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Anant Chaturdashi 2022: क्या है अनंत चतुर्दशी की कथा, जानिए महाभारत काल से क्या है संबंध

Anant Chaturdashi 2022: भारत भूमि त्योहारों की भूमि हैं. यहां हर दिन किसी न किसी त्योहार को समर्पित होता है. इसी कड़ी में अब जल्दी ही घरों में अनंत चतुर्दशी का त्योहार मनाया जा रहा है. सनातन परंपरा में अनंत चतुर्दशी व्रत का बड़ा महत्व है, 

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Anant Chaturdashi 2022: क्या है अनंत चतुर्दशी की कथा, जानिए महाभारत काल से क्या है संबंध
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Zee Bihar-Jharkhand Web Team|Updated: Sep 08, 2022, 07:36 AM IST

पटनाः Anant Chaturdashi 2022: भारत भूमि त्योहारों की भूमि हैं. यहां हर दिन किसी न किसी त्योहार को समर्पित होता है. इसी कड़ी में अब जल्दी ही घरों में अनंत चतुर्दशी का त्योहार मनाया जा रहा है. सनातन परंपरा में अनंत चतुर्दशी व्रत का बड़ा महत्व है, इसे अनंत चौदस के नाम से भी जाना जाता है. इस व्रत में भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा होती है. भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी कहा जाता है. अनंत चतुर्दशी का व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और अनंत फल देने वाला माना गया है. मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने के साथ-साथ यदि कोई व्यक्ति श्री विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करता है, तो उसकी समस्त मनोकामना पूर्ण होती है.

महाभारत काल में मिलती है कथा
इसकी कथा महाभारत काल में सामने आती है. व्रत का क्या महत्व है यह खुद श्रीकृष्ण ने पांडवों को बताया था. महाभारत की कथा के अनुसार कौरवों ने छल से जुए में पांडवों को हरा दिया था. इसके बाद पांडवों को अपना राजपाट त्याग कर वनवास जाना पड़ा. इस दौरान पांडवों ने बहुत कष्ट उठाए. एक दिन भगवान श्री कृष्ण पांडवों से मिलने वन पधारे. भगवान श्री कृष्ण को देखकर युधिष्ठिर ने कहा कि, हे मधुसूदन हमें इस पीड़ा से निकलने का और दोबारा राजपाट प्राप्त करने का उपाय बताएं. युधिष्ठिर की बात सुनकर भगवान ने कहा आप सभी भाई पत्नी समेत भाद्र शुक्ल चतुर्दशी का व्रत रखें और अनंत भगवान की पूजा करें.

युधिष्ठिर ने परिवार सहित किया ये व्रत
इस पर युधिष्ठिर ने पूछा कि, अनंत भगवान कौन हैं? इनके बारे में हमें बताएं. इसके उत्तर में श्री कृष्ण ने कहा कि यह भगवान विष्णु के ही रूप हैं. चतुर्मास में भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर अनंत शयन में रहते हैं. अनंत भगवान ने ही वामन अवतार में दो पग में ही तीनों लोकों को नाप लिया था. इनके ना तो आदि का पता है न अंत का इसलिए भी यह अनंत कहलाते हैं अत: इनके पूजन से आपके सभी कष्ट समाप्त हो जाएंगे. इसके बाद युधिष्ठिर ने परिवार सहित यह व्रत किया और पुन: उन्हें हस्तिनापुर का राज-पाट मिला.

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