trendingNow12350982
Hindi News >>देश
Advertisement

पहले कार्यकर्ताओं को मंदिर जाने से रोकती थी CPM, अब खुद भेज रही; अचानक ऐसा क्या हुआ

CPM Policy: सीपीएम ने साल 2013 के कुख्यात पलक्कड़ प्लेनम के दौरान कुछ प्रस्तावों को पारित किया था, जिसके अनुसार पार्टी कार्यकर्ताओं को धार्मिक अनुष्ठान करने और मंदिर जाने से रोक दिया गया था. इतना ही नहीं, कार्यकर्ताओं को गृहप्रवेश समारोहों के दौरान 'गणपति होम' जैसे अनुष्ठान करने से भी रोका गया था.

पहले कार्यकर्ताओं को मंदिर जाने से रोकती थी CPM, अब खुद भेज रही; अचानक ऐसा क्या हुआ
Stop
Sumit Rai|Updated: Jul 24, 2024, 02:03 PM IST

CPM Major Policy Shift: लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद अब भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) का अचानक हृदय परिवर्तन हो गया है. जाहिर तौर पर अपनी 'पिछली गलतियों और विफलताओं' से सबक लेते हुए सीपीएम एक बड़ा नीतिगत बदलाव करने जा रही है. जो सीपीएम कभी अपने कार्यकर्ताओं को मंदिरों में जाने से रोकती थी, अब वह अपने कार्यकर्ताओं को धार्मिक अनुष्ठान करने और मंदिरों के अलावा अन्य पूजा स्थलों पर जाने की अनुमति देगी. सीपीएम यहीं नहीं, रुकना चाहती है. इसके साथ ही वह पार्टी के सदस्यों को मंदिर प्रबंधन की बागडोर संभालने के लिए भी प्रोत्साहित कर रही है.

सीपीएम ने लिया 2013 के प्रस्तावों को रद्द करने का निर्णय

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, सीपीएम आस्था और विश्वास के मामलों में अधिक उदार रुख अपनाने जा रही है. सोमवार (22 जुलाई) को तिरुवनंतपुरम में संपन्न हुए सीपीएम के तीन दिवसीय राज्य स्तरीय नेतृत्व शिखर सम्मेलन में 2013 में पार्टी के पलक्कड़ अधिवेशन द्वारा अनुमोदित कुछ प्रमुख प्रस्तावों को रद्द करने का निर्णय लिया गया.

पूर्ण अधिवेशन ने पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को धार्मिक अनुष्ठान करने और मंदिर जाने से रोक दिया था. इसने पार्टी सदस्यों को मंदिर समितियों का हिस्सा बनने से भी रोक दिया था. यहां तक कि यह भी निर्णय लिया गया था कि पार्टी सदस्यों को गृह प्रवेश समारोह के हिस्से के रूप में 'गणपति होमम' जैसे अनुष्ठान नहीं करने चाहिए. हालांकि इस निर्णय के बाद काफी विवाद पैदा हुआ था.

ये भी पढ़ें- कोरोना के दौर में किया 'गुनाह', मुस्लिमों से अब माफी मांगेगी इस देश की सरकार

सीपीएम को अपनी नीति में बदलाव की क्यों पड़ी जरूरत?

2024 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद सीपीएम को अपनी नीति में बड़े बदलाव के लिए मजबूर होना पड़ा. चुनाव परिणामों की समीक्षा और मतदान पैटर्न के विश्लेषण के दौरान नेतृत्व को यह एहसास हुआ कि आस्था के मामलों पर कठोर रुख ने पार्टी को भारी कीमत चुकानी पड़ी. हिंदू वोटर्स भाजपा की तरफ चले गए हैं, जो सीपीएम के लिए हानिकारक है. मालाबार में इसके गढ़ों में आई दरारों ने पार्टी के लिए खतरे की घंटी बजा दी.

सीपीएम ने यह आकलन किया है कि संघ परिवार ने मंदिरों में अपने घनिष्ठ नेटवर्क के माध्यम से श्रद्धालुओं पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली है. जब सीपीएम कैडर ने मंदिर प्रबंधन समितियों में अपने पद खाली किए तो संघ परिवार के कार्यकर्ताओं ने ही पदभार संभाला. पार्टी की राज्य समिति का मानना ​​है कि आस्था, मंदिर अनुष्ठानों और श्रद्धालुओं के मामलों पर आरएसएस का प्रभाव समाज में दक्षिणपंथी झुकाव का मुख्य कारण है. इसके बाद सीपीएम ने धार्मिक मामले पर काम करने का फैसला किया है.

Read More
{}{}