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Durga Puja 2022: देश के अलग-अलग हिस्सों में ऐसे मनाई जाती है दुर्गा पूजा, जानें क्या है महत्व

पूरे देश में दशहरा अथवा विजयदशमी का पर्व भगवान राम का रावण पर विजय के रूप में मनाया जाता है.  इसके अलावा इसे दुर्गा पूजा के रूप में भी मनाया जाता है. दोनों ही रूपों में यह आदिशक्ति पूजा का पर्व है. पूरे देश में इसे हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है.

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Durga Puja 2022: देश के अलग-अलग हिस्सों में ऐसे मनाई जाती है दुर्गा पूजा, जानें क्या है महत्व
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Zee Bihar-Jharkhand Web Team|Updated: Oct 04, 2022, 06:59 PM IST

Durga Puja 2022: पूरे देश में दशहरा अथवा विजयदशमी का पर्व भगवान राम का रावण पर विजय के रूप में मनाया जाता है.  इसके अलावा इसे दुर्गा पूजा के रूप में भी मनाया जाता है. दोनों ही रूपों में यह आदिशक्ति पूजा का पर्व है. पूरे देश में इसे हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है. ऐसे में हम आपको आज बताने जा रहे हैं की देश के अलग अलग हिस्सों में इसे कैसे मनाया जाता है. 
 
बंगाल में होती है खास पूजा 
बंगाल, ओडिशा और असम में इस पर्व को दुर्गा पूजा के रूप में ही मनाया जाता है.  यह बंगालियों,ओडिशा और असम के लोगों का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है.  बंगाल में इस पर्व को पांच दिनों के लिए मनाया जाता है. वहीं   ओडिशा और असम में ये पर्व 4 दिनों तक चलता है.  देवी दुर्गा को यहां भव्य सुशोभित पंडालों विराजमान किया जाता है. षष्ठी के दिन यहां  दुर्गा देवी का बोधन, आमंत्रण एवं प्राण प्रतिष्ठा आदि का आयोजन किया जाता है.  उसके उपरांत सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी के दिन प्रातः और सायंकाल दुर्गा की पूजा में व्यतीत होते हैं.  अष्टमी के दिन महापूजा और बलि भी दी जाती है. इसके अलावा  दशमी के दिन विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है. 
 
बस्तर में होती है मां दंतेश्वरी की आराधना
बस्तर में दशहरे के मुख्य कारण राम की रावण पर विजय न मानकर, लोग इसे मां दंतेश्वरी की आराधना को समर्पित एक पर्व के रूप में मानते हैं.  बस्तर अंचल के निवासियों के लिए दंतेश्वरी माता की आराध्य देवी है. जो मां दुर्गा का ही रूप हैं.  यह पर्व यहां पूरे 75 दिनों तक चलता है.  यहां दशहरा श्रावण मास की अमावस्या से शुरू होकर आश्विन मास की शुक्ल त्रयोदशी तक चलता है.  प्रथम दिन जिसे काछिन गादी कहते हैं, देवी से समारोह आरंभ की अनुमति ली जाती है.  देवी को कांटों की एक सेज पर विराजमान किया जाता है. जिसे काछिन गादी कहते हैं.  यह कन्या एक अनुसूचित जाति की है. जिससे बस्तर के राजपरिवार के सदस्य अनुमति लेते हैं. इस समारोह की शुरुआत 15 वीं शताब्दी में हुई थी.  इसके बाद जोगी-बिठाई का कार्यक्रम होता है. इन सबके बाद भीतर रैनी (विजयदशमी), बाहर रैनी (रथ-यात्रा) और अंत में मुरिया दरबार होता है  इसका समापन आश्विन शुक्ल त्रयोदशी को ओहाड़ी पर्व से होता है 
 
कुल्लू में रघुनाथ जी की होती है पूजा
कुल्लू का दशहरा पूरे हिमाचल प्रदेश में बहुत प्रसिद्ध है.  देश के अन्य स्थानों की तरह यहां भी दस दिन तक इस पर्व को मनाया जाता है. इसके लिए एक सप्ताह पूर्व से ही तैयारी आरंभ हो जाती है.  महिलाएं और पुरुष सभी सुंदर वस्त्रों से सुसज्जित होकर तुरही, बिगुल, ढोल, नगाड़े, बांसुरी के वाद्य यंत्रों के साथ बाहर निकलते हैं.  पहाड़ी लोग पूरे धूम धाम से अपने ग्रामीण देवता की झांकी निकालते हैं. देवताओं की मूर्तियों को बहुत ही आकर्षक पालकी में सुंदर ढंग से सजाया जाता है.  साथ ही इस दौरान वो अपने मुख्य देवता रघुनाथ जी की पूजा करते हैं.  दशमी के दिन इस उत्सव की शोभा निराली होती है.
 
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कश्मीर में माता खीर भवानी की पूजा
कश्मीर में भी नवरात्रि का पर्व पूरे श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. परिवार के सारे वयस्क सदस्य नौ दिनों तक सिर्फ पानी पीकर उपवास करते हैं. इस दौरान नौ दिनों तक लोग माता खीर भवानी के दर्शन करने के लिए जाते हैं.  यह मंदिर एक झील के बीचो बीच स्थित है.  ऐसा माना जाता है कि देवी ने अपने भक्तों से कहा है कि यदि कोई अनहोनी होने वाली होगी तो इस सरोवर का पानी काला हो जाएगा. ऐसा कहा जाता है कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या से एक दिन पहले और भारत पाक युद्ध के पहले झील का पानी काला हो गया था.

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