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Lok Sabha election 2024: बिहार का ‘मिनी चित्तौड़गढ़’ औरंगाबाद, जहां भाजपा को मिली है लगातार दो जीत

बिहार के ‘मिनी चित्तौड़गढ़’ नाम से मशहूर औरंगाबाद जिले को कौन नहीं जानता है. यह लोकसभा सीट दो घरानों के बीच ही हमेशा सिमटा रहा. यहां से सत्येंद्र नारायण सिंह 7 बार सांसद रहे. वहीं इसके बाद यह सीट जनता दल के कब्जे में आई और लगातार तीन बार इस सीट पर जनता दल का कब्जा रहा.

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(फाइल फोटो)
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Gangesh Thakur|Updated: Jan 23, 2024, 09:26 PM IST

Lok Sabha election 2024 : बिहार के ‘मिनी चित्तौड़गढ़’ नाम से मशहूर औरंगाबाद जिले को कौन नहीं जानता है. यह लोकसभा सीट दो घरानों के बीच ही हमेशा सिमटा रहा. यहां से सत्येंद्र नारायण सिंह 7 बार सांसद रहे. वहीं इसके बाद यह सीट जनता दल के कब्जे में आई और लगातार तीन बार इस सीट पर जनता दल का कब्जा रहा. इसके बाद इस सीट पर समता पार्टी ने कब्जा जमाया, वहीं 1999 और 2004 में फिर इस सीटपर कांग्रेस की किस्मत साथ दे गई. लेकिन 2009 में यह सीट जनता दल (यू) के हिस्से चली गई. इस सीट पर सुशील कुमार सिंह ने चुनाव जीता और फिर वह 2014 में भाजपा के टिकट पर यहां से चुनाव जीतकर संसद में पहुंचे और 2019 में उन्होंने एक बार फिर भाजपा के टिकट पर ही जीत के करिश्मे को दोहराया. 

कभी यह औरंगाबाद सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थी.  अभी भाजपा के कब्जे में दो लोकसभा चुनावों से यह सीट है. यहां सत्येंद्र नारायण सिंह और रामनरेश सिंह का परिवार ही हमेशा आमने-सामने की टक्कर में रहे. इस सीट में सबसे ज्यादा वोटर राजपूत हैं. ऐसे में इस सीट का समीकरण कुछ अलग ही हैं. बता दें कि यहां दूसरे स्थान पर 10 प्रतिशत से ज्यादा यादव वोट बैंक है. इसके बाद मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 8.5 प्रतिशत है. जबकि भूमिहार वोट बैंक यहां 7 प्रतिशत के लगभग है. इस सीट पर महादलित वोटर जीत में निर्णायक भूमिका अदा करते हैं जिनका प्रतिशत 19 है. 

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इस सीट पर आजतक कोई दूसरी जाति का उम्मीदवार राजपूत को छोड़कर जीत हासिल नहीं कर पाया. 1952 से शुरू हुए पहले लोकसभा के चुनाव में जब औरंगाबाद लोकसभा सीट की जगह गया पूर्व लोकसभा सीट हुआ करती थी तो यहां से सत्येंद्र नारायण सिंह नहीं बल्कि कांग्रेस के नेता के तौर पर बृजेश्वर प्रसाद ने जीत दर्ज की थी. 1957 में जब यहां लोकसभा चुनाव हुआ तो सत्येंद्र नारायण सिंह ने यहां जीत दर्ज की और लगातार 7 बार उन्हें विजयी भव का वरदान वहां की जनता देती रही. 

कांग्रेस मानो 2004 के बाद से इस सीट को भूल गई है. इस सीट पर कांग्रेस का समीकरण सेट ही नहीं बैठ पा रहा है. 2009 में जहां सुशील कुमार सिंह, जनता दल (यूनाइटेड)  के टिकट पर यहां से सांसद बनकर लोकसभा पहुंचे. वहीं 2014 में जब नरेंद्र मोदी की अगुवाई में एनडीए चुनाव मैदान में थी तो जदयू इससे अलग चुनाव लड़ रही थी और तब सुशील सिंह ने भाजपा का दामन थाम लिया और पार्टी ने उनपर भरोसा दिखाया. फिर यह सीट भाजपा के कब्जे में गई और 2019 में भी सुशील सिंह इस सीट पर जीत बरकरार रखने में कामयाब रहे. 

 

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