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Pitru Paksh 2022: श्राद्ध में क्यों जरूरी हैं कुशा-तिल, अक्षत और जौ, जानिए इनका महत्व

Pitru Paksh 2022: श्राद्ध कर्म में सबसे महत्वपूर्ण कुशा होती है. माना जाता है कि भगवान विष्णु के वराह अवतार के रोम धरती पर गिरे और कुशा बन गए. कुशा तेज का भी प्रतीक है जिससे हर क्षण तेजोमय तरंगें निकलती हैं.   

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Pitru Paksh 2022: श्राद्ध में क्यों जरूरी हैं कुशा-तिल, अक्षत और जौ, जानिए इनका महत्व
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Zee Bihar-Jharkhand Web Team|Updated: Sep 12, 2022, 06:11 AM IST

पटनाः Pitru Paksh 2022: श्राद्ध कल्प पक्ष की शुरुआत, भादों की पूर्णिमा से हो चुकी है. आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की प्रथमा को पहला श्राद्ध था और अब अमावस्या पर इसकी समाप्ति होगी. कहते हैं पितृपक्ष के दौरान पितृ धरती पर अपने वंशजों से मिलने आते हैं व उन्हें आर्शीवाद भी प्रदान करते हैं. पितृ पक्ष में पितरों के लिए पिंड दान , तर्पण अथवा श्राद्ध करने की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है. इसके लिए कुछ खास नियम भी बनाए गए हैं और नियमों के अनुसार श्राद्ध के समय कुशा पहनने, तर्पण के वक्त जल में काले तिल का उपयोग करने व पिंडदान के समय चावल का इस्तेमाल करने का बहुत महत्व है. क्या है इन सभी वस्तुओं के प्रयोग के पीछे का मर्म, जानिए यहां.

इसलिए जरूरी है कुशा
श्राद्ध कर्म में सबसे महत्वपूर्ण कुशा होती है. माना जाता है कि भगवान विष्णु के वराह अवतार के रोम धरती पर गिरे और कुशा बन गए. कुशा तेज का भी प्रतीक है जिससे हर क्षण तेजोमय तरंगें निकलती हैं. इन तरंगों के प्रभाव से श्राद्ध स्थस पर रज-तम गुणों का प्रभाव कम हो जाता है, जिससे कि नकारात्मक शक्तियों के अनिष्ट कारी प्रभाव कम हो जाते हैं. कुश पितरों को मार्ग दिखाता है. श्राद्ध में समूल कुश का प्रयोग करना चाहिए. मान्यता के अनुसार कुशा घास शीतलता व पवित्रता प्रदान करती है इसलिए इसे पवित्री घांस भी कहा जाता है. और कहा जाता है कि कुशा पहनने के बाद इंसान श्राद्ध व पूजन कार्य करने के लिए पवित्र हो जाता है. इसलिए शास्त्रों में कर्म काण्ड के दौरान कुशा घांस पहनने का जिक्र है. 

तिल को कहते हैं देवताओं का अन्न
पितृ पक्ष में श्राद्ध के दौरान तिल भी बेहद जरूरी है. क्योंकि तिल की उत्पत्ति भी विष्णु जी से हुई है. ऐसे में इससे पिंडदान करने से मृतक को मोक्ष की प्राप्ति होती है. तिल से भी निकलने वाली रज-तम तरंगे मृत्यलोक में भटक रही पितर आत्माओं को श्राद्धस्थल तक बुलाने में सहयोगी होती है. श्राद्ध स्थल पर तिल छिड़क दिए जाते हैं, जिससे यह एक निश्चित क्षेत्र बन जाता है, जिसमें वही पितृ आत्माएं आती हैं, जिनका आह्वान किया जा रहा है. काले तिल पितर की तृप्ति का साधन हैं. इसे देवताओं का अन्न कहते हैं इसलिए पितृ इसे ग्रहण करके तृप्त हो जाते हैं.

अक्षत है जीवन का आधार
पितर आत्माओं की तृप्ति के लिए उन्हें अक्षत अर्पण किया जाता है. अक्षत जीवन का आधार है और धन-धान्य का पहला प्रतीक है. पितरों को चावल की खीर अर्पित की जाती है. इसमें मिला हुआ मिष्ठान्न रस का और दूध चेतना का प्रतीक व ,स्त्रोत है. पितर इन्हें पाकर संतुष्ट होते हुए इसी प्रकार परिपूर्ण रहने का आशीर्वाद देते हैं. खीर खाना उनकी हर अतृत्प इच्छा की पूर्ति का संकेत है. 

जौ भी है जरूर
जौ यानी यव अनाजों में सर्व शेष्ठ है. यह सोने के ही समान शुद्ध और खरा है. इसलिए यह उन तमोगुणी वैभव का प्रतीक है, जिनके प्रति मनुष्य जीवन रहते लालायित रहते हैं. इनके प्रति जीवन रहते मोह नहीं कम हो पाता और मृत्यु के बाद भी यह इच्छा अतृप्त ही रह जाती है. तर्पण में जो का प्रयोग पितरों को वैभव की संतुष्टि देता है. इसके साथ ही जौ नकारात्मक शक्तियों को दूर रखता है. इसलिए श्राद्ध पूजन में जौ का प्रयोग किया जाता है.

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