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Jharkhand Politics: झारखंड 'ऑपरेशन लोटस' के खिलाफ क्या है सीएम हेमंत सोरेन का बैकअप प्लान?

चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट, दोनों के फैसलों पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं. फैसला आने के बाद झारखंड की सियासत में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है.

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Amita Kishor|Updated: Aug 20, 2022, 08:39 PM IST

रांची: झारखंड में सियासी सरगर्मियां बढ़ गई हैं. हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ गठबंधन को 'ऑपरेशन लोटस' का डर है. ऊपर से सोरेन के खिलाफ ऑफिस ऑफ प्रॉफिट वाले केस में चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट से फैसले आना है. लिहाजा गठबंधन ने अपना बैकअप प्लान तैयार कर लिया है. 

  1. सीएम हेमंत की विधायकी पर खतरा
  2. एक्स्ट्रा अलर्ट मोड में सरकार

ये तूफान उठा क्यों है?
सबसे पहले ये समझिए कि झारखंड की राजनीति में ये तूफान उठा क्यों है? दरअसल भाजपा ने मुख्यमंत्री पर अपने नाम माइनिंग लीज लेने का आरोप लगाते हुए उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द करने की मांग की थी. इस केस में आयोग का फैसला किसी भी दिन आ सकता है. 

एक्स्ट्रा अलर्ट मोड में सरकार
उधर माइनिंग लीज और शेल कंपनियों में निवेश के आरोपों से संबंधित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने भी सुनवाई पूरी कर ली है और अपना फैसला सुरक्षित रखा है. चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट के फैसले राज्य के सत्ता समीकरण को प्रभावित कर सकते हैं. इसलिए झारखंड की सरकार एक्स्ट्रा अलर्ट मोड में है. 

निशिकांत दुबे ने किया ट्वीट
इस बीच गठबंधन ने शनिवार को सीएम आवास में बैठक की. बैठक में इस बात की रणनीति बनी है कि अगर सोरेन नपते हैं तो क्या विकल्प हो सकते हैं? नए सीएम के लिए हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन के नाम की चर्चा है. इस चर्चा को तब और हवा मिली जब बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने ट्वीट किया कि झारखंड में भाभी जी की ताजपोशी की तैयारी चल रही है.

उपचुनाव का विकल्प
सूत्र बता रहे हैं कि बैठक में नए सीएम के नाम पर समर्थन पत्र पर साइन कराया गया है. लेकिन सोरेन के खिलाफ फैसला आया भी तो ऐसा नहीं है कि तुरंत नए सीएम की जरूरत होगी. सोरेन इसके खिलाफ कोर्ट जाएंगे. सदस्यता जाने पर सोरेन के पास छह महीने के अंदर उपचुनाव का भी ऑप्शन होगा.

सीएम हेमंत की विधायकी पर खतरा
इस पूरे प्रकरण पर रांची हाईकोर्ट के अधिवक्ता धीरज कुमार का कहना है कि अगर निर्वाचन आयोग ने मुख्यमंत्री से जुड़े मामले को ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के तहत माना तो फिर उनकी विधायकी पर खतरा है लेकिन अगर मुख्यमंत्री के पक्ष में फैसला सुनाया गया तो साफ हो जाएगा कि यह मामला ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के तहत नहीं आता है.

लेकिन ऑफिस ऑफ प्रॉफिट केस के अलावा फिर कोई 'ऑपरेशन कमल' न चल जाए इसलिए गठबंधन ने सभी विधायकों को राज्य की राजधानी रांची के आस-पास मौजूद रहने को कहा गया है. चर्चा है कि इसी प्लान के तहत स्पीकर को कनाडा नहीं भेजा गया. 

विधानसभा अध्यक्ष को रोका गया
JMM से ताल्लुक रखने वाले झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष रवींद्रनाथ महतो को कनाडा में होने वाली राष्ट्रमंडल संसदीय संघ की बैठक में शिरकत करने के लिए गुरुवार को रवाना होना था, लेकिन उन्होंने अंतिम समय में यह प्रोग्राम स्थगित कर दिया. हालांकि इसके पीछे उन्होंने अपनी सेहत से जुड़े कारणों का हवाला दिया है. 
 
सरकार गिराने की साजिश
इससे पहले 30 जुलाई को कांग्रेस के तीन विधायक कोलकाता में 49 लाख रुपये कैश के साथ पकड़े गये थे. तब कांग्रेस नेतृत्व ने कहा था कि ये तीनों झारखंड की सरकार को गिराने के लिए असम से रची जा रही एक साजिश का हिस्सा थे और इसी वजह से इन तीनों को पार्टी ने निलंबित किया. 

विधायकों की गतिविधियों पर नजर
कांग्रेस को लगता है कि साजिश के तार अब भी बुने जा सकते हैं. लिहाजा, तीन निलंबित विधायकों के अलावा पार्टी के अन्य 15 विधायकों की हर गतिविधि पर नेतृत्व की गहरी नजर है.

झारखंड सरकार को वाकई कोई खतरा है? 
इस सवाल पर शुक्रवार को पार्टी के केंद्रीय प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि कोई क्राइसिस नहीं है. राज्य में जबसे गठबंधन की सरकार बनी है, भाजपा तभी से हर कुछ रोज पर इसके गिरने की मियाद तय करती रहती है. भट्टाचार्य ने कहा था कि शनिवार को बुलाई गई बैठक का मुद्दा राज्य में सूखा है. लेकिन राज्य में सियासी शांति हो ऐसी भी बात नहीं है.  दोनों तरफ से आ रहे बयानों को देखकर कोई भी अंदाजा लगा सकता है कि कुछ तो अंदरखाने चल रहा है. 

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भाजपा ने मुख्यमंत्री पर अपने नाम माइनिंग लीज लेने का आरोप लगाते हुए उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द करने की मांग की थी. इस केस में आयोग का फैसला किसी भी दिन आ सकता है. उधर माइनिंग लीज और शेल कंपनियों में निवेश के आरोपों से संबंधित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने भी सुनवाई पूरी कर ली है और अपना फैसला सुरक्षित रखा है. चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट के फैसले राज्य के सत्ता समीकरण को प्रभावित कर सकते हैं

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