 पारसी थे.

पंडोल के शव को ‘टॉवर ऑफ साइलेंस’ में छोड़ा गया

सरकार के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने समुदाय की आबादी में गिरावट को रोकने के लिए कई उपाय किए हैं, जिसमें “जियो पारसी” पहल शुरू करना शामिल है. एक हजार साल पहले वर्तमान ईरान में उत्पीड़न से बचकर पारसी भारत के पश्चिमी तट पर पहुंचे थे. उन्हें एक ज्वाला मिली जिसके बारे में कहा जाता है कि वह दक्षिण गुजरात के उदवाडा में एक अग्नि मंदिर में अभी भी जलती है. मिस्त्री कार में सवार होकर उदवाडा से ही लौट रहे थे, जो रास्ते में दुर्घटना का शिकार हो गई. दुर्घटना में जान गंवाने वाले जहांगीर पंडोल के शव को मंगलवार को दक्षिण मुंबई के डूंगरवाड़ी में स्थित ‘टॉवर ऑफ साइलेंस’ में छोड़ दिया गया, क्योंकि उनके परिवार ने अंतिम संस्कार के लिए पारंपरिक रीति- रिवाज को प्राथमिकता दी थी.

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(एजेंसी इनपुट के साथ)

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