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Mulayam Singh Yadav News: कुश्ती का दांव जीतकर राजनीति के अखाड़े में पहुंचे थे मुलायम सिंह यादव, जानिए उनसे जुड़ा ये किस्सा

Mulayam Singh Yadav Death News:समाजवादी पार्टी के संस्थापक, यूपी के पूर्व सीएम, देश के पूर्व रक्षामंत्री और सपा संरक्षक. मुलायम सिंह का जीवन इन्हीं चार विशेषणों के तौर पर खासतौर पर जाना जाएगा. हालांकि उनकी जिंदगी की शुरुआत जहां से होती है वहां तक किसी की नजर नहीं जाती है.

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Mulayam Singh Yadav News: कुश्ती का दांव जीतकर राजनीति के अखाड़े में पहुंचे थे मुलायम सिंह यादव, जानिए उनसे जुड़ा ये किस्सा
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Vikas Porwal|Updated: Oct 10, 2022, 02:29 PM IST

पटनाः Mulayam Singh Yadav Death News: इस वक्त दिल्ली से सैफई के रास्ते पर देश की हर दूसरी निगाह है. आज इस रास्ते की खासियत है कि इस पर एक काफिला चल रहा है. काफिले में न कोई शोर है, न कोई नारेबाजी. ये पूरी तरह शांत है. क्योंकि ये एक शव के पीछे चल रहा काफिला है. ये शव मुलायम सिंह यादव का है, जो एक समय इसी सूबे के सैफई गांव से निकले, समाजवादी पार्टी बनाई. जिला, प्रदेश और देश की राजनीति में शामिल रहे. सूबे के सीएम भी बने. कई उपलब्धियां जुड़ीं, कई विवाद जुड़े और आज सोमवार को 82 साल की उम्र वह उसी दिल्ली से सैफई की राह पर हैं, जहां से वह दिल्ली की दूरी तय करने निकले थे. 

समाजवादी पार्टी के संस्थापक, यूपी के पूर्व सीएम, देश के पूर्व रक्षामंत्री और सपा संरक्षक. मुलायम सिंह का जीवन इन्हीं चार विशेषणों के तौर पर खासतौर पर जाना जाएगा. हालांकि उनकी जिंदगी की शुरुआत जहां से होती है वहां तक किसी की नजर नहीं जाती है. लेकिन आज जब सैफई की ओर निगाहें जमी हुई हैं तो बहुत कुछ साफ-साफ नजर आ रहा है. दिखाई दे रहा है साल 1962 का एक कुश्ती का अखाड़ा. शरीर पर माटी मलता 23 साल का एक खांटी जवान. थोड़ी देर में उसने ताल ठोंकी, दांव खेला, पेच लगाया और सामने वाला चारों खाने चित्त. उस दिन जो नौजवान कुश्ती जीता नाम तो उसका मुलायम था, लेकिन उसके इरादे लोहा थे. सपा के 2014 के चुनावी कैंपेन में ये चुनावी गीत भी था.  

कुश्ती वाली इस बात को वरिष्ठ पत्रकार सुनीता एरॉन बड़े करीने से लिखती हैं. एरॉन ने अखिलेश यादव की बायोग्राफी ‘विंड्स ऑफ चेंज’को शब्द दिए हैं. वहां वो इस वाकये का जिक्र कुछ ऐसे करती हैं. साल था 1962. मैनपुरी में एक तीन दिवसीय कुश्ती आयोजित की गई थी. मुलायम सिंह यादव तब यही कोई 22-23 साल के नौजवान थे. कुश्ती-पहलवानी पहला शौक था, लिहाजा वह भी यहां दांव लगाने पहुंचे थे. उसी साल हो रहे विधानसभा चुनाव में जसवंत नगर से प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार थे नत्थू सिंह. सिंह यहां ये प्रतियोगिता देखने पहुंचे थे. वे मुलायम के प्रदर्शन से बेहद प्रभावित हुए. इतने कि पहले तो उन्होंने मुलायम सिंह की राजनीति में कायदे की एंट्री कराई और इसके बाद उन्होंने जसवंत नगर की सीट अगले विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव को ही दे दी.

इस तरह नत्थू सिंह मुलायम सिंह यादव के पॉलिटिकल गुरु बन गए और उन्हें पहला चुनाव लड़वाने में भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई. नत्थू सिंह उन दिनों जसवंत नगर के विधायक हुआ करते थे. उनकी पहली बार एक कुश्ती प्रतियोगिता के दौरान मुलायम सिंह यादव से मुलाकात हुई थी और उनके कायल हो गए थे. समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया से मुलायम की पहली मुलाकात नत्थू सिंह ने ही करवाई थी. उस समय कई नेता नहीं चाहते थे कि मुलायम चुनाव लड़ें क्योंकि उन्हें चुनाव का कोई अनुभव नहीं था, लेकिन नत्थू सिंह अपनी बात पर अड़े रहे और मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक शुरुआत कराकर ही मानें. 

मुलायम सिंह यादव ने भी गुरु-शिष्य के इस रिश्ते को खूब मान दिया. नत्थू सिंह के लिए वह कभी भी कुछ भी करने के लिए तैयार रहते थे. इसकी एक बानगी 1962 के ठीक एक साल बाद ही मिल जाती है. साल था 1963. नवंबर 1963 में इटावा के एसपी बीपी सिंघल ने नत्थू सिंह को अपराधी घोषित कर दिया और उनके घर छापेमारी की. बीपी सिंघल विश्व हिंदू परिषद के नेता रहे अशोक सिंघल के भाई थे. नत्थू सिंह के समर्थन में तत्कालीन राज्यसभा सांसद चंद्रशेखर ने प्रदर्शन का ऐलान कर दिया. क्षेत्रीय स्तर पर मुलायम के नेतृत्व में बड़ा आंदोलन किया गया. इस आंदोलन से इटावा के तत्कालीन डीएम गुलाम हुसैन भी सकते में आ गए थे. जब बी.पी सिंघल IG बने और उन्होंने खुद इस बात को स्वीकार किया था. वह कहते हैं कि उन्हें इस बात की जरा भी उम्मीद नहीं थी कि नत्थू सिंह की गिरफ्तारी के खिलाफ इतना बड़ा आंदोलन हो सकता है. मुलायम सिंह के भाई राम गोपाल यादव कहते हैं कि यहीं से मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक जीवन की अहम शुरुआत हुई थी. आज मुलायम सिंह नहीं रहे, लेकिन भारत की राजनीति में उनके पॉलिटिकल किस्से जिंदा रहेंगे.

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