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Resort Politics: क्या है रिसॉर्ट पॉलिटिक्स, जानिए भारत की राजनीति में कैसा रहा है इसका इतिहास

Resort Politics: झारखंड ने एक बार फिर रिसॉर्ट पॉलिटिक्स के जिन्न को आजाद कर दिया है. दरअसल, यहां बीते कुछ महीनों से सियासी संकट की स्थिति बनी हुई है. 

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Resort Politics: क्या है रिसॉर्ट पॉलिटिक्स, जानिए भारत की राजनीति में कैसा रहा है इसका इतिहास
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Vikas Porwal|Updated: Aug 27, 2022, 05:51 PM IST

रांचीः Resort Politics: झारखंड में जारी सियासी संकट के बीच शनिवार शाम एक तस्वीर सामने आई. तस्वीर में एक बस के अंदर का सीन है. सामने दिख रहे हैं सीएम सोरेन और साथ में हैं महागठबंधन के कुछ विधायक. इस तस्वीर के सामने आते ही ये बात पुख्ता साबित हुई की झारखंड में भी आखिर रिसॉर्ट पॉलिटिक्स की एंट्री हो गई है. 

क्या है ये रिसॉर्ट पॉलिटिक्स
अब विधायकों को एक महंगे लग्जरी रिसॉर्ट में रखा जाएगा और सरकार का समर्थन बचाने की कोशिश होगी. क्या है ये रिसॉर्ट पॉलिटिक्स, कहां से शुरू हुआ ये सिलसिला और भारत की राजनीति में क्या रही है इसकी भूमिका, ऐसी ही तमाम बातों को गहराई से जानना और जरूरी हो जाता है. 

झारखंड से फिर आजाद हुआ जिन्न
पहले बात कर लेते हैं, झारखंड के ताजा सिनेरियो की, क्योंकि यही वो प्रदेश है, जिसने एक बार फिर रिसॉर्ट पॉलिटिक्स के जिन्न को आजाद कर दिया है. दरअसल, यहां बीते कुछ महीनों से सियासी संकट की स्थिति बनी हुई है. लंबे समय से चले आ रहे खनन पट्टा मामले के बाद सीएम हेमंत सोरेन को एक विधायक के रूप में अयोग्य घोषित किये जाने की खबरें गुरुवार से ही सामने आ रही थीं. भाजपा ने मध्यावधि चुनाव का आह्वान किया है. वहीं सोरेन पार्टी के सदस्यों और सहयोगी दल के साथ भविष्य की रणनीति तैयार कर रहे हैं.

सीएम आवास पर हुई बैठक
इसी को लेकर सीएम आवास पर सुबह 11 बजे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में बैठक हुई. इस बैठक में महागठबंधन के ज्यादातर विधायक शामिल हुए थे. यहां से विधायकों को तीन बसों के जरिए कहीं ले जाया गया. चर्चा है कि सभी विधायकों को छत्तीसगढ़ के रिसॉर्ट में शिफ्ट किया जा रहा है. 

यहां से हुई शुरुआत
रिसॉर्ट की यही चर्चा हमें ले जाती है, भारतीय राजनीति के बीत चुके अब तक के कई दौरों की ओर. शुरुआत कहां से हुई और किस साल में हुई, इसमें थोड़ा सा अंतर है. रिसॉर्ट पॉलिटिक्स की शुरुआत दक्षिण भारत से बताई जाती है. अभिनेता से नेता बने एनटी रामाराव ने साल 1983 में हुआ चुनाव जीता था. तब पीएम रहीं इंदिरा गांधी ने टीडीपी सरकार को राज्यपाल के जरिए हटा दिया था. उन्होंने दलबदलू नंडेदला भास्कर राव को सीएम बना दिया. उस समय एनटी रामाराव अमेरिका में इलाज करा रहे थे. जब वो वापस आए तो व्हीलचेयर पर बैठे हुए ही वो राष्ट्रपति भवन पहुंचे और 181 विधायकों को इकट्ठा कर परेड करा दी. इसके बाद एनटीआर का दल कर्नाटक के नंदी हिल्स में चला गया. ये रिसॉर्ट पॉलिटिक्स की शुरुआत थी. 

हरियाणा में असफल रहा इनेलो-भाजपा का प्रयास
हालांकि इससे कुछ महीनों पहले हरियाणा में 1982 में एक अलग तरह की रिसॉर्ट पॉलिटिक्स की शुरुआत हो चुकी थी. 1982 में हरियाणा में त्रिशंकु विधानसभा बनी. हरियाणा में इंडियन नेशनल लोक दल (इनेलो) और भाजपा ने गठबंधन किया. 92 सीटों की विधानसभा में, इनेलो-बीजेपी गठबंधन ने 37, जबकि कांग्रेस ने 36 पर जीत हासिल की थी. इनेलो-बीजेपी गठबंधन के नेता देवी लाल अपने विधायकों को प्रतिद्वंद्वी खेमे में शामिल होने से बचाने के लिए दिल्ली के पास एक रिसॉर्ट में पहुंचे, लेकिन, एक विधायक रिसॉर्ट से भागने में सफल रहे और कांग्रेस का समर्थन कर दिया. इस तरह रिसॉर्ट में ठहराने के बावजूद भाजपा-इनेलो की सरकार नहीं बन पाई. यह इस पॉलिटिक्स में अपनी तरह का पहला मामला था. 

गुजरात में भी हुई रिसॉर्ट पॉलिटिक्स
पीएम मोदी की राज्य रहा गुजरात भी रिसॉर्ट पॉलिटिक्स में अपना नाम दर्ज करा चुका है. ये था साल 1995 जब भाजपा ने गुजरात में 121 सीटों पर जीत हासिल की. उस दौरान आडवाणी और मोदी ने वाघेला को हटाकर केशुभाई पटेल को मुख्यमंत्री बना दिया. नाराज वाघेला मौके की ताक में थे. कुछ दिनों बाद केशुभाई पटेल अमेरिका दौरे पर गए तब वाघेला ने गुजरात बीजेपी के 55 विधायकों के साथ विद्रोह किया और सभी को एक निजी विमान से रात के तीन बजे अहमदाबाद से खुजराहो के एक रिसॉर्ट में भेज दिया. इस काम में तब वाघेला की मदद कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने की थी, ऐसा कहा जाता है.  

जब नीतीश कुमार रह पाए 7 दिन के सीएम
बात झारखंड की चल रही है तो इसके पड़ोसी राज्य बिहार को कैसे छोड़ सकते हैं. साल 2000 में बिहार के सीएम बने नीतीश कुमार. लेकिन उनका कार्यकाल केवल 7 दिनों तक चला था. नीतीश कुमार को 151 विधायकों का समर्थन मिला था, जबकि लालू प्रसाद यादव की राजद को कांग्रेस के साथ 159 विधायकों का समर्थन भी हासिल था. ऐसी खबरें आ रही थीं कि कांग्रेस के कुछ विधायक एनडीए में नीतीश के खेमे में चले जाएंगे. इसलिए कांग्रेस और राजद ने अपने विधायकों को पटना के एक होटल में रखा था. हालांकि नीतीश असफल रहे और सात दिन बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया. 

रिसॉर्ट पॉलिटिक्स की बात कई राज्यों से होकर एक बार फिर कर्नाटक पहुंचती है. साल 2004 में  कर्नाटक विधानसभा चुनाव हुए तो यहां त्रिशंकु जनादेश आया. बीजेपी 90 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन बहुमत के जादुई आंकड़े से पीछे थी. कांग्रेस को 65 और एचडी देवगौड़ा की पार्टी जेडीएस को 58 सीटें मिलीं. यहां देवगौड़ा ने रिसॉर्ट पॉलिटिक्स की. उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से पसंद का मुख्यमंत्री बनवाया और और मंत्रिमंडल में अहम मंत्रालय मांगा. सोनिया गांधी से उनकी सौदेबाजी एक महीने तक चली थी. 

कुल मिलाकर ये है कि लोकतंत्र का आधार चुनाव प्रक्रिया भले ही है, जिसमें जनता अपना प्रतिनिधि चुनती है, लेकिन ये बात पूरा सच नहीं है. कई बार जनता का प्रतिनिधि असल में कौन होगा, इसे तय करने में रिसॉर्ट भी अपनी पूरी भूमिका निभाती है. जब तक पॉलिटिक्स हैं, रिसॉर्ट हैं, रिसॉर्ट पॉलिटिक्स चलती रहेगी. इस पॉलिटिक्स पर हमारी ये खास पेशकश आपको कैसी लगी, कॉमेंट करके जरूर बताइएगा. देखते रहिए जी बिहार-झारखंड. धन्यवाद

कब-कब हुआ रिसॉर्ट पॉलिटिक्स
साल                       राज्य
1982                   हरियाणा
1984                   कर्नाटक
1995                   आंध्र प्रदेश
1995                    गुजरात
1998                    उत्तर प्रदेश
2000                    बिहार
2020                    मध्यप्रदेश
2020                    राजस्थान
2022                      महाराष्ट्र

 

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