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Lok Sabha Election 2024 Godda Seat: गोड्डा लोकसभा सीट जहां क्षेत्रीय पार्टियों का कम रहा दबदबा, ज्यादातर कांग्रेस और भाजपा ही यहां लहराती रही जीत का परचम

झारखंड की हृदयस्थली के नाम से जाना जाने वाला गोड्डा जिला खनिज संपदाओं से अटा पड़ा है. यहां कोल परियोजना जो राजमहल कोल परियोजना के नाम से भी जाना जाता है. इसे यहां ईसटर्न कोल फिल्ड्स लिमिटेड के नाम से जाना जाता है.

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(फाइल फोटो)
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Gangesh Thakur|Updated: Jan 18, 2024, 06:26 PM IST

Lok Sabha Election 2024 Godda Seat: झारखंड की हृदयस्थली के नाम से जाना जाने वाला गोड्डा जिला खनिज संपदाओं से अटा पड़ा है. यहां कोल परियोजना जो राजमहल कोल परियोजना के नाम से भी जाना जाता है. इसे यहां ईसटर्न कोल फिल्ड्स लिमिटेड के नाम से जाना जाता है. इसे झारखंड का मिथिलांचल भी कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. क्योंकि इस लोकसभा क्षेत्र में मैथिल ब्राह्मणों की बड़ी आबादी बसती है. एक तरफ भागलपुर, दूसरी तरफ बांका, फिर पाकुड़, साहेबगंज, दुमका और बाबा बैद्यनाथ की नगरी देवघर से इसकी सीमा लगती है. आपको बता दें कि इसी लोकसभा क्षेत्र के अंतगर्त बाबा बैद्यनाथ का मंदर भी आता है. जो देवघर में स्थित है. बता दें कि इस लोकसभा सीट का क्षेत्र विस्तार देखिए जिसमें गोड्डा की तीन विधानसभा सीट, दो देवघर की विधानसभा सीट और एक दुमका की विधानसभा सीट आती है. 

गोड्डा में एशिया का सबसे बड़ा खुला कोयला खदान होने के साथ यहां अडानी का पावर प्लांट भी है. यह जिला पहले संथल परगना का एक भाग है. जिले में संथाल जनजाति के लोग भी बहुतायत में रहते हैं. धार्मिक लिहाज से भी यह भूमि काफी पावन है. यहां योगिनी शक्ति पीठ स्थापित है. कहते हैं कि यहां देवी सती की जांघ गिरी थी. भगवान बुद्ध ने भी यहां अपने ज्ञान का प्रसार किया था. यहीं बाबा बैद्यनाथ का मंदिर है तो वहीं मां का शक्ति पीठ भी स्थित है. यहां बाबा बैद्यनाथ के मंदिर में दर्शन करने आनेवाले सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बने. इसके पहले राजीव गांधी और इंदिरा गांधी यहां मधुपुर तक आकर वापस लौट गए लेकिन मंदिर नहीं पहुंचे. यहीं बाबा बासुकीनाथ का भी मंदिर है. जिनकी महिमा निराली है. 

संताल की तीन लोकसा सीटों को देखें तो यह मात्र लोकसभा सीट है जो आनारक्षित है. गोड्डा लोकसभा 6 विधान सभाओं (मधुपुर, देवघर, जरमुंडी, पोरैयाहाट, गोड्डा और महागमा को मिलाकर बना है. इसमें से देवघर विधानसभा सीट अरक्षित है. यहां पहली बार 1962 में आम चुनाव हुए थे. इस सीट को किसी का गढ़ कहना काफी मुश्किल है. यहां कांग्रेस और बीजेपी दोनों का बराबर दबदबा रहा है. यहां क्षेत्रीय पार्टियों को एंट्री कम ही मिल पाई है. इस सीट पर गैर बीजेपी और गैर कांग्रेसी दलों को सिर्फ 2 बार जीत मिली है. 

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शुरुआती दौर में यहां कांग्रेस का दबदबा था. 1962 और 1967 में कांग्रेस के प्रभु दयाल को जीत मिली. 1971 में कांग्रेस के जगदीश मंडल जीते. आपातकाल के बाद 1977 में भारतीय लोक दल के जगदंबी प्रसाद यादव को जीत मिली. 1980 में फिर से कांग्रेस ने वापसी की और मौलाना समीनुद्दीन जीते थे. 1984 में भी समीनुद्दीन सांसद बने थे. बीजेपी का कमल पहली बार 1989 में खिला. उस चुनाव में बीजेपी की टिकट पर जनार्दन यादव जीते थे. वहीं 1991 में झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट पर सूरज मंडल सांसद चुने गए. 1996, 1998, 1999 में तीनों बार बीजेपी के जगदंबी प्रसाद यादव जीते. 2000 में बीजेपी के प्रदीप यादव चुने गए तो 2004 में फुरकान अंसारी ने कांग्रेस की वापसी कराई. 2009 से लगातार तीन बार बीजेपी के निशिकांत दुबे लोकसभा पहुंच रहे हैं.

 

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