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Prashant Kishor on Caste Census: समाज में उन्माद की कोशिश है जातिगत जनगणनाः प्रशांत किशोर

Prashant Kishor on Caste Census: प्रशांत किशोर ने कहा कि 'जातिगत जनगणना समाज को जातीय गुट में बांटने की तैयारी है. इसके जरिए सिर्फ और सिर्फ जनता की आंख में धूल झोंकी जा रही है. इस जनगणना के पीछे की नियत और मंशा क्या है, इसे समझना चाहिए. उन्होंने सवाल उठाया कि जनगणना का बाद आप उसका करने क्या वाले हैं. इस जनगणना का कोई वैधानिक आधार नहीं है.

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Prashant Kishor on Caste Census: समाज में उन्माद की कोशिश है जातिगत जनगणनाः प्रशांत किशोर
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Vikas Porwal|Updated: Jan 07, 2023, 08:15 PM IST

पटनाः Prashant Kishor on Caste Census: एक तरफ बिहार के सीएम नीतीश कुमार समाधान यात्रा पर हैं तो दूसरी ओर प्रशांत किशोर की जन सुराज यात्रा जारी है. शनिवार को जन सुराज यात्रा कार्यक्रम के तहत पीके मोतिहारी पहुंचे थे. यहां उन्होंने समाधान यात्रा के साथ शनिवार को ही शुरू हुई जातिगत जनगणना पर टिप्पणी कर दी. चुनावी रणनीतिकार ने जातिगत जनगणना को समाज में विद्वेष व उन्माद फैलाने वाला बता दिया है. 

क्या है जाति जनगणना का आधार?
प्रशांत किशोर ने कहा कि 'जातिगत जनगणना समाज को जातीय गुट में बांटने की तैयारी है. इसके जरिए सिर्फ और सिर्फ जनता की आंख में धूल झोंकी जा रही है. इस जनगणना के पीछे की नियत और मंशा क्या है, इसे समझना चाहिए. उन्होंने सवाल उठाया कि जनगणना का बाद आप उसका करने क्या वाले हैं. इस जनगणना का कोई वैधानिक आधार नहीं है. नीतीश सरकार राजनीति करने के लिए जनगणना करवा रही है. जनगणना केंद्र का विषय है.' बता दें कि जातिगत जनगणना की शुरुआत शनिवार को वैशाली के गोरौल से हुई है. इसके लिए कटरमाला पंचायत के हरसेर गांव में मनोज पासवान नाम के व्यक्ति का घर चुना गया. सीएम नीतीश ने कहा कि जाति की गणना के साथ-साथ लोगों की आर्थिक स्थिति का अध्ययन भी करवा रहे हैं. 

भाजपा भी सरकार को घेर रही
प्रशांत किशोर ने यह भी कहा कि 'जातीय जनगणना करने वाले नीतीश कुमार ये बताएं कि इसका वैधानिक आधार क्या है और जनता का क्या इससे विकास होगा? अगर विकास करना है तो ये आंकड़ा समझ लें कि बिहार में 13 करोड़ लोग आज भी देश में सबसे पिछड़े हैं; उनका उत्थान होना चाहिए.' जाति आधार जनगणना को लेकर भाजपा शुरू से सरकार का विरोध कर रही है. नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा ने नीतीश सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि 'ये सोचने की बात है, कि 1931 के बाद आजाद भारत के किसी सरकार ने जातीय जनगणना की आवश्यकता क्यों नहीं समझी.' मोदी सरकार बनने के बाद जाति फैक्टर धीरे-धीरे कमजोर होने लगा, लोग विकास की बात करने लगे. तब क्षेत्रीय दलों का जातीय आधारित राजनीति खतरे में पड़ गयी, और वो फिर से समाज को आपस में लड़ाकर अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं.'

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