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Navratri 2022: कौन हैं देवी मनसा, मां के इस स्वरूप का क्या है बिहार से नाता

Navratri 2022: आज का वर्तमान बिहार, पुराणों में वर्णित ऐसी कई घटनाओं का साक्षी बना है, इसी के कारण बिहार में कई स्थल तीर्थ स्थानों के रूप में जाने जाते हैं.

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Navratri 2022: कौन हैं देवी मनसा, मां के इस स्वरूप का क्या है बिहार से नाता
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Zee Bihar-Jharkhand Web Team|Updated: Sep 24, 2022, 06:33 AM IST

पटनाः Navratri 2022: जगत जननी मां अंबे का नौ दिन का पर्व नवरात्र शुरू होने वाला है. माता के इस नौ दिन के पर्व को नवरात्र के रूप में मनाया जाता है. नवरात्र का ये पर्व देवी शक्ति की आराधना का पर्व है, तो वहीं दूसरी ओर यह स्त्री की शक्ति को भी परिभाषित करता है. देवी मां के कई रूप हैं, कोई उन्हें जगत जननी कहता है, कोई दुर्गा, कोई काली तो इन्हीं देवी की शक्ति को कौशिकी, कल्याणी, संतोषी आदि-आदि अनेक नामों से भी जाना जाता है. 

बिहार में हजारों सालों से हो रही है पूजा
देवी दुर्गा ने अलग-अलग समय पर सत्य की रक्षा और सत्यवानों के पालन के लिए अवतार लिए हैं. इसके अलावा उन्होंने अधर्म के नाश के लिए भी कई-कई रूप धरे हैं. पुराणों के अनुसार ये अवतार और उनसे संबंधित घटनाएं जहां-जहां हुई हैं, वे सभी तीर्थ और पवित्र स्थानों में बदल गए. आज का वर्तमान बिहार, पुराणों में वर्णित ऐसी कई घटनाओं का साक्षी बना है, इसी के कारण बिहार में कई स्थल तीर्थ स्थानों के रूप में जाने जाते हैं. इसी तरह देवी दुर्गा का एक आंशिक रूप भी बिहार से संबंधित है. इसी शक्ति को देवी मंसा के रूप जाना जाता है. देवी मन्सा का जग प्रसिद्ध मंदिर उत्तराखंड में ऋषिकेश की पहाड़ियों में स्थित है, लेकिन बिहार में हजारों सालों से मां की पूजा चली आ रही है. 

बिहार में है माता का विषहरी रूप
बिहार में माता के इस रूप को विषहरी के तौर पर जाना जाता है. बिहार के मुंगेर-भागलपुर आदि क्षेत्रों में भाद्रपद मास में बिहुला-विषहरी का तीन दिनों का अनुष्ठान किया जाता है. देवी मन्सा को विषहरी इसलिए कहा जाता है, कि वह सभी सर्पों को नियंत्रित करने वाली देवी हैं. देवी का यह स्वरूप बताता है कि संसार में जितना अमृत जरूरी है, उतना ही विष भी. लेकिन दोनों में संतुलन का होना आवश्यक है. इसलिए बिहार में विषहरी पूजन किया जाता है. 

ये है माता की कथा
प्राचीन काल में आज का भागलपुर का क्षेत्र अंग देश हुआ करता था. इस अंग देश में एक चांद सौदागर नाम का धनी व्यापारी था, जिसके सात पुत्र थे. मन्सा देवी असल में महादेव शिव की मानस पुत्री थीं. वह उनके मन की शक्ति हैं, और शक्ति होने के कारण उनमें पार्वती का भी अंश है. मनसा देवी को वासुकी ने अपनी बहन के तौर पर पाला था. बड़े होने पर मनसा को देवतुल्य होने का भ्रम हो गया तो उसने अपने लिए पूजा मांगी. लेकिन सभी ने ऐसा करने से मना कर दिया. तब मनसा चांद सौदागर के पास पहुंची और अपनी पूजा के लिए चेतावनी दी. 

इस तरह देवी बनीं मनसा
चांद सौदागर ने जब मना किया तो मनसा ने उसके छह पुत्रों को डंस लिया और सातवें पुत्र को भी मृत्यु की चेतावनी दी. सातवां पुत्रा बाला लखेंद्र था, जिसका विवाह बिहुला के साथ हुआ था. चांद सौदागर के न मानने पर विषहरी ने उसे भी डंस लिया. तब बिहुला की प्रार्थना पर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने चांद सौदागर से विषहरी की पूजा के लिए कहा. सौदागर ने बाएं हाथ से विषहरी का पूजन किया. पूजा के बाद महादेव ने विषहरी से बाला लखेंद्र को जीवित करने के लिए कहा, लेकिन तमाम कोशिशों को बाद भी विषहरी उन्हें जीवित नहीं कर पाई. तब महादेव ने विषहरी को ज्ञान देकर उसका भ्रम दूर किया. ज्ञान प्राप्त होते ही विषहरी के भीतर देवत्व जागृत हो गया और वह देवी बन गईं. इसके बाद ही मनसा देवी के तौर पर जाना जाने लगा.

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