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Pitru Paksha 2023: साल में 96 दिन होते हैं पितरों की सेवा के लिए खास, फिर भी पितृपक्ष का क्यों है इतना महत्व?

वैसे तो हर साल दुर्गापूजा की शुरुआत से ठीक पहले का पूरा पक्ष 15 दिनों तक श्राद्ध पक्ष होता है और इसमें पितरों के निमित्त श्राद्ध की परंपरा है. इसे श्राद्ध पक्ष के नाम से जाना जाता है. इस बार श्राद्ध पक्ष 29 सितंबर से 14 अक्टूबर तक होगा.

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(फाइल फोटो)
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Gangesh Thakur|Updated: Jul 30, 2023, 05:12 PM IST

Pitru Paksha 2023: वैसे तो हर साल दुर्गापूजा की शुरुआत से ठीक पहले का पूरा पक्ष 15 दिनों तक श्राद्ध पक्ष होता है और इसमें पितरों के निमित्त श्राद्ध की परंपरा है. इसे श्राद्ध पक्ष के नाम से जाना जाता है. इस बार श्राद्ध पक्ष 29 सितंबर से 14 अक्टूबर तक होगा. आपको बता दें कि पितरों की आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए इन दिनों में पिंडदान और तर्पण किया जाता है. इस पक्ष में लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति या मुक्ति के लिए पिंडदान करते हैं. यह पिंडदान पवित्र नदियों के तट पर किया जाए तो उत्तम माना जाता है. 

इस सब के साथ क्या आपको पता है कि ये 15 दिन ही नहीं बल्कि सनातन संस्कृति और हिंदू धार्मिक रीतियों की मानें तो 96 अवसर ऐसे होते हैं जब पितरों की मुक्ति के लिए विशेष पूजा का विधान है. वैसे आपको बता दें कि श्राद्ध पक्ष के इन 15 दिनों में किसी भी तरह के नवीन और मांगलिक कार्य पर रोक होती है. इसके अलावा अब लोग उत्सव और मांगलिक कार्यों के अवसर पर अपने पितरों के निमंत्रण और पिंडदान की प्रक्रिया को तो भूल ही गए हैं. 

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भद्रपाद यानि भादो की पूर्णिमा से शुरू होकर आश्वनी कृष्णपक्ष अमावस्या तक 16 दिनों का कुल पितृपक्ष होता है. ऐसे में कहा जाता है कि बारिश का मौसम खत्म होने की कगार पर हो तो यम लोक से पितरों को धरती पर यमराज के द्वारा भेजा जाता है. ऐसे में इस दौरान पितरों की मुक्ति और उनकी आत्मा की शांति के साथ उनका आशीर्वाद पाने के लिए पिंडदान या तर्पण किया जाता है. 

पितरों के तर्पण या पिंडदान के लिए चावल के बने पिंड, तिल और जल से तर्पण या पिंडदान किया जाता है. इसके साथ ही इसमें सफेद फूलों का इस्तेमाल किया जाता है. वैसे तो पुराणों और अन्य ग्रंथों की मानें तो कुल 12 तरह के श्राद्ध का वर्णन मिलता है. ऐसे में सालभर में ऐसे 96 अवसर बताए गए हैं जब पितरों के निमित्त हम पिंडदान या तर्पण कर सकते हैं. 

पितरों के श्राद्ध के लिए विधान है कि यह स्त्रियों के द्वारा भी किया जा सकता है. ऐसा तभी संभव है जब कुल में कोई पुरुष ना हो. ऐसे में पितृपक्ष में किए गए कई उपाय पितृ ऋृण से भी छुटकारा दिलाते हैं. बिहार के गया में इस दौरान बड़ी संख्या में लोग पितरों का पिंडदान करने पहुंचते हैं. 

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