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Sharad Purnima Upaay: शरद पूर्णिमा पर अपनाएं ये उपाय, आज पूरी हो जाएगी गुप्त मनोकामना

Sharad Purnima Upaay: शरद पूर्णिमा से ही स्नान और व्रत प्रारंभ हो जाते हैं. माताएं अपनी संतान की मंगल कामना के लिए देवी-देवताओं का पूजन करती हैं. इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के बेहद करीब आ जाता है. शरद ऋतु में मौसम एकदम साफ रहता है.

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Sharad Purnima Upaay: शरद पूर्णिमा पर अपनाएं ये उपाय, आज पूरी हो जाएगी गुप्त मनोकामना
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Zee Bihar-Jharkhand Web Team|Updated: Oct 09, 2022, 07:48 AM IST

पटनाः Sharad Purnima Upaay:आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं. यह रास पूर्णिमा के नाम से भी जानी जाती है. वैदिक ज्योतिष के अनुसार पूरे वर्ष में केवल इसी दिन चंद्रमा सोलह कलाओं का होता है और इससे निकलने वाली किरणें अमृत समान मानी जाती है. उत्तर और मध्य भारत में शरद पूर्णिमा की रात्रि को दूध की खीर बनाकर चंद्रमा की रोशनी में रखी जाती है. मान्यता है कि चंद्रमा की किरणें खीर में पड़ने से यह कई गुना गुणकारी और लाभकारी हो जाती है. इसे कोजागर व्रत माना गया है, साथ ही इसको कौमुदी व्रत भी कहते हैं.

शरद पूर्णिमा का महत्व
शरद पूर्णिमा से ही स्नान और व्रत प्रारंभ हो जाते हैं. माताएं अपनी संतान की मंगल कामना के लिए देवी-देवताओं का पूजन करती हैं. इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के बेहद करीब आ जाता है. शरद ऋतु में मौसम एकदम साफ रहता है. इस समय में आकाश में न तो बादल होते हैं और नहीं धूल के गुबार. शरद पूर्णिमा की रात्रि में चंद्र किरणों का शरीर पर पड़ना बहुत ही शुभ माना जाता है. आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं.ऐसा माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणें विशेष अमृतमयी गुणों से युक्त रहती हैं, जो कई बीमारियों का नाश कर देती हैं. यही कारण है कि शरद पूर्णिमा की रात को लोग अपने घरों की छतों पर खीर रखते हैं जिससे चंद्रमा की किरणें उस खीर के संपर्क में आती है और उसके बाद उस खीर का सेवन किया जाता है.

गुप्त मनोकामना पूर्ति के लिए
आज पूर्णिमा है. आज चांदी के पात्र में सुबह आधा दूध, आधा पानी और उसमें थोड़ी सी शहद मिलाकर उत्तर पूर्व दिशा में रख दीजिए. उसी से आज सूर्यास्त के बाद और गोधुली बेला से पहले चंद्रमा को अर्ध्य दे दीजिए. चंन्द्र देवता के सामने अपनी मनोाकमना जरूर बोलिए. चंद्रमा मन का प्रतीक है वह आपकी बात सुनेंगे और मनोकामना की पूर्ति करेंगे.

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