trendingNow11923045
Hindi News >>देश
Advertisement

स्टीयरिंग व्हील से बदला महिलाओं की जिंदगी का गियर, दी 'पहचान', कहानी 17 साल की आश्वी गंभीर की

महिलाएं समाज में घरेलू हिंसा की शिकार होती हैं. लेकिन उनको सामाजिक और आर्थिक तौर पर सशक्त बनाने के लिए बीड़ा उठाया 17 साल की आश्वी गंभीर ने. आश्वी ने अपने प्रयासों से कई महिलाओं की जिंदगी बदल दी है. 

स्टीयरिंग व्हील से बदला महिलाओं की जिंदगी का गियर, दी 'पहचान', कहानी 17 साल की आश्वी गंभीर की
Stop
Rachit Kumar|Updated: Oct 19, 2023, 10:55 PM IST

Women Empowerment: महिलाओं से जुड़े मुद्दे हमेशा से बेहद संवेदनशील रहे हैं चाहे वो घरेलू हिंसा हो या फिर दहेज को लेकर मारपीट. अकसर पढ़ाई-लिखाई और नौकरी नहीं होने की वजह से महिलाओं को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. खासकर अगर महिला अशिक्षित हो और घरेलू हिंसा से पीड़ित हो तो उसके लिए परेशानियां और बढ़ जाती हैं. कई बार बच्चों का भार भी महिला पर ही आ जाता है. 

लेकिन कहते हैं ना जहां चाह, वहां राह. सामाजिक-आर्थिक तौर पर पीड़ित महिलाओं की जिंदगी में बड़ा बदलाव लाने का काम कर रही हैं 17 साल की  आश्वी गंभीर. गुरुग्राम के अरावली स्थित श्री राम स्कूल की स्टूडेंट आश्वी ने बहुत कम उम्र में ही महिलाओं के समाज में संघर्ष को लेकर रिसर्च शुरू कर दी थी. उन्होंने 'पहचान' नाम से एक प्रोजेक्ट की शुरुआत की है, जो महिलाओं को उनके पैरों पर खड़े होने में मदद कर रहा है. इसी को लेकर Zee News Digital ने आश्वी से बात की, जिसमें उन्होंने न सिर्फ इस प्रोजेक्ट बल्कि अपने सफर के बारे में कई अहम बातें बताईं.

'कोविड में आए घरेलू हिंसा के मामले'

जब आश्वी से पूछा गया कि महिलाओं से जुड़े और भी कई मुद्दे हैं मगर उन्होंने इसी मुद्दे को क्यों चुना? इस पर उन्होंने कहा, गुरुग्राम में एक से बढकर एक इंडस्ट्रीज हैं, जहां ऊंची सैलरी वाली सैकड़ों नौकरियां हैं. लेकिन गुरुग्राम के आसपास कई गांव और झुग्गी-झोपड़ियां हैं और इन दोनों को अलग-अलग नहीं किया जा सकता.मैंने खुद अपने घर में काम करने वाली महिला को देखा, उनके अनुभव से सीखा. यहीं से मैंने इस बारे में ज्यादा जाना. कई महिलाओं की कोविड काल में नौकरियां तक चली गईं.  कोविड के दौर में हमने घरेलू हिंसा के कई मामले देखे हैं.  तब मैंने यह सोचा कि कैसे ये महिलाएं अपनी पहचान बना पाएंगी. इसके बाद मैंने प्रोजेक्ट पहचान पर काम शुरू किया, जिसके तहत ब्लूस्मार्ट और मारूति ड्राइविंग स्कूल के साथ पार्टनरशिप के तहत महिलाओं को ड्राइविंग सिखाई जाती है. इससे न सिर्फ उनको एक पहचान मिलती है बल्कि आर्थिक-सामाजिक तौर पर भी वह सशक्त बनती हैं.

'तलाक लेने की प्रक्रिया को बनाया जाए आसान'

क्या अपने रिसर्च की सबसे खास बात को लेकर आश्वी ने कहा, हैरानी की बात यह थी कि घरेलू हिंसा तब ज्यादा बढ़ जाती है जब ज्यादा महिलाएं नौकरी करती हैं क्योंकि लोगों को लगता है कि महिलाएं नौकरियां क्यों कर रही हैं. उनको काम क्यों दिया जा रहा है. इसलिए अलावा सरकार को यह करना चाहिए कि महिलाओं के तलाक लेने की प्रक्रिया को थोड़ा आसान बनाया जाए. विकसित देशों में प्रक्रिया आसान है, लेकिन भारत जैसे विकासशील देश में महिलाएं ऐसा नहीं कर पाती हैं. घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं के लिए सरकार को योजना शुरू करनी चाहिए ताकि वे स्थिति से निपट सकें. महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा अवसर देना और जागरूकता बेहद जरूरी है. हाल ही में महिलाओं के लिए बना 33 फीसदी आरक्षण कानून भी उनको आगे आने के मौके देगा. कई बार महिलाओं को मौके इसलिए नहीं दिए जाते, क्योंकि वे महिलाएं हैं. 

जब प्रोजेक्ट पहचान के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि यह साल भर पहले शुरू हुआ था और उससे सरोज और शमा जैसी कई महिलाओं की जिंदगी में बदलाव आया है. लेकिन इस दौरान हमने देखा कि महिलाओं के पास घर और बच्चों की जिम्मेदारी होती है. सभी के पास अपने सपनों को पूरा करने का मौका नहीं होता.  सरोज को उसके पति ने उसको काफी सपोर्ट किया. पहले वो बेरोजगार थी. उसके उसका पति पास के स्कूल में सिक्योरिटी गार्ड का काम करता था. वही परिवार में अकेला कमाने वाला शख्स था. लेकिन आज सरोज ब्लूस्मार्ट में गुड़गांव की पहली महिला ड्राइवर है.   

 

  

Read More
{}{}