trendingNow/india/bihar-jharkhand/bihar01497542
Home >>रांची

Christmas Day 2022: क्रिसमस के मौके पर झारखंड के सबसे पुराने चर्च में करें प्रेयर, जानें कैसा है इतिहास

Christmas Day in Jharkhand: पूरा झारखंड इस समय क्रिसमस की तैयारियों में लगा हुआ है. क्रिसमस के दिन राजधानी रांची के गिरजाघरों में खासा रौनक देखने को मिलती है. ऐसे में आज हम आपको झारखंड के सबसे पुराने चर्च के में बताने जा रहे हैं, जहां इस क्रिसमस के मौके पर जाकर आप प्रेयर कर सकते हैं.

Advertisement
Christmas Day 2022: क्रिसमस के मौके पर झारखंड के सबसे पुराने चर्च में करें प्रेयर, जानें कैसा है इतिहास
Stop
Nishant Bharti|Updated: Dec 23, 2022, 11:25 AM IST

रांची: Christmas Day in Jharkhand: पूरा झारखंड इस समय क्रिसमस की तैयारियों में लगा हुआ है. क्रिसमस के दिन राजधानी रांची के गिरजाघरों में खासा रौनक देखने को मिलती है. ऐसे में आज हम आपको झारखंड के सबसे पुराने चर्च के में बताने जा रहे हैं, जहां इस क्रिसमस के मौके पर जाकर आप प्रेयर कर सकते हैं. झारखंड का पहला चर्च राजधानी रांची के मेन रोड में स्थित  जीईएल चर्च  है.  बनावट की दृष्टि से ये चर्च श्रेष्ठ गिरजाघरों में शुमार है. गोथिक शैली में बनाए गए इस चर्च की भव्य इमारत देखने लायक है. इस विशाल गिरजाघर की स्थापना फादर गोस्सनर ने 1851 की थी. बताया जाता है कि उन्होंने चर्च के निर्माण के लिए उस वक्त 13 हजार रुपये दान में दिए थे.

1845 में गोस्सनर मिशन की स्थापना

बता दें कि झारखंड में नवंबर 1845 में गोस्सनर मिशन की स्थापना हुई थी. नींव जर्मनी से रांची पहुंचे कुछ पादरियों ने 18 नवंबर 1851 को इस चर्च की डाली थी, इसके बाद 1855 में इस चर्च का संस्कार हुआ. मिली जानकारी के अनुसार मसीहियों ने 24 दिसंबर की रात को रांची में पहली बार यहां प्रार्थना की थी. 25 जून 1846 को यहां पहला बपतिस्मा मारथा नाम की बालिका का हुआ था. यहां की वो पहली मसीही है. जीईएल चर्च का इतिहास काफी पुराना और रोचक है.

 कोलकाता में मजदूरों से मुलाकात

बताया जाता है कि मिशनरियां म्यांमार के मेरगुई शहर में कारेन जाति के लोगों के बीच जर्मनी से फादर गोस्सनर से आदेश पाकर धर्म का प्रचार करने के लिए निकले थे. मगर किसी कारण से कोलकाता में ही उन्हें रुकना पड़ गया, कोलकाता में वो बाइबल सोसाइटी के अहाते में रहने लगे. इस दौरान कुछ कुली मजदूरों से उनकी मुलाकात हुई. जो छोटा नागपुर से कोलकाता मजदूरी करने गये थे. उनसे मुलाकात होने के बाद वो म्यांमार नहीं जाकर छोटानागपुर के लिए रवाना हो गये, इसके बाद इस धर्म के अनुयायी छोटानागपुर के इस हिस्से में बढ़ने लगे.

 गिरजाघर पर चार गोले दागे गए

1857 में जब पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह आरंभ हुआ तब गोस्सनर कलीसिया में मिशनरियों पर घोर विपत्ति आ गयी. लोगों में मिशन और विदेशी लोगों के खिलाफ बड़ा गुस्सा था, जीईएल गिरजाघर पर उस वक्त चार गोले दागे गए. लोगों इस गिरजाघर को तोड़ना चाहते थे. गिरजाघर के पश्चिमी द्वार पर गोलों के निशान आज भी देखी जा सकती है. बताया जाता है कि चार गोलों के बाद भी गिरजाघर को बहुत नुकसान नहीं हुआ था.

ये भी पढ़ें- IPL Auction Live Streaming: IPL 2023 कब और कहां देखें? जानें कब शुरू होगी नीलामी

Read More
{}{}